लोकतंत्र की नयी सुबह
।। अवधेश आकोदिया ।। (वरिष्ठ पत्रकार) भूटान के संसदीय चुनाव में मुख्य विपक्षी दल पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) की धमाकेदार जीत चौंकाने वाली है. पिछले चुनाव में महज दो सीटें जीतने वाली पीडीपी ने 32 सीटें जीत कर 47 सदस्यीय नेशनल एसेंबली ने तीन चौथाई बहुमत हासिल किया है, जबकि 45 सीटें जीतनेवाली सत्तारूढ़ द्रुक […]
।। अवधेश आकोदिया ।।
(वरिष्ठ पत्रकार)
भूटान के संसदीय चुनाव में मुख्य विपक्षी दल पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) की धमाकेदार जीत चौंकाने वाली है. पिछले चुनाव में महज दो सीटें जीतने वाली पीडीपी ने 32 सीटें जीत कर 47 सदस्यीय नेशनल एसेंबली ने तीन चौथाई बहुमत हासिल किया है, जबकि 45 सीटें जीतनेवाली सत्तारूढ़ द्रुक फ्यूनसम शोग्पा पार्टी (डीपीटी) को मात्र 15 सीटों पर जीत मिली है.
यह चुनाव परिणाम कई मायनों में अप्रत्याशित है. भूटान की राजनीति की समझ रखने वाले सभी विश्लेषक यह मानकर चल रहे थे, कि डीपीटी फिर से सत्ता पर काबिज होगी. चुनाव के प्रथम चरण के नतीजे भी इसी ओर इशारा कर रहे थे, जिसमें डीपीटी को 44.52 प्रतिशत और पीडीपी को 32.53 प्रतिशत मत मिले थे. भूटान के संसदीय चुनाव दो चरणों में होते हैं. पहले चरण में यह निर्धारित होता है, कि सत्ता के लिए किन दो राजनीति दलों के बीच मुकाबला होगा. दूसरे चरण में नेशनल एसेंबली की 47 सीटों के लिए चुनाव होता है.
सवाल यह है कि अचानक ऐसा क्या हुआ कि भूटान की जनता ने डीपीटी को ठुकरा दिया और पीडीपी को गले लगा लिया? माना जा रहा है कि केरोसीन और रसोई गैस पर भारत की ओर से दी जाने वाली सब्सिडी का बंद होना डीपीटी की हार का मुख्य कारण है. गौरतलब है कि 30 जून को करार खत्म होने के बाद भारत ने भूटान को यह सब्सिडी देना बंद कर दिया था. इससे वहां रसोई गैस और केरोसीन की कीमतों में खूब वृद्घि हुई, जिसे पीडीपी ने मुद्दा बना लिया.
प्रधानमंत्री जिग्मी वाइ थिनले ने बार–बार यह कहा कि भारत ने कुछ तकनीकी दिक्कतों के चलते सब्सिडी बंद की है और यह जल्द फिर से शुरू हो जायेगी. लेकिन जनता पर उनकी इस अपील का असर नहीं हुआ. पीडीपी ने इस माहौल का जम कर फायदा उठाया. पार्टी का चुनाव प्रचार एक तरह से इसी मसले पर केंद्रित रहा.
पीडीपी के नेता लोगों के दिमाग में यह बात बिठाने में कामयाब रहे कि सरकार की गलती के कारण उन्हें रसोई गैस और केरोसीन के ज्यादा दाम चुकाने पड़ रहे हैं. आम जरूरत की चीजों की बढ़ती कीमतों से जनता पहले से ही परेशान थी. उसका यह गुस्सा मतदान के रूप में सामने आया. खराब मौसम और बारिश के बावजूद 66 प्रतिशत से ज्यादा मतदाताओं ने मतदान किया.
पीडीपी ने चुनावों में जीत तो हासिल कर ली है, लेकिन लोगों की अपेक्षाओं पर खरा उतरना उसके लिए आसान नहीं होगा. सरकार गठित होते ही पहली चुनौती भारत के साथ सब्सिडी मुद्दे के हल की है. पार्टी ने चुनाव प्रचार के दौरान लोगों से वादा किया था कि यदि हमारी सरकार बनी, तो कुछ दिनों में ही उन्हें रसोई गैस और केरोसीन पुरानी दरों पर मिलने लगेगी.
हालांकि नयी सरकार को ऐसा करने के लिए ज्यादा मशक्कत नहीं करनी पड़ेगी, क्योंकि भारत भी इस मुद्दे को सुलझाना चाहता है. नयी दिल्ली चुनाव से पहले ही यह भरोसा दे चुकी है, कि भूटान की ओर से ऑडिट की पुख्ता व्यवस्था होते ही सब्सिडी शुरू कर दी जायेगी. उल्लेखनीय है कि भारत सब्सिडी की राशि सीधे भूटान सरकार को देता है. उसकी यह जिम्मेदारी है कि वह इसके उपयोग की पूरी जानकारी भारत सरकार के पास भेजे, लेकिन बार–बार कहने के बावजूद उसने ऐसा नहीं किया. ऐसे में नयी दिल्ली के पास सब्सिडी रोकने के अलावा कोई विकल्प नहीं था.
भूटान की राजनीतिक जमात भारत की इस मजबूरी को समझती है. तभी तो चुनाव प्रचार के दौरान न तो डीपीटी ने और न ही पीडीपी ने सब्सिडी बंद होने का ठीकरा भारत के सिर फोड़ा. हालांकि यह अफवाह जरूर उड़ी कि चीन से भूटान की बढ़ती नजदीकियों की वजह से भारत ने सब्सिडी बंद की है, लेकिन भूटानी सरकार और विपक्ष ने इसे खारिज कर दिया. जिग्मी थिनले और पीडीपी की महासचिव सोनम जात्शो ने कहा कि दोनों देशों के रिश्ते इतने मजबूत हैं कि किसी मामूली मुद्दे से इस पर कोई असर नहीं पड़ सकता.
आखिर में चर्चा भूटान में परिपक्व होते लोकतंत्र की. पांच साल पहले जब भूटान नरेश ने वहां लोकतंत्र की नींव रखी तो अनेक आशंकाएं जतायी जा रही थीं. कहा जा रहा था कि नरेश कभी भी इसे फलने–फूलने का मौका नहीं देंगे. लेकिन ताजा चुनावों से यह साबित हो गया है कि लोकतंत्र उम्र के साथ नहीं, बल्कि राजनीतिक दलों और लोगों की समझ के साथ सुदृढ़ होता है.
इस चुनाव में सभी दल मुद्दों के साथ मैदान में उतरे तो लोगों ने भी उन्हें उसी हिसाब से जांचा–परखा. जहां नरेश के बोलने भर से कानून बन जाया करते थे, वहां लोकतांत्रिक व्यवस्था की ऐसी समझ आश्चर्यचकित करनेवाली है.