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मुहिम का असर

अनुज कुमार सिन्हा प्रभात खबर की पत्रकारिता शुरु से ही झारखंड के नवनिर्माण पर केंद्रित रही है. इसलिए 1999 के चुनाव से ही प्रभात खबर इस प्रकार का अभियान चलाता रहा है. इसी क्रम में 2005, 2009 और 2014 में अभियान चला. इसके पीछे उद्देश्य था कि चुनाव में लोक हिस्सेदारी बढ़े, लोग लोकतंत्र से […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | December 21, 2014 3:27 AM

अनुज कुमार सिन्हा

प्रभात खबर की पत्रकारिता शुरु से ही झारखंड के नवनिर्माण पर केंद्रित रही है. इसलिए 1999 के चुनाव से ही प्रभात खबर इस प्रकार का अभियान चलाता रहा है. इसी क्रम में 2005, 2009 और 2014 में अभियान चला. इसके पीछे उद्देश्य था कि चुनाव में लोक हिस्सेदारी बढ़े, लोग लोकतंत्र से जुड़ें और अपनी स्थिति खुद तय करें. हालांकि तमाम कोशिशों के बावजूद 2005, 2009 और 2014 (रांची जैसे शहरी क्षेत्र) में वोटरों का उत्साह नहीं दिखा. पर लोग वोट करें, अपने हालात बदलने के लिए, इसी उद्देश्य से यह अभियान चलाया जाता है. यह निरंतर प्रक्रिया है. इस अभियान का सुखद पहलू यह है कि झारखंड में वोटरों की हिस्सेदारी बढ़ रही है.

कुछ चुनाव के दौरान लगातार 47 दिनों तक पूरे राज्य में किसी अखबार द्वारा जनता/मतदाता के बीच जा कर मुहिम चलाना आसान नहीं होता. प्रभात खबर ने यह जिम्मेवारी बखूबी निभायी. राज्य के लिए यह आवश्यक भी था. पिछले दो विधानसभा चुनाव (2005 और 2009) में जिस तरीके से मतदाताओं का चुनाव के प्रति मोह भंग हुआ था, लोग घरों से नहीं निकल रहे थे, उसका खामियाजा राज्य (झारखंड) को भुगतना पड़ा है. शहरी क्षेत्र में स्थिति बहुत ही खराब रही थी.

इसलिए विधानसभा चुनाव की घोषणा होने के पहले ही प्रभात खबर ने तय कर लिया था कि पूरे राज्य में प्रभात खबर बड़े पैमाने पर मतदाताओं के बीच जा कर अभियान चलायेगा. झारखंड का हालात बतायेगा और इन हालातों को बेहतर करने के लिए घरों से बाहर निकलने का आग्रह करेगा. सच यह है कि 14 साल में झारखंड को जहां होना चाहिए था, वहां नहीं पहुंचा. साथ बने छत्तीसगढ़ और उत्तराखंड दोनों राज्य झारखंड से आगे निकल गये. झारखंड के पास एक बेहतर और विकसित/समृद्ध झारखंड बनने के तमाम साधन हैं, फिर भी बेहतर शासन (लगभग सभी दल को सरकार बनाने का मौका मिला है) के अभाव में झारखंड पिछड़ता गया.

इसका बड़ा कारण है-मतदान के दिन लोग वोट देने के लिए निकलते नहीं, आराम करते हैं, छुट्टी का मजा लेते हैं और बाद में राजनीतिज्ञों को कोसते हैं. यह परंपरा बन गयी है. प्रभात खबर ने तय किया कि लोगों को हालात बता कर घरों से निकाल कर मतदान केंद्र तक लाने के लिए प्रेरित करेगा ताकि राज्य की तसवीर बदल सके.बेहतर प्रत्याशी चुने जायें. ऐसी सरकार बनायें जो पांच साल चले, ठोस निर्णय ले सके.

हालांकि लोक सभा चुनाव में लोग वोट देने के लिए निकले थे लेकिन जब रांची नगर निगम का चुनाव हुआ तो फिर वही हाल. इसलिए डर यह था कि विधानसभा चुनाव में भी कहीं यही हाल न हो जाये. चुनाव की घोषणा होने के तुरंत बाद दो नवंबर को प्रभात खबर ने मतदाता जागरूकता रथ निकाला. नेक काम था, राज्य हित में था, मतदात़ाओं को जागरूक करने लिए था, इसलिए राज्य के मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी पीके जाजोरिया से इस रथ को रवाना कराया गया. प्रभात खबर ने इस मुहिम का नाम दिया-आओ हालात बदलें. यह रथ पूरे राज्य में घुमा.

