जेपी आंदोलन की पत्रिकाएं

।।सुरेंद्र किशोर।।(वरिष्ठ पत्रकार) बात 1974 की है. बिहार आंदोलन यानी जेपी आंदोलन चल रहा था. 5 जून, 1974 को पटना के ऐतिहासिक गांधी मैदान में जेपी की सभा हुई. उससे पहले राज्य भर से आये लोगों ने प्रदर्शन किया. सभा में अन्य लोगों के साथ–साथ आंदोलन से जुड़े पत्रकार भी राज्यभर से जुटे थे. कुछ […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | July 19, 2013 2:21 AM

।।सुरेंद्र किशोर।।
(वरिष्ठ पत्रकार)

बात 1974 की है. बिहार आंदोलन यानी जेपी आंदोलन चल रहा था. 5 जून, 1974 को पटना के ऐतिहासिक गांधी मैदान में जेपी की सभा हुई. उससे पहले राज्य भर से आये लोगों ने प्रदर्शन किया. सभा में अन्य लोगों के साथसाथ आंदोलन से जुड़े पत्रकार भी राज्यभर से जुटे थे. कुछ पत्रिकाएं तो पहले से ही निकलती थीं. वे सरकारी विज्ञापनों पर निर्भर थीं. पर जब आंदोलन शुरू हुआ और उस पर सरकारी दमन तेज हो गया तो कई पत्रिकाएं आंदोलन के समर्थन में खबरें छापने लगीं. कुछ पत्रपत्रिकाओं का प्रकाशन आंदोलन आरंभ होने के बाद शुरू हुआ. इस तरह राज्य के विभिन्न हिस्सों से निकल रहे अनेक पत्रपत्रिकाएं और बुलेटिन आंदोलन के पक्ष में अलख जगाने लगे.


5 जून 1974 को गांधी मैदान में एक पत्रकार से पूछा गया कि आप लोग सरकारी विज्ञापन बंद हो जाने का खतरा उठा कर भी क्यों आंदोलन को मदद पहुंचा रहे हैं? उन्होंने कहा कि हमारी आत्मा पूरी तौर पर मरी नहीं है. उन्होंने यह भी कहा कि जब इन दिनों हम युवकों और आम लोगों को अपना अखबार पढ़ते हुए देखते हैं, तो बड़ा संतोष होता है. ऐसे प्रकाशनों में से कुछ के नाम अब भी लोगों को याद होंगे. उनमें नव बिहार प्रमुख था. पटना से प्रकाशित प्रमुख दैनिक अखबार प्रदीप के बाद आंदोलन की लगातार खबरें देने में नव बिहार का स्थान था. इसके बाद लोक आस्था, साफसाफ और युगवाणी ने आंदोलन का समर्थन किया. लोक आस्था का जेपी आंदोलन के समर्थन और सरकार के खिलाफ तीखे तेवर के कारण उसके संपादक विजय रंजन मीसा के तहत गिरफ्तार हुए.


बिहार
में अखबार और पत्र पत्रिकाएं पढ़नेवालों की हमेशा ही बड़ी संख्या रही है. यदि कोई राजनीतिक आंदोलन या अभियान हो तब तो उनकी बिक्री और भी बढ़ जाती है. आंदोलन को दबाने के लिए कई बार राज्य सरकार को कफ्यरू लगाना पड़ता था. पर पटना में जैसे ही कफ्यरू हटता था, दिल्ली और कलकत्ता के अखबार खरीदने के लिए रेलवे स्टेशन के पास भीड़ लग जाती थी. ऐसे खबरपिपासु लोगों की जिज्ञासा को शांत करने में छोटे स्थानीय अखबार मदद पहुंचाते थे.


आंदोलनकारी
छात्रों का मुखपत्र छात्र संघर्ष नाम से निकलता था. जेपी से सीधे जुड़े छात्रोंयुवकों ने तरुण संघर्ष नाम से अपना बुलेटिन चलाया. समाजवादियों की साप्ताहिक पत्रिका जनता ने भी कुछ दिनों तक अपना दैनिक बुलेटिन निकाला. आंदोलन से जुड़े लोगों के अलावा आम लोग भी इन्हें चाव से पढ़ते थे. जेपी आंदोलन 18 मार्च, 1974 को शुरू हुआ और आपातकाल तक चला. उस समय यह आंदोलन भूमिगत हो गया. आपातकाल में पत्र, पत्रिकाएं और बुलेटिन कौन कहे, आंदोलन समर्थक और सरकार विरोधी परचे भी छापने की मनाही थी. फिर भी कुछ साहसी लोग भूमिगत ढंग से आपातकाल विरोधी प्रकाशनों का वितरण करते रहे. उससे पहले खुले आंदोलन के दौरान जैसेजैसे आंदोलन का जिलों में विस्तार होने लगा, ऐसे बुलेटिन प्रकाशितवितरित होने लगे.


मुजफ्फरपुर
के साप्ताहिक पत्र आईना ने आंदोलन के प्रचार में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी. यह पहले सरकार के खिलाफ नहीं थी, पर जब उसके संपादक ने आंदोलनकारियों पर दमन चक्र चलते देखा तो वे खतरा मोल लेकर भी आंदोलन के पक्ष की खबरें देने लगे. मुंगेर के प्रकाशन नयी मशाल और कफन को अपने आंदोलनपक्षी रुख के कारण शासन का कोप भाजन बनना पड़ा. भागलपुर में बिहार जीवन और दैनिक छात्र बुलेटिन, गया में गया समाचार और साप्ताहिक समरभूमि की जेपी आंदोलन में भूमिका थी.


जेपी
आंदोलन सही मायने में एक जन आंदोलन था. तब तक नेताओं से भी लोगों का अधिक मोहभंग नहीं हुआ था. मोतिहारी से नया दिन और आज की आवाज, छपरा से अपना बिहार, आरा से लोक चेतना का प्रकाशन हुआ. यहां तब की कुछ ही पत्रिकाओं की चर्चा हो पायी है. इनके अलावा आंदोलन के दौरान असंख्य परचे छपे, पुस्तिकाएं छपीं और पुस्तकों का प्रकाशन हुआ. बिहार आंदोलन मूलत: छात्रों और युवकों ने शुरू किया था. बाद में आम लोग भी आंदोलन से जुड़े. इस आंदोलन में सिर्फ पढ़नेलिखने वाले लोग अधिक थे, बल्कि आंदोलन ने भी आंदोलनकारियों में पढ़नेलिखने की आदत डाली.

Next Article

Exit mobile version