भाभीजान की कंजूसी और यार की समझदारी

।।संतोष सारंग।।(प्रभात खबर, मुजफ्फरपुर) भाई जान, कहना तो नहीं चाहिए, पर कह रहा हूं. आपकी मोहतरमा भारी कंजूस हैं. पैसे का बचत, पानी का बचत, बिजली का बचत और न जाने क्या–क्या बचाने में लगी रहती हैं. भई, ऐसी कंजूस भाभी जान तो दुनिया भर में कहीं न देखी.चाय की चुस्कियां लेते वकार साहब बोले […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | July 12, 2013 2:08 AM

।।संतोष सारंग।।
(प्रभात खबर, मुजफ्फरपुर)

भाई जान, कहना तो नहीं चाहिए, पर कह रहा हूं. आपकी मोहतरमा भारी कंजूस हैं. पैसे का बचत, पानी का बचत, बिजली का बचत और जाने क्याक्या बचाने में लगी रहती हैं. भई, ऐसी कंजूस भाभी जान तो दुनिया भर में कहीं देखी.चाय की चुस्कियां लेते वकार साहब बोले जा रहे थे. चाय में चीनी कम क्या थी कि जनाब के मुंह से कड़क पत्ती की तरह शब्द बिखरने लगे. छोटे मियां, आज के जमाने में जो कंजूस नहीं होता, वह सुखी नहीं होता.

बचत की बुनियाद पर ही सुंदर भविष्य गढ़ सकते हो. चाहे जितना कमा लो, बचाओगे नहीं तो एक दिन हाथ मलना पड़ेगा. वैसे भी बचानेवालों को लोग कंजूस कहते ही हैं. कंजूस कहलाने में क्या बुराई? क्या ठीक कह रहा हूं बिल्लो रानी.जान से भी ज्यादा प्यारी अपनी पत्नी की ओर मुखातिब होकर शमशेर भाई ने अपनी बात खत्म की. बोलने में भी कंजूस फातिमा ने इस संवाद को आगे बढ़ाया, बबुआ को अभी का पता चलेगा. माथ पर मेहरारू का जब भार पड़ेगा, तब नमक का भाव पता चलेगा. तब पता चलेगा कि का होता है सेव मनी’, ‘सेव वाटर’, ‘सेव इनर्जी.. दोनों मियां ठठाकर हंसने लगे.

इसी बीच मोबाइल बजा. छोटे मियां भागे. उन्हें ग्लोबल वार्मिग पर एक संगोष्ठी में भाग लेना था. शहर के पॉश इलाके में स्थित एक फाइव स्टार होटल के एयर कंडीशनर हॉल में ग्लोबल वार्मिग पर चिंतनमंथन शुरू था. खाली कुर्सी देखकर जनाब विराजमान हो गये. मिनरल वाटर की बोतल से अपने गले को तर कर वक्ता अपना भाषण चालू रखता है. हां तो मैं कह रहा था कि धरती बचानी है, प्रकृति की हिफाजत करनी है, पर्यावरण संरक्षण करना है, तो हमें अपनी जीवन शैली बदलनी होगी. हमें पॉलिथीन को बाय कहना होगा. एसी त्यागना होगा.

कारबाइक छोड़ साइकिल की सवारी करनी होगी. पानी की बर्बादी रोकना होगा. ऊर्जा की बचन करनी होगी. यानी हमें इको फ्रेंडली होना होगा..बिना सांस लिए वक्ता महोदय करीब आधे घंटे तक पर्यावरण पर भाषण झाड़ते रहे. अंत में बोतल में बचे पानी गले के नीचे उतार कर विजयी मुद्रा में हॉल से बाहर निकले. एसी कार में बचपन के मित्र और फिलहाल सुधि श्रोता जनाब वकार साहब के साथ बैठकर वे घर को चल दिये. रास्ते में खरीदारी की. चार पॉलिथीन में सामान पैक करवाया. पांच बिसलरी की बोतलें भी लीं.

आखिरकार जनाब से रहा नहीं गया. पूछ ही बैठे, क्यों बे, हॉल में तो तू बड़ी लंबीचौड़ी बातें कर रहा था. यहां तो तूने पॉलिथीन में ही सामान पैक करवाया है.ङोंपते हुए महोदय ने जवाब दिया, मैं एक अच्छा वक्ता हूं. पर्यावरण का जानकार हूं. इसलिए आयोजक मुङो भाषण देने के लिए बुलाते हैं. मैं कोई समाजसेवी तो हूं नहीं, जो चल दे धरती की सेवा करने. अब जनाब वकार साहब को समझ में गया था भाभी जान की कंजूसी और यार की समझदारी में फर्क क्या है.

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