तकनीक से हाइटेक विचार दकियानूसी

अजीमाबाद एक्सप्रेस. पटना से अहमदाबाद जानेवाली ट्रेन. सेकेंड एसी के एक डिब्बे में सफर कर रहीं चार महिलाएं और दो पुरुष. उनमें से एक मैं भी था. ‘‘समय कितना हाइटेक हो गया है बहन जी? एक से बढ़ कर एक स्मार्टफोन, गाड़ियां, मशीनें आ गयी हैं. बेंगलुरु में रह रही मेरी बेटी हमसे फोन पर […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | December 26, 2014 5:25 AM

अजीमाबाद एक्सप्रेस. पटना से अहमदाबाद जानेवाली ट्रेन. सेकेंड एसी के एक डिब्बे में सफर कर रहीं चार महिलाएं और दो पुरुष. उनमें से एक मैं भी था. ‘‘समय कितना हाइटेक हो गया है बहन जी? एक से बढ़ कर एक स्मार्टफोन, गाड़ियां, मशीनें आ गयी हैं. बेंगलुरु में रह रही मेरी बेटी हमसे फोन पर वीडियो चैट करती है.’’- एक महिला ने बातचीत के दौरान यह बात कही. ‘‘आप ठीक कह रही हैं.’’- दूसरी महिला ने पहली का समर्थन किया.

तभी एक पुरुष ने कहा, ‘‘क्या बात कह रही हैं बहन जी आप लोग? ऐसा हाइटेक होना किस काम का, यदि सोच हाइटेक न हो.’’ उनकी बात अधूरी रह गयी, क्योंकि स्टेशन आ गया था और पैसेंजर चढ़ने लगे थे. लेकिन मेरा दिमाग आये दिन मीडिया में आ रहीं उन खबरों की ओर चला गया, जिनमें बार-बार लड़कियों और महिलाओं के खिलाफ दकियानूसी फरमान सुनाये जा रहे हैं. कहीं पंचायत लड़कियों के जींस पहनने पर रोक लगा रही है, तो कहीं मोबाइल पर बात करने के. कहीं ससुराल में प्रताड़ना के खिलाफ आवाज उठानेवाली महिलाओं को सजा दे रही है, तो कहीं तेजाब हमला करनेवालों के खिलाफ शिकायत दर्ज करानेवाली लड़कियों के परिवार का हुक्का-पानी बंद किया जा रहा है.

एक ओर हमारे प्रधानमंत्री देशवासियों को तकनीक से लैस करने की बात कह रहे हैं, तो दूसरी तरफ इसी देश का एक वर्ग मध्ययुगीन सोच के साथ कानून, पुलिस और प्रशासन की परवाह किये बगैर महिलाओं के खिलाफ फरमान सुना रहा है. समझ नहीं आता कि जो लोग लड़कियों की सुरक्षा के नाम पर उनके मोबाइल पर बात करने, लड़कों से बातचीत करने, जींस पहनने, ससुराल में चुप रह कर सारे अत्याचार सहने की वकालत करते हैं, वही लोग कहां चले जाते हैं, जब लड़कियों को खुलेआम सड़कों पर छेड़ा जाता है, उन्हें रास्ते से उठा कर उनके साथ बलात्कार किया जाता है.

अब भी संस्कृत की किताबों में यह पढ़ने को मिलता है, ‘यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते, रमन्ते तत्र देवता:’, मतलब कि जहां नारी की पूजा की जाती है, वहां देवता निवास करते हैं. देश के द्वितीय राष्ट्रपति डॉ राधाकृष्णन ने भी अपने विदाई भाषण में कहा था, ‘‘हमें अच्छी महिलाएं दो, हमारे पास एक महान सभ्यता होगी. हमें अच्छी माएं दो, हमारे पास एक महान देश होगा.’’ क्या ये सभी बातें किताबों तक, वाट्सएप्प और फेसबुक पर फॉरवर्ड होनेवाले संदेशों तक और सेमिनार व कॉन्फ्रेंस में बोले जानेवाले भाषणों तक ही सीमित रह जायेंगी या फिर अब हर परिवार, हर समाज, हर देश, बेटियों की काबिलीयत, उनकी भावनाओं, उनके सपनों को समङोगा और उनके आड़े आ रही सभी ताकतों को मुंहतोड़ जवाब देकर उन्हें आगे बढ़ने में मदद करेगा? फैसला आपको करना है कि वास्तव में आपकी सोच कितनी ईमानदार है?

शैलेश कुमार

प्रभात खबर, पटना

shaileshfeatures@gmail.com

Next Article

Exit mobile version