सीमा विवाद का हल जरूरी
* चीनी सेना की घुसपैठ खबर है कि जम्मू–कश्मीर में लद्दाख के चुमार सेक्टर में चीनी सेना ने एक बार फिर घुसपैठ की है. यह इलाका दौलताबाग ओल्डी से 250 किलोमीटर दूर है, जहां इस साल अप्रैल में चीनी सेना द्वारा घुसपैठ के बाद दोनों देशों के बीच तनाव चरम पर पहुंच गया था. तीन […]
* चीनी सेना की घुसपैठ
खबर है कि जम्मू–कश्मीर में लद्दाख के चुमार सेक्टर में चीनी सेना ने एक बार फिर घुसपैठ की है. यह इलाका दौलताबाग ओल्डी से 250 किलोमीटर दूर है, जहां इस साल अप्रैल में चीनी सेना द्वारा घुसपैठ के बाद दोनों देशों के बीच तनाव चरम पर पहुंच गया था. तीन हफ्ते तक चले उस विवाद का निबटारा दोनों पक्षों के पीछे हटने के बाद ही हो पाया था.
जानकारी के मुताबिक चुमार की घटना पिछले महीने की 17 तारीख की है. इस घुसपैठ में चीनी सेना ने कुछ भारतीय बंकरों को नुकसान पहुंचाया और सीमा पर लगाये गये एक कैमरे को अपने साथ ले गये. वार्ता के बाद तीन जुलाई को इसे लौटा दिया गया.
हालांकि कुछ जानकारों की नजर में भारत–चीन सीमा पर इस तरह की घुसपैठ असामान्य नहीं है, लेकिन ऐसी घटनाओं से यह सवाल तो उठता ही है कि चीन के दुस्साहस को ‘सामान्य’ मान लेने की प्रवृत्ति में कहीं हमारी बेचारगी तो नहीं उजागर हो रही है! आखिर क्या वजह है कि चीन सीमा पर इस तरह की गतिविधियों में सतत शामिल रहता है? इसका एक बड़ा कारण भारत और चीन के बीच वास्तविक नियंत्रण रेखा को अधिसूचित न किया जाना है.
दोनों पक्ष इसकी व्याख्या अपने हिसाब से करते हैं और सीमा पर खुद को लगातार मजबूत बनाने की कोशिश में लगे रहते हैं. अभी जिस चुमार सेक्टर में चीनी घुसपैठ की खबर आयी है, वहां भारत की स्थिति चीन की तुलना में मजबूत है. इस तथ्य को लेकर चीन हमेशा से असहज रहा है. इस क्षेत्र में चीन की वास्तविक नियंत्रण रेखा तक सीधी पहुंच नहीं है, जबकि भारत ने इस सीमा के आखिरी पोस्ट तक सड़क का निर्माण कर रखा है.
चीन, भारत की इस लाभदायक स्थिति को अपने लिए एक चुनौती मानता है और चुमार पर अपना दावा जताता रहा है. गौरतलब है कि दौलताबाग ओल्डी विवाद के दौरान भी चीन ने चुमार से भारत की अस्थायी चौकियों को समाप्त करने की शर्त रखी थी. जाहिर है, जब तक वास्तविक नियंत्रण रेखा पर आखिरी सहमति नहीं बन जाती, ऐसे तकरार होते रहेंगे.
जरूरी यह है कि दोनों देश आपस में मिल–बैठ कर नियंत्रण रेखा के संवेदनशील मसले को सुलझाने की कोशिश करें और जब तक ऐसा नहीं होता, यथास्थिति को बनाये रखने की कोशिश करें. चुमार सेक्टर की घटना अपने आप में इस बात की गवाही दे रही है कि चीन इस रास्ते पर चलने के प्रति ज्यादा इच्छुक नहीं है.
वह इस बात की उपेक्षा करता रहा है कि दो पड़ोसी देश मैत्री की दशा में ही साथ रह सकते हैं, न कि लगातार चलनेवाली नोक–झोंक और एक–दूसरे पर संदेह की स्थिति में.