या इलाही बता ये माजरा क्या है?
आजकल देश में बड़ी अजीब-अजीब घटनाएं हो रही हैं. विपक्ष ऐसी-ऐसी बातों के लिए सरकार को दोषी ठहराते हुए कोसने लगता है जिससे ‘सरकार’ का कोई वास्ता ही नहीं है. पेश है कुछ केस स्टडी. केस स्टडी एक : आजकल धर्मान्तरण पर देशभर में चिल्ल-पों मची हुई है. क्यों भई! धर्मान्तरण कोई इस देश में […]
आजकल देश में बड़ी अजीब-अजीब घटनाएं हो रही हैं. विपक्ष ऐसी-ऐसी बातों के लिए सरकार को दोषी ठहराते हुए कोसने लगता है जिससे ‘सरकार’ का कोई वास्ता ही नहीं है. पेश है कुछ केस स्टडी.
केस स्टडी एक : आजकल धर्मान्तरण पर देशभर में चिल्ल-पों मची हुई है. क्यों भई! धर्मान्तरण कोई इस देश में नयी बात है क्या? चुनाव के ऐन पहले देखिये, कई नेता टिकट की प्रत्याशा में तुरंत पार्टी बदल लेते हैं. यह धर्मान्तरण नहीं है? जनता भी तो यही करती है. एक- दो बार तो परखती है. फिर उसका भी धर्मान्तरण हो जाता है. कभी इस पार्टी का तो कभी उस पार्टी का ‘धर्म’ उसे अच्छा लगने लगता है. क्योंकि पार्टी वाले उसे तमाम स्वर्ग, जन्नत वगैरह उसके घर पहुंचाने का वादा करते हैं. इसलिए वह मतदाता भी अपना धर्मान्तरण करता रहता है. अब प्रधानमंत्री ने ऐसे मामूली मामले पर संसद में अपनी जबान नहीं खोली तो क्या गलत किया?
केस स्टडी दो : ठंड के बनते-बिगड़ते रिकार्डो के बीच सबसे ज्यादा वंचित समाज प्रभावित होता है. ठंड बढ़ने के साथ ही मरने वालों का आंकड़ा भी बढ़ता है. यह आंकड़ा उसी तबके से आता है, जो गर्मियों में लू से और बरसात में बाढ़ से मरता है. दरअसल, न कोई शीतलहर से मरता है और न ही लू से. मरता है तो गरीबी से. उसकी गरीबी मौसम के बदलावों से अधिक मारक होकर सामने आती है. अब इस ठंड के मौसम में जरा ठंडे दिमाग से सोचिए, कोई गरीब है तो इसमें भला सरकार का क्या दोष? यह भी कोई मुद्दा है सरकार को दोषी ठहराने का!
केस स्टडी तीन : चोरी कई तरह की होती है. रु पये-पैसों की, माल की, जान की, सोच की, विचार की, नाम की या फिर नारों की. इसमें चौकीदार का क्या दोष? चौकीदार चाहे देश का हो या गली अथवा बाजार का, फर्क नहीं पड़ता. कौन है जो मूंगफली खरीदते हुए रेहड़ी पर खड़े-खड़े पांच-सात मूंगफली चुपचाप उठा कर नहीं खाता? क्या यह चोरी में शामिल है? ऐसे में भला ब्लैक मनी की चोरी की चिंता में दुबले होने की जरूरत क्या है?
केस स्टडी चार : वह जमाने लद गये जब सरकारों से रोटी, कपड़ा, मकान मांगा जाता था. सब्सिडी वाले सिलेंडर मांगे जाते थे. यूरिया मांगा जाता था. अब हर कोई सरकारों से जान-माल की हिफाजत चाहता है. आतंकी युग हो या सतयुग, किसी भी युग में पूर्ण सुरक्षा असंभव ही रही है. पहले चंगेजों और नादिरशाहों के घोड़ों और रथों के नीचे आकर लोग कुचले जाते थे. आजकल अस्पताल में बाइक सवार किसी की खबर लेने जाता है तो कुछ देर में उसकी खुद की खबर आ जाती है. मंत्री तक सड़क से आकाश तक असुरक्षित हैं. जब अमेरिका जैसे दुनिया के सबसे ‘ताकतवर’ देश के लोग आतंकियों से सुरक्षित नहीं हैं, तो भारत की सरकार को क्यों कोस रहे हो भाइयो!
अखिलेश्वर पांडेय
प्रभात खबर, जमशेदपुर
apandey833@gmail.com