असम के सोनितपुर और कोकराझार जिले में बोडो उग्रवादियों ने 76 आदिवासियों को मार डाला है. इनमें ज्यादातर महिलाएं व बच्चे हैं. वहां जो भी आदिवासी हैं और हिंसा का शिकार हुए हैं, उनमें से अधिकतर झारखंड और आसपास से गये हैं. इनके पूर्वज चाय बागान में काम करने के लिए असम गये थे.
अभी हालात इतने खराब हो गये हैं कि सेना को उतारना पड़ा है. इसके बावजूद हिंसा थमने का नाम नहीं ले रही है. झारखंड पर भी इसका असर पड़ रहा है. मारे गये लोगों के रिश्तेदार झारखंड में हैं और वे अपने परिजनों के प्रति चिंतित है. नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट ऑफ बोडोलैंड (एनडीएफबी) एक उग्रवादी संगठन है जो अलग बोडोलैंड की लड़ाई लड़ रहा है. आदिवासी भी समय-समय पर उसका निशाना बनते रहे हैं. बोडो उग्रवादियों को लगता है कि चाय बागान में काम करने आये ये आदिवासी उनका हक छीन रहे हैं. बोडो उन्हें वहां से हटाना चाहते हैं. लेकिन इस बार जिस तरीके से बोडो उग्रवादियों ने महिलाओं-बच्चों तक को निशाना बनाया है, वह अमानवीय है.
वहां जो भी आदिवासी हैं, वे आज से नहीं हैं. सौ साल से ज्यादा समय हो गया है. रोजी-रोटी की तलाश में उनका पलायन हुआ था. वे वहां बस गये हैं. बोडो उग्रवादी उन्हें उनकी जमीन से बेदखल करना चाहते हैं. हाल ही में एक चुनाव में गैर-बोडो प्रत्याशी ने बोडो प्रत्याशी को हरा दिया था. इससे बोडो उग्रवादी उत्तेजित थे और वे मौके की तलाश में थे. इस घटना को लेकर झारखंड के आदिवासियों को चिंतित होना स्वाभाविक है. इस राज्य में रोजगार नहीं है. बड़ी संख्या में यहां के लोगों का पलायन हो रहा है. वे दूसरे राज्यों में नौकरी के लिए जा रहे हैं. कुछ अन्य क्षेत्रों से भी ऐसी खबरें आती हैं कि वहां झारखंड के लोगों को मार दिया गया.
इसलिए नयी सरकार के लिए सबसे बड़ी चुनौती है कि कैसे झारखंड में रोजगार बढ़ाये जायें, ताकि यहां के भूमिपुत्रों को रोजगार के लिए बाहर नहीं जाना पड़े. यहां से पलायन नहीं हो. असम में जो संताल चाय बागान में काम करने गये थे, अगर उनके पास उस समय अपने राज्य में अवसर होते तो क्यों वहां जाते? इसलिए नयी सरकार को चौकस होना होगा. साथ ही यह देखना होगा कि दूसरे राज्यों में जो भी झारखंड के लोग हैं, वे सुरक्षित रहें.