कर न सके हम प्याज का सौदा, कीमत ही..

।।अखिलेश्वर पांडेय।। -प्रभात खबर, जमशेदपुर- कर न सके हम प्याज का सौदा, कीमत ही कुछ ऐसी थी/ लाल टमाटर छोड़ आये हम, किस्मत ही कुछ ऐसी थी.. आजकल हर मैंगो मैन (आम आदमी) की व्यथा कुछ ऐसी ही है. कुछ दिन पहले तक दाल–चावल की महंगाई का रोना रोनेवाले लोग सब्जियों की कीमतों में भारी […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | July 10, 2013 2:11 AM

।।अखिलेश्वर पांडेय।।

-प्रभात खबर, जमशेदपुर-

कर सके हम प्याज का सौदा, कीमत ही कुछ ऐसी थी/ लाल टमाटर छोड़ आये हम, किस्मत ही कुछ ऐसी थी.. आजकल हर मैंगो मैन (आम आदमी) की व्यथा कुछ ऐसी ही है. कुछ दिन पहले तक दालचावल की महंगाई का रोना रोनेवाले लोग सब्जियों की कीमतों में भारी इजाफे के बाद अब उसी दाल की दुहाई दे रहे हैं, शुक्र है कि दाल है, वरना शनिवार से गुरुवार तक उपवास ही करना पड़ता.


आज हर कोई भले ही महंगाई से परेशान हो, पर एक शख्स ऐसा है जिस पर कोई असर नहीं हो रहा. आप जानना चाहेंगे उसके बारे में? वह है ईमानदार आदमी. उसे कल भी वस्तुएं महंगी लगती थीं, आज भी लगती हैं. वह कहता है, जमीर बेच कर पनीर नहीं खरीद सकता. भले ही भूखा रहना पड़े. जब जमीर ही मर जायेगा तो शरीर जिंदा रह कर क्या करेगा? आखिर बापू का प्रिय भजन वैष्णवजन तो तेणो कहिए जो पीर परायी जाणो रे.. कब काम आयेगा. बापू तो रहे नहीं, लाचारी में अन्ना हजारे को अपना आदर्श माननेवाला यह ईमानदार आदमी कभी अनशन, तो कभी उपवास, तो कभी धरनाप्रदर्शन के बहाने भोजन से मुक्ति पाने का बहाना ढूंढ़ता है. कल की ही बात है, एक टीवी चैनलवाले ने उसके मुंह में माइक ठूंसते हुए पूछा, आपको भूख हड़ताल से इतना लगाव क्यूं है भला? बोला, आज भी जिस देश की एक चौथाई आबादी को भूखे पेट सोना पड़ता हो, उस देश में भूख हड़ताल से बेहतर विरोध का कोई साधन नहीं हो सकता. इस देश की सरकार सो रही है. हमारे ही वोटों से जीत कर जन प्रतिनिधिका तमगा पहने ज्यादातर सांसद और विधायक संसद और विधानसभा की कैंटीनों में भयंकर सब्सिडीवाला खाना खाते हैं. इसलिए उन्हें लगता है कि जब इतना सस्ता खाना मिल रहा है, तो भला आम जनता महंगाई का हल्ला क्यों मचा रही है?


भले ही प्राकृतिक विपदा से तबाह उत्तराखंड को सरकार राहत दिला सकी हो, पर बढती महंगाई और सब्जियों और दूध के दाम में हो रही बेतहाशा वृद्धि के मद्देनजर कैलेंडर और पोस्टर योजना शुरू करने की योजना बना रही है. लोग सब्जियों की शक्ल भूल जायें इसलिए इनके पोस्टर छपवा कर घरघर पहुंचाये जायेंगे. दूध भी आम आदमी की पहुंच से बाहर हो रहा है. बड़ों के लिए तो नहीं, पर बच्चों को इसकी खास जरूरत होती है. ऐसे में सरकार पोलियो ड्राप्स की तरह दूध ड्राप्स पिलाने के लिए मिशन दूध शुरू करने की तैयारी में है. महीने में एक दिन तय किया जायेगा, जब लोग अपने बच्चों को नजदीकी केंद्रों पर ले जा कर दूध ड्राप्स पिलवायेंगे. इसका स्लोगन भी दो बूंद जिंदगी की रखा जायेगा. ये बात अलग है कि इससे बच्चों को जिंदगी मिले मिले, सरकार को जरूर मिलेगी.

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