कश्मीर चुनाव में भारत की जीत

एमजे अकबर प्रवक्ता, भाजपा राजनीतिक दल भले ही 23 दिसंबर को घोषित होनेवाले चुनाव परिणामों से पहले जीत या हार की आशंका में लगे हों, लेकिन यह स्पष्ट हो चुका है कि कश्मीर चुनाव में भारत की जीत हुई है. यहां इस बार के चुनावों में कोई हिंसा नहीं हुई, जिसे आतंकवादी मजबूत लोकतंत्र के […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | December 21, 2014 11:33 PM

एमजे अकबर प्रवक्ता, भाजपा

राजनीतिक दल भले ही 23 दिसंबर को घोषित होनेवाले चुनाव परिणामों से पहले जीत या हार की आशंका में लगे हों, लेकिन यह स्पष्ट हो चुका है कि कश्मीर चुनाव में भारत की जीत हुई है. यहां इस बार के चुनावों में कोई हिंसा नहीं हुई, जिसे आतंकवादी मजबूत लोकतंत्र के खिलाफ हथियार के तौर पर इस्तेमाल करते रहे हैं. चरमपंथियों के गढ़ सहित पूरे कश्मीर में मतदान प्रतिशत असाधारण रहा. घाटी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के स्वागत और समर्थन में उमड़ी भीड़ बेमिसाल थी, जो चुनावों के समय में कश्मीर से बाहर के किसी भी नेता के लिए सबसे बड़ा जनसमर्थन था. कश्मीर में भाजपा को कितनी सीटें मिलेंगी, इसका अनुमान लगा पाना मुश्किल है, लेकिन इतना स्पष्ट है कि जिन सीटों पर इससे पहले भाजपा की मौजूदगी की कल्पना भी नहीं की जा सकती थी, वहां वोट प्रतिशत बढ़ेगा. पिछले दिनों वहां आयी बाढ़ के समय लोगों की सुरक्षा और बचाव कार्यो के प्रति प्रधानमंत्री की प्रतिबद्धता और विकास के संदेशों पर लोगों की प्रतिक्रिया शानदार थी.

मैं इन बातों को किसी पूर्वाग्रह से ग्रसित होकर नहीं लिख रहा हूं. मेरे यह लिखने तक एक्जिट पोल के परिणाम नहीं आये थे. न मैंने जम्मू-कश्मीर का दौरा किया है और न ही चुनाव प्रचार में शामिल हुआ हूं. लेकिन इतना स्पष्ट है कि चुनाव में शामिल हुई चार प्रमुख पार्टियों में से नेशनल कॉन्फ्रेंस और कांग्रेस खत्म होने की कगार पर हैं. एक दशक तक शासन करने के बाद नेशनल कॉन्फ्रेंस एक ओर जहां लंबे समय के बाद सत्ता से बाहर हो रही है, वहीं कांग्रेस एक और राज्य से सफाये की ओर बढ़ चुकी है. भाजपा को 2004 और 2009 के आम चुनावों में लगातार हार का सामना करना पड़ा था, लेकिन जिन राज्यों में भाजपा का आधार था, वहां पार्टी मजबूत बनी रही. राज्यों के मुख्यमंत्री पार्टी के जनाधार को बनाये रखने में कामयाब रहे.

एक चौथाई सदी के बाद खतरनाक एवं भावुकता प्रेरित धर्म और जाति आधारित राजनीति से बेहद निराश युवाओं को ऐसी सरकार की जरूरत महसूस हुई, जो बिल्कुल अलग हो, संवेदनशील हो और उनकी वास्तविक जरूरतों के प्रति जागरूक हो, ताकि वे बेहतर भविष्य की कल्पना कर सकें. आपने गुजरात में वोटिंग पैटर्न को देखा है. इस वर्ष भारत की उम्मीदों पर खरा उतरने तक गुजरात में मोदी के एक दशक के कार्यकाल में भाजपा का राष्ट्रीय चुनावों के मुकाबले विधानसभा चुनावों में प्रदर्शन कहीं ज्यादा बेहतर रहा है. इसको समझने के लिए रॉकेट साइंस की जरूरत नहीं है कि जम्मू-कश्मीर और झारखंड के युवा भी गुजराती युवाओं की तरह जिंदगी, विकास और रहन-सहन को बेहतर बनाने के लिए बिजली चाहते हैं. बिजली का मतलब अमीरों के लिए केवल हीटर व एयर कंडीशनर उपलब्ध कराना ही नहीं है. इससे ज्यादा महत्वपूर्ण है कि शाम को घर में लगे बल्ब की रोशनी में बच्च अपनी पढ़ाई कर सके. बिजली प्राथमिक आवश्यकता है, न कि विलासिता का साधन.

कश्मीर के लोग इस बात को समझ चुके हैं कि धर्म के आधार पर राजनीति व्यर्थ है. अभी पाकिस्तान में कट्टरपंथियों की बर्बरता, निर्दयता, हिंसा, अव्यवस्था और बिखरी राजनीति इसी की देन है. इस घटना के बाद सभी जगह बच्चों के दिल में खौफ पैदा हो गया है और कश्मीर में तो स्पष्ट रूप से प्रभाव पड़ा होगा. राजनीति के विशेषज्ञ मानते हैं कि जब खतरा सामने हो, तो लोग एक-दूसरे को खींचते हैं. उसी तरह कश्मीरी बच्चों व युवाओं के चरमपंथियों के प्रभाव में आने का खतरा रहता है.

कोई भी व्यावसायी युद्ध-प्रभावी क्षेत्र में निवेश नहीं करना चाहता है. यही कारण है कि पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था चरमरा चुकी है और सरकार असहाय है. कश्मीरी युवा देख सकते हैं कि शेष भारत आज किस मुकाम पर है. कश्मीरी व्यापारी देश के सभी शहरों में अपने उत्पादों को बेचते हैं. कश्मीर में आनेवाले पर्यटकों से भी आमदनी बढ़ती है. उपमहाद्वीप के इस निचले हिस्से में ऐसे सैकड़ों सेक्टर हैं, जहां पर्याप्त रोजगार की संभावनाएं हैं. फिर क्यों कश्मीरियों को नये भारतीय परिदृश्यों से मिलनेवाले लाभों से खुद को वंचित रखना चाहिए? आधुनिक विकसित राज्य की परिभाषा, लोकतंत्र, अभिव्यक्ति व विश्वास की स्वतंत्रता, लिंग समानता व आर्थिक विकास के आधार पर भारत उन्नति कर रहा है. दूसरी ओर पाकिस्तान अनिश्चितता में है, वहां सेना सत्ता संभालना चाह रही है, आस्था और लैंगिक असमानता चरम पर है और गरीब कट्टरपंथ की भेंट चढ़ रहे हैं.

चुनाव तो बदलाव की शुरुआत भर है. इस चुनाव परिणाम से ऐसी सरकार बनने जा रही है, जो व्यक्ति विशेष के लिए नहीं, बल्कि पूरे जम्मू-कश्मीर के विकास का प्रतिरूप बनेगी. इसके लिए केंद्र व राज्य के बीच बेहतर तालमेल होना जरूरी है. यह चुनाव ऐसी घटना साबित होगा, जहां से सही मायनों में जम्मू-कश्मीर 21वीं सदी में पहुंचेगा.

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