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शिक्षक का वेतन पांच रुपये होगा, तो रिजल्ट क्या मिलेगा?

जनवरी 1939 में आदिवासी महासभा की बैठक में जयपाल सिंह मुंडा ने कहा था अनुज कुमार सिन्हा 3 जनवरी, 1903. यानी जयपाल सिंह मुंडा की जन्म दिन. वही जयपाल सिंह, जिन्हें दुनिया एक अंतरराष्ट्रीय हॉकी खिलाड़ी के तौर पर जानती है, देश एक प्रखर वक्ता और ताकतवर राजनीतिज्ञ के रूप में जानता है, जबकि झारखंड […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | January 3, 2015 5:44 AM
जनवरी 1939 में आदिवासी महासभा की बैठक में जयपाल सिंह मुंडा ने कहा था
अनुज कुमार सिन्हा
3 जनवरी, 1903. यानी जयपाल सिंह मुंडा की जन्म दिन. वही जयपाल सिंह, जिन्हें दुनिया एक अंतरराष्ट्रीय हॉकी खिलाड़ी के तौर पर जानती है, देश एक प्रखर वक्ता और ताकतवर राजनीतिज्ञ के रूप में जानता है, जबकि झारखंड उन्हें अलग राज्य के सशक्त नेता और आदिवासियों की आवाज के लिए. चाहे वह खेल का मैदान में, अलग राज्य के लिए सभा / बैठक हो या फिर संसद, उनका प्रभाव दिखता था. विदेशों में पढ़ाई करने, लंबे समय तक अपनी माटी से दूर रहने के बाद जब वे लौटे, तो आदिवासी समाज के विकास के प्रति चिंतित नजर आये. खुल कर बोले भी. मोटे वेतन की नौकरी को छोड़ कर आंदोलन का नेतृत्व करने के लिए तैयार भी हो गये.
19 जनवरी 1939 को जयपाल सिंह रांची लौट आये थे. 20 से 22 जनवरी, 1939 तक आदिवासी महासभा की रांची में महासभा बुलायी गयी थी. जयपाल सिंह पहली बार आ रहे थे. क्रेज तो था ही. हरमू नदी के किनारे मैदान में सभा होनेवाली थी. इसका प्रचार किया गया था. लोगों से स्वागत करने का आह्वान किया गया था. इस बात को प्रचारित किया गया था कि ऑक्सफोर्ड में पढ़े और यूरोप, अमेरिका और अफ्रीका की यात्र कर चुके जयपाल सिंह को सुनने के लिए आदिवासी बाजा-झंडा लेकर लोग आयें. जोरदार स्वागत हुआ था.
पहले दिन की सभा में 65 हजार लोग मौजूद थे. अलग राज्य के बारे में तो बात हुई ही थी , लेकिन जब जयपाल सिंह ने अपना पहला भाषण दिया, तो उसमें शिक्षा पर जोर था, खनिजों की चर्चा की थी. यह साबित करता है कि जयपाल सिंह आदिवासियों के उत्थान के लिए शिक्षा को कितना महत्वपूर्ण मानते थे. जयपाल सिंह ने दूसरी महासभा (1939) में दिये गये अपने भाषण में कहा था : बगैर शिक्षा के आदिवासियों का विकास नहीं हो सकता. आदिवासी ही सबसे ज्यादा अशिक्षित हैं, इसलिए उन्हें शिक्षित करने के लिए हर मदद मिलनी चाहिए, लेकिन इस ओर सरकार (तब बिहार सरकार थी) ध्यान नहीं दे रही. मिशनरी शिक्षा के क्षेत्र में काम कर रहे हैं, लेकिन सरकार मिशन के स्कूलों को मिलनेवाले ग्रांट को लगातार घटा रही है.
जयपाल सिंह यहीं नहीं रुके, उन्होंने शिक्षकों को मिलनेवाले कम वेतन पर भी उसी समय (आज से 75 वर्ष पहले) सवाल उठाते हुए कहा था- एक शिक्षक को, जिसे प्रतिमाह पांच रुपये वेतन मिले और उन्हें ही शिक्षा का कर्ता-धर्ता मान लिया जाये, तो कैसे रिजल्ट मिलेगा (साभार : आदिवासी, महासभा विशेषांक, मार्च 1939). जयपाल सिंह शिक्षा की सुविधा-व्यवस्था पर कितना जोर देते थे, इसका उदाहरण है उनका पहला भाषण. बैठक आदिवासियों की थी, अलग राज्य के लिए एकजुटता दिखाने की थी, कमान नये नेतृत्व को देने के लिए, लेकिन इस बैठक में कई बार स्कूल-कॉलेज पर चर्चा हुई. उन दिनों रांची में कोई डिग्री कॉलेज नहीं था. जयपाल सिंह ने बैठक में कहा-हमें बताया गया था कि रांची में एक डिग्री कॉलेज खोला जायेगा, लेकिन अब कहा जा रहा है कि डिग्री कॉलेज खोलने का निर्णय बदल दिया गया है. इससे लगता है कि आदिवासी क्षेत्रों के विकास के लिए खर्च किये जाने पैसे को कैसे दूसरे मद में खर्च कर दिया जा रहा है.
जयपाल सिंह अपने क्षेत्र के संसाधन से परिचित थे. पहली बैठक में ही उन्होंने कहा था-छोटानागपुर खनिज संपदा में दुनिया में अमीर क्षेत्रों में एक है. अबरख (जिसका अब पता भी नहीं चलता) के लिए पूरी दुनिया में इस क्षेत्र की पहचान है. मैंगनीज, अल्युमीनियम, लोहा, हीरा, सोना, चांदी, निकेल, तांबा का भी यहां भंडार है. जंगलों की संपत्ति है. हमारे पास हिंदुस्तान के बड़े से बड़े कारखानों का केंद्र है (जरूर उनका इशारा टाटा स्टील की ओर था, क्योंकि 1939 में इस क्षेत्र में न तो बोकारो स्टील प्लांट लगा था, न एचइसी या अन्य कोई बड़ा उद्योग). पहली ही बैठक में जयपाल सिंह द्वारा छोटानागपुर के संसाधनों का उल्लेख करना यह बताता है कि उनके दिमाग में अलग राज्य के विकास का खाका तैयार था. अगर उनके जीवित रहते झारखंड राज्य का गठन हो गया होता, नेतृत्व उनके हाथ में होता, तो आज एक अलग झारखंड दिखता.

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