राजनीति में एक मिजाज ऐसा भी

चंचल सामाजिक कार्यकर्ता डॉ लोहिया के निधन के बाद समाजवादी दो खेमो में बंट गये (एक में मधु लिमये, जार्ज फर्नाडिस थे, दूसरे में राज नारायण, जनेश्वर मिश्र जी थे). हम देबू दा की वजह से जार्ज के साथ रहे, लेकिन नेता जी से हमारे संबंध कभी भी कटु नहीं हुए. परसों नहीं नरसों नेता […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | December 27, 2014 6:36 AM
चंचल
सामाजिक कार्यकर्ता
डॉ लोहिया के निधन के बाद समाजवादी दो खेमो में बंट गये (एक में मधु लिमये, जार्ज फर्नाडिस थे, दूसरे में राज नारायण, जनेश्वर मिश्र जी थे). हम देबू दा की वजह से जार्ज के साथ रहे, लेकिन नेता जी से हमारे संबंध कभी भी कटु नहीं हुए.
परसों नहीं नरसों नेता जी यानी राज नारायण जी की जयंती है, 31 दिसंबर को. आज हमी फंसे पड़े हैं. कयूम मियां ने फंसा दिया. एक बात बताओ भाई, हमने सुना है कि तुम नेता जी के साथ रहे, कुछ उनके बारे में बोलो. हमारी नयी पीढ़ी को असल नेता की जानकारी नहीं है. और जो नेता इस पीढ़ी से मुखातिब है, वह संदूक से निकल कर आ रहा है या बंदूक लिये आ रहा है. जरा उस दौर की बात बताओ, जब संदूक और बंदूक का चलन नहीं था, तब राजनीति कैसे चलती थी?
हमने लाख हीला-हवाली की, लेकिन न कयूम माने न चिखुरी. नवल उपाधिया ने हमारी नकल उतारी और डोर पकड़ा दी – तो एक रहे नेता जी. नाम रहा राज नारायण. अब आगे बताइए.. चिखुरी ने टुकड़ा जोड़ा- और समाज्बाद भी. 31 दिसंबर को उनकी जयंती भी है.
ए भाई वो मंत्री रहे?
हां पर इस्तीफा दिये या निकाल दिये गये, पता नहीं.
चुनाव भी लड़े रहे?
हां, कुल डेढ़ चुनाव जीते और तीन प्रधानमंत्री को बेदखल किये.
-आयं! कौन-कौन भैया? औ डेढ़ चुनाव?
-हां, 1971 में इंदिरा गांधी से लड़े तो हार गये, लेकिन अदालत ने जीता दिया. यानी इंदिरा गांधी को अदालत ने हराया. और एक मुकम्मिल चुनाव जीते 1977 में और इंदिरा गांधी को हराया. बस इतनी बार जीते, लेकिन राजनीति में मरते दम तक जिंदा रहे.
-और किन प्रधानमंत्रियों को हटाया?
-इंदिरा गांधी, मोरार जी, और चरण सिंह.
आजादी की लड़ाई में कांग्रेस में एक खेमे को समाजवादी कांग्रेस के नाम से जाना जाता था. आजादी मिलने के साथ ही कांग्रेस में अलगौझी हो गयी और समाजवादी, कांग्रेस छोड़ कर बाहर आ गये और अपनी पार्टी बना ली. समाजवादी पार्टी के नेता जी उसी पार्टी में रहे.
भारत की राजनीति में समाजवाद की अवधारणा, उसका विस्तार, उफान और अवसान समझना है, तो राज नारायण के साथ चलिए, सब समझ में आ जायेगा. राज नारायण बनारस के गंगापुर गांव में मोतीकोट परिवार के श्री अनंत प्रसाद सिंह के पुत्र थे. मोतीकोट राजा बनारस की ही एक कड़ी रहा. लेकिन राज नारायण उस परिवार को, उसकी खुशहाली को अगर जीते तो आज मोतीकोट, गंगापुर, अनंत सिंह कब के मर चुके होते. लेकिन इन सब को तो इतिहास में जीना था, इसलिए कि राज नारायण को आजीवन विद्रोही होना था. गांधी, नेहरू, लोहिया, जेपी, आचार्य जैसी एक से बढ़ कर एक विभूतियां नौजवानों को आकर्षित कर रही थीं. उस समय राज नारायण काशी विश्वविद्यालय के छात्र थे, जब वे अंगरेजी निजाम के खिलाफ खुल कर सामने आये और छात्रों का नेतृत्व किया. 1942 के करो या मरो के नारे में शामिल नारायण को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया. आजादी के बाद डॉ लोहिया के सिपाही के रूप में उधम मचानेवाले राज नारायण अपनों के बीच और जन सामान्य में ‘नेता जी’ कहे जाने लगे.
1971 में नेता जी से हम पहली बार मिले और मिलते ही बवाल हो गया. यह वह दौर था, जब उत्तर प्रदेश में चौधरी चरण सिंह मुख्यमंत्री रहे. और आते ही उन्होंने जो बड़े काम किये, उसमें एक था छात्र संघ का खात्मा. इस फैसले के खिलाफ तमाम छात्र विद्रोह पर उतर आये. लेकिन चौधरी साहब बहुत जिद्दी थे. अपने फैसले से हटनेवाले नहीं थे. तमाम छात्र नेताओं पर अनगिनत मुकदमे दर्ज किये गये और उन्हें गिरफ्तार किया गया. हम भी उसी में से एक थे. 23 दिन जेल काट कर लौटे थे. थोड़ा चर्चित भी हो गये थे, क्योंकि हमने चौधरी चरण के मंच पर चढ़ कर उनका माइक खींचा था. उसी साल हम काशी विश्वविद्यालय पहुंचे थे. और समाजवादी युवजन सभा का एक सदस्य मान लिये गये थे.
डॉ लोहिया के निधन के बाद समाजवादी दो खेमो में बंट गये (एक में मधु लिमये, जार्ज फर्नाडिस थे, दूसरे में राज नारायण, जनेश्वर मिश्र जी थे). हम देबू दा की वजह से जार्ज के साथ रहे, लेकिन नेता जी से हमारे संबंध कभी भी कटु नहीं हुए. बहुत सारी घटनाओं का चश्मदीद गवाह हूं. नेता और कार्यकर्ता के ये रिश्ते अब सियासत से गायब हैं.
अबे नवल के बच्चे! आज है कोई ऐसा नेता जो इस मिजाज का हो? 1974 के जेपी आंदोलन में बिहार सरकार ने कहा कोई भी नेता बिहार नहीं आने पायेगा. पर दो जन पहुंच गये- एक राज नारायण, दूसरे जार्ज फर्नाडिस. यह कहानी फिर कभी कि किस तरह पटना पहुंचते ही नेता जी वेटिंग रूम में जाकर बैठ गये और पुलिस उन्हें कुर्सी समेत ट्रेन से बैरन वापस ले गयी. वो कुर्सी कहां है जानते हो?
मोको का मालुम! कह कर नवल उपाधिया गाते हुए चलते बने.. मीठी छुरी से किया हलाल.. छोरा..
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