नये साल में नयी सरकार से उम्मीदें
झारखंड में नयी सरकार की कमान अब रघुवर दास के हाथ में है. नये साल में नयी सरकार से आम लोगों की नयी उम्मीदें हैं. नये मुख्यमंत्री भी इससे अवगत भी हैं और राजनीति के माहिर खिलाड़ी हैं. ऐसे में काम करने और उम्मीदों पर खरा उतरने में उन्हें कोई परेशानी होगी, इसकी संभावना कम […]
झारखंड में नयी सरकार की कमान अब रघुवर दास के हाथ में है. नये साल में नयी सरकार से आम लोगों की नयी उम्मीदें हैं. नये मुख्यमंत्री भी इससे अवगत भी हैं और राजनीति के माहिर खिलाड़ी हैं. ऐसे में काम करने और उम्मीदों पर खरा उतरने में उन्हें कोई परेशानी होगी, इसकी संभावना कम ही है. बहरहाल, राज्य की जनता को क्या चाहिए?
अच्छी सड़क हो. निर्बाध बिजली मिले. अच्छे शैक्षणिक संस्थान खुलें. स्वास्थ्य सुविधा मिले. अपराध और भय से मुक्त राज्य बने आदि-आदि. राज्य में पहली बार बहुमत की सरकार बनी है, तो जनता की आकांक्षाएं पूरी करने में दिक्कत भी नहीं होनी चाहिए. बाकी दिल्ली से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद झारखंड के विकास में निजी दिलचस्पी लेंगे, यह उम्मीद भी यहां की जनता को है. पिछले 14 सालों में राज्य की जो स्थिति बनी है, उससे हर कोई वाकिफ है. ऐसे में नयी सरकार को संभल-संभल कर तेजी से विकास का खाका तैयार करना होगा. नये मुख्यमंत्री के पास शासन का अनुभव रहा है. वह पांच बार से लगातार विधायक रहे हैं.
डिप्टी सीएम और कैबिनेट मंत्री के तौर पर भी काम कर चुके हैं. बिना खींचतान और दबाव के वे निर्णय ले सकते हैं. ऐसे में राज्य के विकास की गति तेज, यह हर आम और खास की ख्वाहिश है. झारखंड के युवा बेरोजगार हैं. जनता स्वास्थ्य, पानी व बिजली समेत कई परेशानियों से गुजर रही है. राज्य में नक्सलवाद हावी है. आधे से अधिक जिले नक्सलियों की गिरफ्त में है. कोल्हान व पलामू के कुछ इलाकों में ऐसी स्थिति है कि शाम होने के बाद वहां आवागमन ठप हो जाता है. दोपहर में भी लोग डरे-सहमे रहते हैं.
इन तमाम परिस्थितियों में राज्य में नयी सरकार बनी है, इसलिए इस सरकार से यहां के लोगों की बहुत उम्मीदें हैं. यहां जिन हालात का जिक्र किया गया है, ऐसा नहीं है कि यह सब एक दिन की बात है. कई वर्षो से यह स्थिति है. इस दौरान कई सरकारें बनीं और चली गयीं, लेकिन स्थिति में कोई बदलाव नहीं आया. अब जबकि नयी सरकार का गठन हो चुका है, नयी सरकार रफ्तार पकड़े और विकास की गंगा बहे, राज्य के सभी लोगों की यही चाहत है. ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि क्या नयी सरकार इन अपेक्षाओं पर खरा उतरेगी या पुराने रास्ते पर ही चलेगी?