न हो यह हत्या की राजनीति

।। बैजनाथ प्र महतो ।। हुरलुंग, बोकारो : लोकतंत्र में प्रत्येक प्राणी को आजाद रह कर समान रूप से जीने का अधिकार है. चाहे वह पशु–पक्षी हो या मानव. चूंकि सबको प्रकृति ने बनाया है और इसकी गोद में पलनेवाले किसी भी जीव की हत्या का अधिकार हमें नहीं है. इसलिए युगों–युगों से संतों के […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | July 11, 2013 3:34 AM

।। बैजनाथ प्र महतो ।।

हुरलुंग, बोकारो : लोकतंत्र में प्रत्येक प्राणी को आजाद रह कर समान रूप से जीने का अधिकार है. चाहे वह पशुपक्षी हो या मानव. चूंकि सबको प्रकृति ने बनाया है और इसकी गोद में पलनेवाले किसी भी जीव की हत्या का अधिकार हमें नहीं है. इसलिए युगोंयुगों से संतों के उपदेशों में भी यही कहा गया है कि अहिंसा परमो धर्म:’.

अगर इस धरती पर ईश्वर का कोई अस्तित्व है और उसने मानव जाति को दो हाथ और दो पैर दिये हैं, तो वह केवल दूसरों पर उपकार करने के लिए, कि किसी को हानि पहुंचाने के लिए. पर आज विश्व में हत्या, दुराचार, शोषण की राजनीति हो रही है. जनसंहार के लिए प्रयुक्त होनेवाले सामानों का परीक्षण हो रहा है, जो किसी भी सूरत में मानव जाति के लिए हितकर नहीं हो सकता. वह विनाश का कारण ही बनेगा.

पिछले दिनों छत्तीसगढ़, जमुई और पाकुड़ में जो नक्सली घटनाएं घटीं, ऐसी आशा हिंसक पशुओं से भी नहीं की जा सकती. फिर भी नक्सलियों को निंदा या आलोचना का पात्र बनाना उचित प्रतीत नहीं होता, क्योंकि उनकी लड़ाई दबेकुचलों, शोषितों, पीड़ितों असहायों के उत्थान से प्रेरित है. पर संगठन में कुछ अनैतिक भटकाव जरूर गया है, जिसे ठीक करने की जरूरत है. इनसे बड़े गुनहगार तो वे लोग हैं, जो भ्रष्टाचार के माध्यम से लोकतंत्र का गला घोंट रहे हैं.

देश में आज अधिकतर लोगों की रोजमर्रा की जिंदगी में रिश्वत एक अभिशाप बन चुका है. इसका जिम्मेवार कौन है? संसद भवन विधानसभा को मजाक का अड्डा बना दिया गया है, जहां देश की प्रजा के लिए जिम्मेदारीपूर्वक किसी भी महत्वपूर्ण विधेयक पर बहस नहीं हो पा रही है. क्या यह लोकतंत्र की हत्या नहीं है? अत: ऐसे नासूर अपराधों के लिए नक्सली और राजनेता समान रूप से दोषी हैं.

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