सरकार की सख्ती से ही रुकेगी ठगी

झारखंड से करीब 40 चिट फंड कंपनियां लगभग 2000 करोड़ रुपये लेकर भाग गयी हैं. ये गरीबों की खून-पसीने की कमाई का पैसा है. ग्रामीण इलाकों के 12-15 लाख लोग ठगी के शिकार हुए हैं. ये वो लोग हैं जो हो सकता है कि कुछ पढ़े-लिखे हों, पर ‘वित्तीय साक्षर’ नहीं हैं. इन्हें निवेश के […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | December 23, 2014 5:15 AM
झारखंड से करीब 40 चिट फंड कंपनियां लगभग 2000 करोड़ रुपये लेकर भाग गयी हैं. ये गरीबों की खून-पसीने की कमाई का पैसा है. ग्रामीण इलाकों के 12-15 लाख लोग ठगी के शिकार हुए हैं. ये वो लोग हैं जो हो सकता है कि कुछ पढ़े-लिखे हों, पर ‘वित्तीय साक्षर’ नहीं हैं. इन्हें निवेश के विभिन्न विकल्पों के बारे में कोई तकनीकी जानकारी नहीं है.
ये लोग चिट फंड, गैर बैकिंग वित्तीय कंपनी, प्रीफरेंशियल शेयर, डिबेंचर वगैरह के बारे में कुछ नहीं जानते. धोखाधड़ी करनेवाली कंपनियां जिन वित्तीय उपकरणों में निवेश कराती हैं, उनके बारे में गांव-देहात के निवेशकों को कुछ नहीं पता होता. वे तो बस ये देखते हैं कि उनका पैसा कितने साल में दुगना हो जायेगा. किसी ने तीन साल में रकम दुगनी करने का लालच दिया और आ गये झांसे में. ये भी नहीं पूछते कि पैसा जिस स्कीम में लग रहा है, वह स्कीम वास्तव में है क्या. लोगों की अज्ञानता और लालच का फायदा ठग उठाते हैं. समस्या कितनी भयावह है, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि इन कंपनियों के खिलाफ राज्य के अलग-अलग क्षेत्रों में 75 प्राथमिकियां दर्ज हो चुकी हैं.
लेकिन दुर्भाग्य की बात है कि गरीबों का पैसा वापस दिलाने और उन्हें इंसाफ दिलाने के लिए सरकार की ओर से कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई है. पड़ोस के पश्चिम बंगाल में सीबीआइ जांच हो रही है, तो वहां मंत्री तक जेल चले गये. वहीं झारखंड में इस खेल के प्यादे तक भी गिरफ्तार नहीं हो रहे हैं. यह सरकार की बड़ी नाकामी है. वित्तीय कंपनियों की वैधता और उनके कामकाज पर नजर रखने की जिम्मेदारी सांस्थिक वित्त विभाग की है. लेकिन वह अपनी जिम्मेदारी निभाने में विफल रहा. असम सरकार के निगरानी विभाग का पत्र मिल मिलने के बाद विभाग कुछ हरकत में आया, पर इसे संतोषजनक नहीं कहा जा सकता.
ठगी करनेवाली कंपनियां वित्तीय कानूनों में मौजूद छेदों और शासन-प्रशासन की ढिलाई का फायदा उठाती हैं. वे हर बार नया रूप बदल कर आती हैं. कभी पेड़ लगवाने, कभी रियल एस्टेट, कभी जैविक खेती, तो कभी कुछ और कारोबार करनेवाली कंपनी के रूप में. इनकी चालाकी को पकड़ना गांव-देहात के भोलेभाले लोगों के बस की बात नहीं है. इन पर लगाम सरकार की सख्ती से ही लग सकती है.

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