खानेवालों को खाने का अधिकार नहीं चाहिए!

।। लोकनाथ तिवारी ।। (प्रभात खबर, रांची) जब से काका ने सुना है कि सरकार ने सबको खाने की गारंटी देनेवाला कानून बनाया है, तब से उनको सुस्ती घेरे रहती है. अब तो बेचारे उस दिन के इंतजार में हैं, जब यह कानून जमीन पर उतरे और खाने की गारंटी सरकार ले ले. अब तो […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | July 11, 2013 3:38 AM

।। लोकनाथ तिवारी ।।

(प्रभात खबर, रांची)

जब से काका ने सुना है कि सरकार ने सबको खाने की गारंटी देनेवाला कानून बनाया है, तब से उनको सुस्ती घेरे रहती है. अब तो बेचारे उस दिन के इंतजार में हैं, जब यह कानून जमीन पर उतरे और खाने की गारंटी सरकार ले ले. अब तो वे दिन भर सुदर्शन चक्रधारी, बंसरीबजैया, रासरचैया मनमोहनका नाम लेते नहीं थकते. अगर कहीं कोई लौहपुरुष तृतीय या रथवीर नेता का नाम लेता है, काका उसे कोसने लगते हैं.

मंदिर, मसजिद, विकास, लैपटॉपटैबलेट, साइकिल, साड़ी के नाम पर लोगों का दिल लूटनेवाले बहुत देखे, पर खाने की गारंटी पहली बार कोई दे रहा है. है तो यह समझदारी भरा कदम! क्योंकि दिल का रास्ता पेट से होकर गुजरता है. पेट को पापी कहा जाता है और भूख को आग. जानकार लोग चोरीडकैती से लेकर माओवादी हिंसा तक की वजह खाली पेटको बताते हैं.

भला हो इस सरकार का, जो उसकी नजर आम लोगों के पेट पर पड़ी. खैर, देर आयद दुरुस्त आयद. कुछ लोग शिकायत कर रहे हैं कि चुनाव देख कर सरकार ने यह कानून बनाया है. अब भाई, इसमें क्या गलत है? हर पार्टी जो कुछ करती है, चुनाव जीतने के लिए ही करती है. काका सरीखे लोगों का मानना है कि अब तो बस पांच वर्षो में एक बार वोट दे आयेंगे, और बैठ कर खायेंगे.

कुछ दिन और खटना है, उसके बाद सारा काम बंद. अजगर करे चाकरी, पंछी करे काम, दास मलूका कह गये सबके दाता राम. यानी, सरकार भगवान की भूमिका में होगी और लोग अजगर की. बिना हिलेडुले भोजन लो और चैन से पड़े रहो.

काका को एड़ी से चोटी तक गदगद देख ताऊ से रहा गया. हर समय कामकाज से जी चुरानेवाले काका की खुशी का राज खुलते ही ताऊ को उनकी बुद्धि पर सदा की तरह तरस आया. बड़े प्यार से उन्होंने कहा, अरे बुद्धिवीर, ये कौनसा नया कानून है! हम तो पिछले पचास बरस से देखते रहे हैं कि भाई लोग बिना काम किये और बिना किसी कानून के खाते रहे हैं. खाना तो हर कोई खाता है. लेकिन वो लोग घूस, ईंट, सीमेंट, छड़, बालू, अलकतरा और पता नहीं क्याक्या खा जाते हैं. बस नाम बदल जाता है. चारा से लेकर कोयला तक, टेलीफोन से लेकर खाद तक, ताबूत से लेकर हेलीकॉप्टर तक हजम कर जानेवालों को किसी खाने के अधिकार कानून की जरूरत नहीं पड़ती.

हां, कुछ हम जैसे अभागे भी होते हैं, जो बिना बात के मार और गालियां खाते रहते हैं. अब जब सरकार खाने की गारंटी देनेवाली है, तो हम जैसे लोगों को एक उम्मीद बंधी है. हो सकता है आनेवाले दिनों में हमें भी बिना काम किये ही खाने को मिलने लगे. हां, अपने कपार और हाथों की लकीरों को देख कर इस उम्मीद पर भी पानी फिरने की सोलह आने आशंका है.

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