देखिए क्या गुल खिलाती है राजरानी

विश्वत सेन प्रभात खबर, रांची झारखंड में राजनेता लोकतंत्र की सबसे बड़ी परीक्षा दे चुके हैं. मतदाता भी नेताओं को नंबर दे चुके हैं. बता दें कि चुनाव नामक यह परीक्षा अग्निपरीक्षा से भी ज्यादा कठिन होती है. अग्निपरीक्षा से पहले धरती में समा जाने का विकल्प खुला रहता है. लेकिन चुनाव-परीक्षा में ‘न दैन्यं […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | December 23, 2014 5:14 AM
विश्वत सेन
प्रभात खबर, रांची
झारखंड में राजनेता लोकतंत्र की सबसे बड़ी परीक्षा दे चुके हैं. मतदाता भी नेताओं को नंबर दे चुके हैं. बता दें कि चुनाव नामक यह परीक्षा अग्निपरीक्षा से भी ज्यादा कठिन होती है. अग्निपरीक्षा से पहले धरती में समा जाने का विकल्प खुला रहता है. लेकिन चुनाव-परीक्षा में ‘न दैन्यं न पलायनम्’ की स्थिति होती है.
कौन पास हुआ और कौन फेल, यह आज (मंगलवार को) तब पता चलेगा, जब इवीएम से नतीजे निकलेंगे. चुनाव-परीक्षा की एक अनोखी बात यह होती है कि इसमें नतीजों को लेकर जितनी दुविधा में परीक्षा में बैठनेवाला रहता है, उतनी ही दुविधा में नंबर देनेवाला भी रहता है. दोनों को अंत तक नहीं पता होता कि कौन पास होगा, कौन फेल. खैर यह सब तो नतीजा निकलने के साथ साफ हो जायेगा, लेकिन सत्ता रूपी राजरानी है बड़ी एहसानफरामोश. लोकतंत्र में जिस भोली-भाली जनता के कंधे को इस्तेमाल कर यह तिकड़मियों को राजसुख प्रदान करती है, उस जनता को तो बस सिर्फ कागज पर ही कुछेक पल के लिए राजा बनाती है.
यह भोली-भाली जनता के लिए बनायी भले ही गयी है, लेकिन उसके पास रहती नहीं है. यह राजरानी जो ठहरी. यह जिसके पास जाती है, उसे रंक से राजा बना देती है. यह कभी हाथ के सहारे आती है, तो कभी फूलों के उड़नखटोले में उड़ान भरती है. कभी-कभी तो ऐसा घालमेल करती है कि किसी को पांच साल तक अपने पास टिकने ही नहीं देती. जो इसके पास टिकने का प्रयास करता है, वह इसकी तपिश बरदाश्त नहीं कर पाता है. और जिसने इससे सटने के पहले खुद को तपा लिया होता है, उसे तो कलेजे से सटा कर रखती है. कई दिग्गजों को छक्के छुड़ाने के बाद एक बार फिर इस खनिज-प्रधान राज्य में राजरानी विराजने वाली हैं. प्रधान सेवक साहब ने तो जोर लगाया ही है, बाकी दूसरे लोगों ने भी इस नखरीली राजरानी को वशीभूत करने के लिए चौबीसों घंटे की आराधना की है.
अब किस्मत का बक्सा खुलने की बारी है. इसके खुलने के साथ ही नेताओं के भाग्य या दुर्भाग्य का पिटारा भी खुलेगा. पता चलेगा कि इस बार राजरानी के वाहक होने का श्रेय किसको मिलता है. धनुष से छूटा तीर निशाने पर लगता है या फिर राजरानी कमल फूल से सजे उड़नखटोले पर सवार होगी? राजरानी को सहारा देने के लिए हाथ भी लपक रहा है, लालटेन उसे रोशनी दिखाना चाह रहा है, कंघी उसके केश संवारने के लिए लालायित है. पता नहीं इनके अरमानों का क्या होगा.
इनके अरमान अपनी जगह, जनता के अरमानों का क्या होगा? तो भइया, जनता की किस्मत में पपीहा बनना ही लिखा है. स्वाती नक्षत्र की एक बूंद की तरह विकास का इंतजार कर रही है. लेकिन न पपीहे की प्यास कभी बुझती है, और न जनता की. दोनों ही बस आस में जिंदा रहते हैं.

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