असली-नकली नये साल का फेरा

सत्य प्रकाश चौधरी प्रभात खबर, रांची नये साल के स्वागत में, जनता चौराहे पर बुलंद आवाज में गाना बज रहा है- म्यूजिक बजेगा लाउड तो राधा नाचेगी. लेकिन यहां राधा की जगह कूड़ा चुननेवाले बच्चे बोरी किनारे रख कर नाच रहे हैं. पप्पू पनवाड़ी इस नजारे को देख जो महसूस कर रहे हैं, वही महसूस […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | January 2, 2015 6:18 AM
सत्य प्रकाश चौधरी
प्रभात खबर, रांची
नये साल के स्वागत में, जनता चौराहे पर बुलंद आवाज में गाना बज रहा है- म्यूजिक बजेगा लाउड तो राधा नाचेगी. लेकिन यहां राधा की जगह कूड़ा चुननेवाले बच्चे बोरी किनारे रख कर नाच रहे हैं. पप्पू पनवाड़ी इस नजारे को देख जो महसूस कर रहे हैं, वही महसूस करते हुए चचा गालिब ने कहा था- बाजीचा-ए-अत्फाल है दुनिया मेरे आगे/होता है शब-ओ-रोज तमाशा मेरे आगे.
यह साबित करता है कि पप्पू फलसफे में गालिब से कम कतई नहीं है, बस उनके पास वो अंदाज-ए-बयां नहीं है. तभी रुसवा साहब पहुंचे. पप्पू के आदाब अर्ज करने से पहले ही उन्होंने नये साल की मुबारकबाद टिका दी. पप्पू फिर फलसफाना अंदाज में आ गये, ‘‘काहे का नया साल, वही हड्डी वही खाल! न मनमोहन के समय भूखे थे और न मोदी-युग में मालपुआ उड़ा रहे हैं.’’ नये साल को लेकर पप्पू की बेरुखी देख रुसवा साहब बगल में खड़े मुन्ना बजरंगी से मुखातिब हुए और उन्हें ‘हैप्पी न्यू ईयर’ कहा. मुन्ना का राष्ट्रवाद उफन पड़ा, ‘‘काहे का न्यू ईयर? यह आंग्ल नववर्ष है. पाश्चात्य अपसंस्कृति.
इसी की वजह से हमारे देश का नैतिक पतन हो रहा है. छेड़खानी और बलात्कार हो रहा है.. हम लोगों का नववर्ष तो चैत्र माह में पड़ता है. शुक्ल पक्ष प्रतिपदा को. तब दीजिएगा नववर्ष की शुभकामना. लेकिन वो आपको याद कहां रहेगा?’’ रुसवा साहब इस जोरदार तकरीर से सिटपिटा गये. किसी तरह उनके मुंह से बस इतना निकला, ‘‘लेकिन मोदी जी ने तो नये साल की मुबारकबाद दी है?’’ रुसवा साहब को और रुसवा होने से बचाते हुए मैंने उन्हें नये साल की मुबारकबाद पेश की. मुन्ना को यह उकसानेवाली हरकत लगी. उनकी आहत भावनाएं और आहत हो गयीं. ऐसा उनके साथ होता ही रहता है. अभी ‘पीके’ ने उनकी भावनाओं को आहत किया, तो यूपी के सीएम अखिलेश यादव ने उसे टैक्स-फ्री कर दिया. यह उकसाने वाली हरकत नहीं, तो और क्या है?
मुन्ना जब ‘उकस’ जाते हैं, तो लाठी-डंडा लेकर उतर आते हैं, इसलिए मैंने मामला संभालने की कोशिश की, ‘‘भई, मुन्ना की बात में दम है. यह भी कोई नया साल मनाने का वक्त है! इतनी ठंड है कि बिना पउवा अंदर गये इंसान रजाई से बाहर न निकले, नाचना तो दूर की बात है. वहीं चैत महीने के क्या कहने! क्या सुहावना मौसम होता है! रात ऐसी नशीली कि बिना पिये ही मन झूमने लगे.’’ यह सुन मुन्ना की बांछें खिल उठीं.
मैंने कहा, ‘‘मुन्ना भाई, आप बरसों से लाठी लेकर निकल रहे हैं, लेकिन वैलेंटाइन डे, न्यू इयर रुकवा नहीं पाये. ऐसा क्यों नहीं करते कि आप पुरातन भारतीय संस्कृति का ‘मदनोत्सव’ (प्रेम व काम का उत्सव) फिर से शुरू करें, जो भर बसंत चले और उसी में नववर्ष भी मने.. जब अपनी संस्कृति में ऐसा मौज-मेला होगा, तब कौन पूछेगा पश्चिमी त्योहारों को?’’ मुन्ना के चेहरे का रंग बदलने लगा, शायद उनकी भावनाएं फिर आहत हो गयी हैं.

Next Article

Exit mobile version