विपक्ष की रचनात्मक सक्रियता मजबूत लोकतंत्र की आवश्यक शर्त होती है. लेकिन, भारी बहुमत से बनी मोदी सरकार के पहले छह महीनों में विपक्ष की आवाज बेहद कमजोर थी. बड़ी हार के झटके से ऐसा होना स्वाभाविक भी था.
ऐसे में दिल्ली के ऐतिहासिक जंतर-मंतर पर सोमवार को नरेंद्र मोदी सरकार के खिलाफ ‘जनता परिवार’ से संबंद्ध छह दलों का महाधरना इस साल हुए आम चुनाव के बाद की एक महत्वपूर्ण राजनीतिक परिघटना है. गत चुनाव में जनता ने नरेंद्र मोदी के वादों पर भरपूर यकीन जताया था. लेकिन, किसानों को उपज का लाभकारी मूल्य दिलाने, काला धन वापस लाने, सबका विकास करने और सुशासन देने जैसे नारों के साथ सत्ता में आयी भाजपा जनता से जुड़े कई मुद्दों पर अब तक ठोस पहल नहीं कर सकी है.
दूसरी ओर, भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से संबद्ध संगठन धर्मातरण की कोशिशों और विवादित बयानों के जरिये माहौल बिगाड़ने में लगे हैं. इन मसलों पर पिछले कई दिनों से संसद में हंगामे की स्थिति बनी हुई है, लेकिन प्रधानमंत्री न तो अपने सहयोगियों-समर्थकों पर लगाम लगा पा रहे हैं और न ही स्पष्टीकरण देने की विपक्ष की मांग स्वीकार रहे हैं. ऐसे में सपा, जदयू, राजद, जद (सेकुलर), लोक दल और सजपा के संसद से सड़क तक विरोध प्रदर्शन को एक सकारात्मक राजनीतिक कदम कहा जा सकता है.
उम्मीद की जानी चाहिए कि केंद्र सरकार विपक्ष की साझा चिंताओं पर समुचित ध्यान देगी. हालांकि ‘जनता परिवार’ की यह सक्रियता सार्थक तब होगी, जब रचनात्मक विपक्ष के रूप में अपनी निरंतर भूमिका के प्रति जनता में भरोसा जगा पायेगी. एक पार्टी के रूप में संगठित होने की संभावनाएं तलाश रहे ये छह दल अगर भाजपा के ठोस राजनीतिक विकल्प के रूप में खुद को पेश करना चाहते हैं, तो उन्हें वोट-बैंक की राजनीति से आगे बढ़ते हुए कुछ नये राजनीतिक मुहावरे गढ़ने होंगे. यह तभी होगा, जब ये दल अपनी सैद्धांतिक एवं व्यावहारिक समझ पर आत्ममंथन करते हुए समावेशी विकास के लिए युवाओं और जन आकांक्षाओं पर आधारित नीतिगत सोच एवं कार्यक्रम प्रस्तुत करेंगे. देश तरक्की की राह पर मजबूती से तभी आगे बढ़ेगा, जब सत्ता पक्ष और विपक्ष अपनी-अपनी भूमिकाओं के प्रति सचेत रहें.