।।सुरेंद्र किशोर।।
(वरिष्ठ पत्रकार)
सरदार बल्लभ भाई पटेल को दो संतानें थीं. दोनों देश सेवा और समाज सेवा की भावना से ओतप्रोत थे. वे योग्य पिता की योग्य संतानें थीं. उनको लेकर कभी कोई विवाद भी नहीं सुना गया. सरदार पटेल के पुत्र डाह्या भाई पटेल को उच्च कोटि का सांसद माना गया, तो उनकी पुत्री मनी बेन पटेल को स्वतंत्रता सेनानी और समाजसेवी. मनी बेन ने अपने पिता के निजी सहायक के रूप में भी काम किया. सरदार पटेल का 15 दिसंबर, 1950 को निधन हो गया. उसके बाद मनी बेन पटेल बंबई चली गयीं. वहां उन्होंने सरदार पटेल ट्रस्ट और अन्य दातव्य संस्थाओं के लिए काम किया. वह कई शैक्षणिक संस्थाओं से भी जुड़ी रहीं.
उन्होंने अपने पिता के जीवन और स्वतंत्रता आंदोलन पर अपने संस्मरण लिखे. तब तक महाराष्ट्र प्रदेश का गठन नहीं हुआ था और गुजरात भी बंबई राज्य का ही हिस्सा था. सरदार पटेल के निधन के समय कांग्रेस पार्टी के कोष के पैसे सरदार पटेल के पास थे. मनी बेन ने पैसे से भरे बक्से को जवाहर लाल नेहरू को ले जाकर दे दिया.
मनी बेन का जन्म 3 अप्रैल, 1903 को हुआ था. उनका निधन 1988 में हुआ. मनी बेन 1918 में ही गांधीजी के प्रभाव में आ गयी थीं. वह अहमदाबाद स्थित गांधी आश्रम में काम करने लगीं. उन्होंने असहयोग आंदोलन और नमक सत्याग्रह में हिस्सा लिया. वह 1942 से 1945 तक यरवदा जेल में रहीं. मनी बेन 1930 में अपने पिता सरदार पटेल की निजी सहायक बन गयीं. यह भूमिका उन्होंने 1950 में उनके निधन तक निभायी. इस बीच मनी बेन ने डायरी में ईमानदारी से सच्ची बातंे लिखीं. बाद में वह पुस्तक के रूप में छपी. उसका नाम है ‘इनसाइड स्टोरी ऑफ सरदार पटेल : द डायरी ऑफ मनी बेन पटेल’. डायरी में 1936 से 1950 तक का विवरण है.
निजी सहायक की भूमिका निभाते समय मनी बेन ध्यान रखती थीं कि किसी के साथ अनावश्यक बातचीत के कारण सरदार पटेल थक न जाएं. जब भी मनी बेन ऐसा महसूस करती थीं तो वह अपने पिता को अपनी घड़ी दिखा कर सतर्क कर देती थीं. मनी बेन सरदार के साथ ट्रेन में सफर भी करती थीं. मंत्री बनने से पहले सरदार साहब रेलगाड़ी की द्वितीय श्रेणी में सफर करते थे, पर मनी बेन तीसरे दर्जे में. बाद में जब सरदार पटेल पर पत्रचार का बोझ बढ़ गया तो मनी बेन भी उनके साथ सेकेंड क्लास में ही सफर करने लगीं. मनी बेन सरदार पटेल के निधन के बाद 1952 से 1980 के बीच कई बार सांसद रहीं. वह संसदीय कार्यवाहियों में सक्रिय रहती थीं. वह मेहसाना से लोकसभा सदस्य चुनी गयी थीं. वह गुजरात कांग्रेस की उपाध्यक्ष भी थीं.
डाह्या भाई पटेल मनी बेन से छोटे थे. उनका जन्म 28 नवंबर, 1905 को हुआ था. 11 अगस्त, 1973 को उनका निधन हो गया. डाह्या भाई अपनी बहन मनी बेन से करीब ढाई साल छोटे थे. उन्होंने गुजरात विद्यापीठ में प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त की. विद्यापीठें स्वतंत्रता आंदोलन का ही हिस्सा मानी जाती थीं. उन दिनों स्वतत्रंता सेनानी अपनी संतानों को भरसक इन्हीं विद्यापीठों में शिक्षित करते थे. तब आज की तरह नहीं था कि सरकारी स्कूलों में सरकार में शामिल मंत्रियों और अफसरों की संतानें नहीं पढ़ती थीं.
डाह्या भाई पटेल पहले ओरियंटल लाइफ इंश्योरेंस कंपनी में काम करते थे. बाद में उन्होंने नौकरी छोड़ दी और राजनीति में शामिल हो गये. पहले वे कांग्रेस में थे. पर 1960 में स्वतंत्र पार्टी में शामिल हो गये. देश के पूर्व गवर्नर जनरल राजा गोपालाचारी ने 1960 में स्वतंत्र पार्टी बनायी थी. डाह्या भाई 1949 से 1954 तक बंबई नगर निगम में कांग्रेस पार्टी के नेता थे. 1954 में वह बंबई के महापौर बने. 1958 में वह राज्यसभा के लिए चुने गये थे. 1964 और 1970 में भी वे राज्यसभा के लिए चुने गये थे. इसी बीच वह स्वतंत्र पार्टी में शामिल हो गये. डाह्या भाई दक्षिण पूर्व एशिया की राजनीति के विशेषज्ञ माने जाते थे. लोग उन्हें उच्च कोटि के सांसद कहते थे. उनके निधन पर राष्ट्रपति वीवी गिरि ने उन्हें देशभक्त और कुशल सांसद कहा था.
सरदार पटेल की संतानों के राजनीतिक कैरियर को देखने से लगता है कि इन लोगों को उस तरह के अवसर नहीं मिले, जिस तरह के अवसर इंदिरा गांधी को मिले, जबकि योग्यता–क्षमता और सार्वजनिक कामों में योगदान की दृष्टि से वे कमतर नहीं थे. याद रहे जवाहर लाल नेहरू के जीवन काल में ही इंदिरा गांधी 1958 में कांग्रेस कार्य समिति की सदस्य बन चुकी थीं. एक साल बाद 1959 में वे कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष बन गयीं.