झारखंड व कश्मीर से निकले संदेश
एक ओर प्राकृतिक संपदा के मामले में सबसे अमीर राज्य झारखंड की गरीब जनता अस्थिर सरकारों और भ्रष्टाचार के कारण त्रस्त थी, तो दूसरी ओर धरती का स्वर्ग कहे जानेवाले कश्मीर की जनता रोजमर्रा की जिंदगी में मुश्किलों से निजात चाहती थी. ऐसे में दोनों राज्यों में भाजपा की चुनावी महत्वाकांक्षा अकेले दम पर बहुमत […]
एक ओर प्राकृतिक संपदा के मामले में सबसे अमीर राज्य झारखंड की गरीब जनता अस्थिर सरकारों और भ्रष्टाचार के कारण त्रस्त थी, तो दूसरी ओर धरती का स्वर्ग कहे जानेवाले कश्मीर की जनता रोजमर्रा की जिंदगी में मुश्किलों से निजात चाहती थी. ऐसे में दोनों राज्यों में भाजपा की चुनावी महत्वाकांक्षा अकेले दम पर बहुमत पाने की थी. एक्जिट पोल के कुछ अनुमानों ने उम्मीद भी जगायी कि ऐसा हो सकता है. अब नतीजे भी काफी हद तक भाजपा के पक्ष में ही हैं.
झारखंड में वह आजसू की मदद से बहुमत पा चुकी है, जबकि जम्मू-कश्मीर के चुनावी इतिहास में पहली बार कांग्रेस से इतर कोई राष्ट्रीय पार्टी दूसरी सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी है. इन नतीजों के आधार पर भाजपा दावा कर सकती है कि आम चुनाव में चला नरेंद्र मोदी का जादू बरकरार है. दिल्ली के भाजपा दफ्तर से उठा उत्सवी शंखनाद यही घोषणा करता प्रतीत होता है. पर, कुछ विश्लेषकों का यह भी मानना है कि झारखंड और जम्मू-कश्मीर के नतीजे अपने दम पर बहुमत पाने की भाजपा की महत्वाकांक्षा पर रोक लगानेवाले साबित हुए हैं. एक तरफ चुनावी जीत को आगे बढ़ाती भाजपा, दूसरी तरफ उसके विजयी रथ को रोकने में नाकाम होते बाकी राजनीतिक दल- बीते जमाने के कांग्रेस की तरह आज भाजपा का लक्ष्य भारतीय लोकतंत्र में कुछ ऐसा ही एकतरफा चुनावी-परिदृश्य कायम करने का है. उसकी यह महत्वाकांक्षा बीते आम चुनाव में उसे नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में मिली भारी कामयाबी से उपजी है.
आम चुनाव में तूफानी और हाइटेक चुनाव-प्रचार के जरिये नरेंद्र मोदी की ‘विकास पुरुष’ की छवि को आगे बढ़ाने के प्रयास में भाजपा ने अपने परंपरागत एजेंडों- अयोध्या में राम मंदिर निर्माण, जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देनेवाले अनुच्छेद 370 को हटाने आदि- से किनारा कर लिया था. मोदी के सशक्त नेतृत्व में देश में ‘अच्छे दिन लाने’ और ‘सबका साथ, सबका विकास’ का भाजपा का वादा, यूपीए राज के कमजोर नेतृत्व और चहुंमुखी भ्रष्टाचार से त्रस्त मतदाताओं के मन में बहुत गहराई तक उतर गया था. विकास के नारों के जरिये राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में सत्ता पा चुकी भाजपा का चुनावी प्रयोग आम चुनाव के बाद हरियाणा और महाराष्ट्र में भी सफल रहा.
ऐसे में भाजपा के चुनावी-प्रबंधन के दिग्गज शायद मान चुके थे कि विधानसभा चुनावों में राज्यों की राजनीति की विशिष्टताएं, स्थानीय चेहरा और स्थानीय मुद्दे विशेष मायने नहीं रखते. तभी तो पार्टी ने जम्मू-कश्मीर और झारखंड में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भरपूर चुनावी सभाएं करायीं. इन राज्यों की चुनावी बहसें राज्य के विशिष्ट मुद्दों पर न होकर, मोदी के भाषणों और केंद्र की योजनाओं पर ही केंद्रित रहीं. भाजपा ने झारखंड में मुख्यमंत्री पद के दावेदार के रूप में कोई चेहरा सुझाना भी जरूरी नहीं समझा, जबकि जम्मू-कश्मीर की राजनीति में अब तक अज्ञात रही हिना बट को प्रमुख चेहरा बना दिया, जो जमानत भी न बचा सकीं. लगातार जीत से उत्साहित पार्टी ने जेवीएम को भी किनारे कर दिया. हालांकि बहुमत का आंकड़ा छू लेने के बाद भाजपा संतोष की सांस जरूर ले रही होगी. उधर, कश्मीर के मुद्दों की समझ का आलम भी यह रहा कि चुनाव की घोषणा के कुछ ही दिन बाद भाजपा के एक केंद्रीय मंत्री का बयान आया कि हम अनुच्छेद 370 हटा लेंगे. बाद में पार्टी ने इस बयान से पीछा छुड़ाया और हिना बट्ट ने कहा कि अनुच्छेद 370 हटा, तो वे इसके खिलाफ खुद बंदूक उठा लेंगी, लेकिन तब तक शायद देर हो चुकी थी.
दोनों राज्यों में जारी चुनाव प्रक्रिया के बीच में देश के विभिन्न हिस्सों में ‘घर-वापसी’ के नाम पर धर्मातरण के प्रयासों और आरएसएस तथा उससे संबद्ध संगठनों द्वारा ‘हिंदू भारत’ बनाने के बारे में विवादित बोल से भी एक तबके में पार्टी के प्रति अविश्वास का माहौल बना. हिंदू बहुल जम्मू और मुसलिम बहुल कश्मीर क्षेत्र का अलग-अलग जनादेश इशारा करता है कि भावनात्मक मुद्दों के संबंध में भाजपा को अभी अपनी समझ दुरुस्त करने की जरूरत है. यह जनादेश एक बड़ा सबक है देश की सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी कांग्रेस और क्षेत्रीय दलों के लिए भी.
हरियाणा व महाराष्ट्र के बाद झारखंड एवं जम्मू-कश्मीर में भी पार्टी ने चुनावी रणनीति बनाने में अक्षमता का परिचय देकर भाजपा की राह आसान की है. इन नतीजों में अच्छी बात यह है कि एक मजबूत सरकार की झारखंड की आकांक्षा पहली बार पूरी हो रही है. उम्मीद करनी चाहिए कि नयी सरकार विकास और सुशासन के जरिये राज्य को एक नये मुकाम पर ले जायेगी. उधर, जम्मू-कश्मीर के क्षेत्रीय दलों के लिए संदेश यह है कि उन्हें अब कांग्रेस से इतर एक और राष्ट्रीय पार्टी से तालमेल बिठाना सीखना होगा.