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उड्डयन नीति पर पुनर्विचार का वक्त

किसान समय पर कर्ज न चुकायें तो संपत्ति की कुर्की-जब्ती हो जाती है. आम आदमी के पास गिरवी रखने लायक संपत्ति न हो तो जरूरी कामों के लिए भी कर्ज मिलना मुश्किल होता है. लेकिन, बात जब रसूख वाली बड़ी कंपनी की हो, तो यह गणित बदल जाता है. मोटा कर्ज लेकर शाहखर्ची के चलते […]

किसान समय पर कर्ज न चुकायें तो संपत्ति की कुर्की-जब्ती हो जाती है. आम आदमी के पास गिरवी रखने लायक संपत्ति न हो तो जरूरी कामों के लिए भी कर्ज मिलना मुश्किल होता है. लेकिन, बात जब रसूख वाली बड़ी कंपनी की हो, तो यह गणित बदल जाता है. मोटा कर्ज लेकर शाहखर्ची के चलते जब कंपनी रसातल में पहुंचती है, तो सरकार को उसकी चिंता होने लगती है. एविएशन कंपनी स्पाइसजेट को लेकर भी कुछ ऐसा ही दिख रहा है.

तेल कंपनियों से ईंधन उधार न मिलने के कारण बुधवार को कई घंटों तक कंपनी की उड़ानें ठप रहीं. इससे पहले उड्डयन मंत्रलय ने सरकारी तेल कंपनियों से कहा कि वे इस कंपनी के विमानों को 15 दिन तक उधारी पर तेल देने की मेहरबानी दिखाएं. बैंकों से भी कहा गया कि वे तात्कालिक राहत के तौर पर कंपनी को 600 करोड़ का कर्ज दे दें. हालांकि बैंक व तेल कंपनियां इस निर्देश को लेकर उत्साहित नहीं हैं, क्योंकि कंपनी को दिया गया मोटा कर्जा वसूल नहीं हो पाया है और तेल कंपनियों का भी 15 करोड़ उधार है. लेकिन, सरकार नहीं चाहती कि किंगफिशर की तरह स्पाइसजेट भी उड्डयन कारोबार से बाहर हो जाये, क्योंकि इससे अर्थव्यवस्था के संबंध में नकारात्मक संदेश जायेगा.

स्पाइसजेट के मालिकाना हक में सबसे बड़ा हिस्सा तमिलनाडु की राजनीति के दिग्गजों में से एक, कलानिधि मारन का है. इसलिए कंपनी को बचाने के प्रति सरकार की सक्रियता यह संदेह भी पैदा करती है कि कहीं इसके पीछे राजनीतिक मकसद तो नहीं? यदि सरकार अर्थव्यवस्था की खुशहाली की नीयत से इसे बचाना चाहती है, तो उसे बहुत पहले सतर्क होना चाहिए था, क्योंकि बीती पांच तिमाहियों से कंपनी घाटे में थी और इस पर 1600 करोड़ रुपये का कर्ज चढ़ आया था.

कहीं हमारी उड्डयन नीति तो दोषपूर्ण नहीं है? किंगफिशर और स्पाइसजेट ही नहीं, सरकारी विमानन कंपनी भी घाटे में है. विमान के ईंधन की कीमत पर सरकार का नियंत्रण है और यह ईंधन ज्यादातर देशों से 40 फीसदी तक महंगा है. कच्चे तेल की कीमतों में कमी के बावजूद विमान कंपनियों को अपनी लागत का 40 फीसदी हिस्सा अब भी ईंधन पर ही खर्च करना पड़ता है. जाहिर है, यह वक्त सरकार के लिए उड्डयन नीति पर नये सिरे से विचार करने का भी है.

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