रेल में बुनियादी सुधार की दरकार
भारतीय रेल का निजीकरण नहीं करने का प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का आश्वासन सराहनीय है. रेल बजट में विदेशी निवेश के प्रस्ताव के बाद कर्मचारी संगठनों और कुछ अन्य समूहों को ऐसी आशंका थी कि सरकार रेल का निजीकरण करना चाहती है. कुछ सार्वजनिक उपक्रमों में सरकारी हिस्सेदारी बेचे जाने से भी इस आशंका को बल […]
भारतीय रेल का निजीकरण नहीं करने का प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का आश्वासन सराहनीय है. रेल बजट में विदेशी निवेश के प्रस्ताव के बाद कर्मचारी संगठनों और कुछ अन्य समूहों को ऐसी आशंका थी कि सरकार रेल का निजीकरण करना चाहती है.
कुछ सार्वजनिक उपक्रमों में सरकारी हिस्सेदारी बेचे जाने से भी इस आशंका को बल मिला था. प्रधानमंत्री ने स्पष्ट कहा है कि सरकार का ऐसा कोई इरादा नहीं है और निवेश का इस्तेमाल रेल के विकास के लिए किया जायेगा. उनकी यह बात भी स्वागतयोग्य है कि वे रेल को यातायात के साधन के रूप में ही सीमित नहीं रखना चाहते हैं, बल्कि इसे देश के विकास का इंजन बनाना चाहते हैं.
सबसे बड़े वैश्विक रेल नेटवर्को में से एक भारतीय रेल रोजगार प्रदान करनेवाली दुनिया की सातवीं बड़ी व्यावसायिक इकाई भी है. देश में यात्र और माल ढुलाई का सबसे सस्ता और भरोसेमंद साधन भी रेल ही है. रेल में सुधार और बेहतरी की प्रक्रिया की धीमी गति अरसे से चिंता की बात रही है. मोदी ने सत्ता संभालते साफ कर दिया था कि रेल उनकी महत्वपूर्ण प्राथमिकताओं में से एक है.
सरकार ने सितंबर के महीने में प्रसिद्ध अर्थशास्त्री बिबेक देबरॉय के नेतृत्व में विशेषज्ञों की एक उच्च-स्तरीय कमिटी का गठन किया था, जिसे एक वर्ष के भीतर रेल बोर्ड के पुनर्गठन और रेल के सुचारू संचालन के लिए सुझाव प्रस्तुत करने हैं. कमिटी अपने सुझावों का प्रारंभिक प्रारूप अगले वर्ष अप्रैल तक देश के सामने रखेगी और उस पर नागरिकों से राय मांगेगी.
अगस्त में जारी विदेशी निवेश नीति में सरकार ने कहा है कि उच्च गति के रेल-तंत्र, उपनगरीय गलियारों और विशिष्ट माल ढुलाई परियोजनाओं में 100 फीसदी विदेशी मालिकाना हो सकता है, लेकिन बुनियादी रेल सेवा और सुरक्षा में ऐसा नहीं किया जायेगा. निजीकरण आर्थिक बेहतरी का एकमात्र कारगर तरीका नहीं है, लेकिन रेल को विकास की पटरी पर लाने के लिए उसे व्यावसायिक रूप से पेशेवराना बनाना होगा और नियुक्तियों से लेकर निवेश तक की मौजूदा नीतियों की गंभीर समीक्षा करनी होगी. कोंकण रेलवे और दिल्ली मेट्रो की सफलता भारतीय रेल के लिए आदर्श उदाहरण हैं. सार्वजनिक उपक्रम रहते हुए रेल उध्र्वगामी रुख अपना कर देश के विकास को गति दे सकता है.