प्रतिभाओं की उपेक्षा कब तक?

* पदक विजेता ने की खुदकुशी राष्ट्रीय–अंतरराष्ट्रीय खेल प्रतियोगिताओं में कई गोल्ड मेडल जीत कर देश व राज्य को गौरवान्वित करनेवाले जमशेदपुर के मूक–बधिर खिलाड़ी संतोष कुमार ने बेरोजगारी से तंग आकर खुदकुशी कर ली. इस खिलाड़ी का इस मुकाम पर आकर जीवन से मोहभंग होना झारखंड के खेलप्रेमियों के लिए रहस्य का विषय बना […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | July 11, 2013 3:41 AM

* पदक विजेता ने की खुदकुशी

राष्ट्रीयअंतरराष्ट्रीय खेल प्रतियोगिताओं में कई गोल्ड मेडल जीत कर देश राज्य को गौरवान्वित करनेवाले जमशेदपुर के मूकबधिर खिलाड़ी संतोष कुमार ने बेरोजगारी से तंग आकर खुदकुशी कर ली. इस खिलाड़ी का इस मुकाम पर आकर जीवन से मोहभंग होना झारखंड के खेलप्रेमियों के लिए रहस्य का विषय बना हुआ है.

संतोष के अंतिम संस्कार में शामिल लोगों की आंखें सिर्फ नम थीं, बल्कि उनमें आक्रोश का भी भाव झलक रहा था. आक्रोश, एक अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी को असमय खो देने का. आक्रोश, एक प्रतिभावान खिलाड़ी की उपेक्षा का. आक्रोश, अपने एक प्रिय साथी के चले जाने का.

भ्रष्टाचार का अड्डा बन चुकी खेल संस्थाओं का क्या हाल है, इस बारे में ज्यादा कुछ कहने की जरूरत नहीं है. राष्ट्रीय, राज्य और जिला स्तर की, सभी खेल संस्थाएं अपनों को रेवड़ी बांटने और अपनी जेब भरने में लगी हैं. प्रतिभाओं की अनदेखी और उपेक्षा यहां आम बात है. यही वजह है कि कई बेहतरीन खिलाड़ी मौका पाने से चूक जाते हैं. कई कुंठित होकर कोई और रास्ता अख्तियार कर लेते हैं. सरकार का रवैया भी खिलाड़ियों और खेल संस्थाओं को लेकर काफी लचर दिखता है.

प्रतिभाओं को उचित अवसर मिलने या इनके रोजीरोजगार की व्यवस्था हो पाने के कारण एक समय के बाद इनमें कुंठा पनपने लगती है. वे जीवन से निराश हो जाते हैं. ये विडंबना नहीं तो क्या है कि जो खिलाड़ी हमारे देश के लिए अंतरराष्ट्रीय पदक जीत कर लाता है, उसे हम एक नौकरी तक नहीं दे पाते. उसे उसके हाल पर छोड़ देते हैं. मूकबधिर खिलाड़ी संतोष कुमार के साथ भी यही हुआ.

खेल के अंतरराष्ट्रीय मंच पर राष्ट्र का नाम गौरवान्वित करनेवाले संतोष को बेरोजगारी और गरीबी ने इस कदर तोड़ दिया था कि उसे खुद की जिंदगी बोझ लगने लगी थी. पत्नी और दो बच्चों के परवरिश का खर्च उठाना अब उसके वश में नहीं था. अंतत: उसने वह किया जो उसे नहीं करना चाहिए था. पर इस घटना से आज हमारे सामने कई सवाल खड़े हो गये हैं.

हम आखिर कब सीखेंगे अपनी प्रतिभाओं को संवारना और उन्हें संजोना? हम आखिर क्यों नहीं करते प्रतिभाओं का सम्मान? हम आखिर उनके लिए क्यों कुछ नहीं कर पाते जो हमारे राष्ट्र की धरोहर हैं और जिन्होंने हमें सम्मान दिलाया? उम्मीद है खेल संस्थाओं और सरकार के संबंधित महकमे का ध्यान इस ओर जायेगा और राज्य में ऐसी नीति बनेगी, जिससे हमें आगे किसी और संतोष को खोना पड़े

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