अंतरिक्ष में पड़ते हमारे मजबूत कदम
आइआरएनएसएस- 1ए के सफल प्रक्षेपण के बाद भारत भी उन चंद देशों की श्रेणी में शामिल हो गया है, जिनके नेविगेशन उपग्रह अंतरिक्ष में मौजूद हैं. सात उपग्रहों पर आधारित यह नेविगेशन प्रणाली 2015 तक पूरी तरह अंतरिक्ष में स्थापित हो जायेगी. इसका उपयोग जमीन, समुद्र और अंतरिक्ष में नेविगेशन और आपदा प्रबंधन और वाहन […]
आइआरएनएसएस- 1ए के सफल प्रक्षेपण के बाद भारत भी उन चंद देशों की श्रेणी में शामिल हो गया है, जिनके नेविगेशन उपग्रह अंतरिक्ष में मौजूद हैं. सात उपग्रहों पर आधारित यह नेविगेशन प्रणाली 2015 तक पूरी तरह अंतरिक्ष में स्थापित हो जायेगी. इसका उपयोग जमीन, समुद्र और अंतरिक्ष में नेविगेशन और आपदा प्रबंधन और वाहन की स्थिति का पता लगाने, मोबाइल फोनों के एकीकरण, सही वक्त बताने, नक्शा बनाने, यात्रियों द्वारा नेविगेशन में मदद लेने और ड्राइवरों द्वारा विजुअल तथा वायस नेविगेशन के लिए किया जा सकेगा.
इसके जरिये किसी वाहन पर जा रहे लोगों पर नजर रखी जा सकती है, जो उत्तराखंड जैसी आपदा की स्थिति में उपयोगी सिद्ध होगा. इससे अमेरिकी नेविगेशन जीपीएस पर हमारी निर्भरता धीरे-धीरे समाप्त हो जायेगी. कम पूंजी के बावजूद भारतीय वैज्ञानिकों ने सूझ-बूझ से दुनिया के सबसे सस्ते अंतरिक्ष कार्यक्र म को सफल बनाया है. यह न केवल अंतरिक्ष के क्षेत्र में हमारी बेमिसाल उपलिब्ध है, बल्कि इससे अंतरिक्ष तकनीक के मामले में हमारी साख भी बढ़ी है.
प्रियंवद प्रकाश,ई-मेल से