लोकतंत्र पर भरोसा करें नक्सली
* पुरस्कृत पत्र ।। बैजनाथ प्र महतो ।। हुरलुंग, बोकारो विश्वमें लोकतांत्रिक व्यवस्था से बढ़ कर कोई दूसरी व्यवस्था नहीं है. इसलिए नक्सली संगठनों को अपने देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था पर पूरा भरोसा करना चाहिए. आये दिन खूनी संघर्षो से झारखंड, छत्तीसगढ़ और ओड़िशा जैसे राज्य कलंकित हो चुके हैं. झारखंड राज्य में दो पुलिस […]
* पुरस्कृत पत्र
।। बैजनाथ प्र महतो ।।
हुरलुंग, बोकारो
विश्वमें लोकतांत्रिक व्यवस्था से बढ़ कर कोई दूसरी व्यवस्था नहीं है. इसलिए नक्सली संगठनों को अपने देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था पर पूरा भरोसा करना चाहिए. आये दिन खूनी संघर्षो से झारखंड, छत्तीसगढ़ और ओड़िशा जैसे राज्य कलंकित हो चुके हैं. झारखंड राज्य में दो पुलिस अधीक्षकों, दो विधायकों, एक सांसद की नक्सलियों द्वारा नृशंस हत्या किया जाना जन सरोकारों से जुड़ा होना कदापि नहीं लगता. इसकी जितनी भी निंदा की जाये, कम ही है. इसलिए नक्सली संगठनों को तनावपूर्ण संघर्ष छोड़ कर लचीलापन अपनाना चाहिए, ताकि कोई ठोस विकल्प निकल आये.
सरकार को भी चाहिए कि नक्सलियों के विरुद्ध चलाये जा रहे ऑपरेशन पर पुनर्विचार करे और बातचीत के जरिये समस्या का समाधान ढूंढ़ने की सार्थक कोशिश करे, ताकि खून–खराबे पर अंकुश लगे. यदि केंद्र सरकार पड़ोसी देशों की क्रूरता के बावजूद बातचीत के लिए लालायित रहती है, तो फिर देसी नक्सलियों से वार्ता करने में क्या बुराई है? नक्सली तो लोकतांत्रिक कुव्यवस्था की ही उपज हैं और इसके लिए सीधे तौर पर नौकरशाह और राजनेता ही जिम्मेदार हैं, जो दबे–कुचलों को अहमियत नहीं देते.
वहीं नक्सली भी अपने मूल सिद्धांतों से पूरी तरह भटक चुके हैं. लेवी वसूलने, अपने संगठन से बच्चों को जोड़ने आदि संबंधित खबरें प्राय: मीडिया में आती हैं, जो इस बात का प्रत्यक्ष प्रमाण है. अब भला नौनिहालों को बंदूक थमा कर वै कौन–सी क्रांति लाना चाहते हैं, यह समझ से परे है. ऐसे नौनिहाल संगठन को किस दिशा में ले जायेंगे, यह तो भविष्य के गर्भ में छिपा है, लेकिन इससे इस बात को बल मिलता है कि संगठन में स्वार्थी तत्वों का जमावड़ा बढ़ता जा रहा है.