हर विधानसभा क्षेत्र में गया, चाहे वह शहरी इलाका हो या गांवों का इलाका. इधर रथ घूम रहा था, उधर कॉलेजों में, संस्थाओं में जा-जा कर प्रभात खबर के सीनियर सहयोगी (चाहे वे किसी भी विभाग के क्यों न हों) छात्रों-मतदाताओं से बात कर रहे थे. गोष्ठियां कर रहे थे. उन्हें मतदान में हिस्सा लेने के लिए प्रेरित कर रहे थे. इस काम में संपादक खुद लगे रहे, खुद मतदाताओं के बीच गये. अखबारों में रोज दो-तीन पेजों की सामग्री देकर मतदाताओं को हालात बताने का प्रयास किया गया. इसी बीच भारत के पूर्व मुख्य निर्वाचन आयुक्त एचवाइ कुरैशी को प्रभात खबर ने आमंत्रित किया ताकि वे झारखंड के मतदाताओं को संदेश दे सकें, एक-एक वोट की कीमत समझा सकें.

इसी मुहिम के तहत 15 नवंबर को झारखंड के सभी जिला मुख्यालयों में रन फॉर झारखंड नाम से दौड़ का आयोजन हुआ. एक दिन में, 25 जगहों पर दौड़, जिसमें एक लाख से ज्यादा लोगों की भागीदारी हुई हो, मतदाता जागरूकता अभियान में ऐसा संभवत: पहली बार हुआ था. यह ऐसे ही नहीं हुआ. इसके लिए अखबारों के साथ-साथ रेडियो धूम, इंटरनेट, एसएमएस का उपयोग किया गया. पूरे राज्य में होर्डिग्स लगा कर, पोस्टर साट कर मतदाताओं को जानकारी दी गयी, प्रेरित किया गया. पांच लाख से ज्यादा पंपलेट बांटे गये. हमारी टीम अपना रोजमर्रा का काम करते हुए अभियान में लगी रही.

कुछ दिन ऐसे भी रहे जब एक-एक दिन में हमारी टीम को तीन सौ से लेकर चार सौ किलोमीटर की यात्रा करनी पड़ी. एक-एक दिन में 12 से 15 सभाएं (नुक्कड़) भी की गयीं. प्रभात खबर का रथ उन जगहों पर भी गया, कार्यक्रम किया जिसे घोर नक्सल बहुल माना जाता है, जहां जाने से प्रशासन के लोग भी हिचकते हैं. अपवाद को छोड़ दें तो कहीं भी किसी ने विरोध नहीं किया. यह अभियान झारखंड के एक छोर से दूसरे छोर तक चलाया गया. चाहे वह छत्तीसगढ़ की सीमा (रायडीह) हो, उत्तरप्रदेश की सीमा (बिलासपुर बाजार) हो, ओड़िशा की सीमा (किरीबुरू) हो या फिर बंगाल-ओड़िशा की सीमा (बहरागोड़ा) हो, यह रथ हर जगह गया और मतदाताओं से बात की. लोगों ने प्रभात खबर के इस प्रयास को सराहा. इसी झारखंड में सड़क की स्थिति का अहसास तब हुआ जब हम नगरउंटारी (गढ़वा) से उत्तरप्रदेश की सीमा (विलासपुर बाजार) पर जा रहे थे. एनएच में एक-एक फीट के गड्ढे ने जागरूकता रथ का बुरा हाल कर दिया. लोहे की वेल्डिंग तक खुल गयी और रथ का कई हिस्सा टूट गया (जबकि यह लोहे का बना हुआ था).

लगभग ऐसा ही हाल घाटशिला से बहरागोड़ा (एनएच) तक की सड़क का था. पहले धालभूमगढ़ में वेल्डिंग कराना पड़ा लेकिन बहरागोड़ा पहुंचते-पहुंचते फिर रथ का वही हाल. ऐसी विपरीत परिस्थिति के बावजूद प्रभात खबर के सहयोग़्िायों ने अभियान को नहीं छोड़ा. उसे पूरा किया. बाद में छोटे-छोटे रथ भी चलाये गये ताकि घनी आबादी और संकरी सड़क में जाने में परेशानी न हो.

यह अभियान दूरदराज के गांवों में भी चला. छोटी-छोटी जगहों पर भी रथ को रोक कर नुक्कड़ सभा की गयी. लोगों ने भी इसमें भाग लिया. अपने विचार रखें. ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों में बेचैनी थी. उन्होंने वादा किया कि हर हाल में मतदान करने निकलेंगे. उन्होंने वादा भी निभाया. आंकड़े बताते हैं कि इस बार लोग भारी संख्या में वोट देने निकले. युवा खास तौर पर. प्रभात खबर का प्रयास रंग लाया. मत प्रतिशत तेजी से बढ़ा. इस अभियान में जुड़ने और इसे सफल बनाने के लिए जिन्होंने भी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से सहायता की, उनका बहुत-बहुत आभार. आप मतदाताओं का खास तौर पर आभार.

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