समोसे के दर्द में छुपी समाज की दास्तान

।। अजित कुमार ।। (प्रभात खबर, जमशेदपुर) आप सभी को जायकेदार नमस्ते. जायकेदार इसलिए, क्योंकि बात कुछ खाने-पीने की होगी. बात शुरू हो इससे पूर्व मैं बचपन की एक उलझन को साझा करना चाहूंगा. जब बाल पत्रिकाओं मेंमुझेजानवरों की कहानी पढ़ने को मिलती तो उसके पात्र शेर, भालू, सियार, हिरण आदि आपस में बात कर […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | July 20, 2013 4:02 AM

।। अजित कुमार ।।

(प्रभात खबर, जमशेदपुर)

आप सभी को जायकेदार नमस्ते. जायकेदार इसलिए, क्योंकि बात कुछ खाने-पीने की होगी. बात शुरू हो इससे पूर्व मैं बचपन की एक उलझन को साझा करना चाहूंगा. जब बाल पत्रिकाओं मेंमुझेजानवरों की कहानी पढ़ने को मिलती तो उसके पात्र शेर, भालू, सियार, हिरण आदि आपस में बात कर रहे होते.

यह मेरे लिए आश्चर्य का विषय था कि लेखक इन जंगली जानवरों की भाषा आखिर कैसे समझ जाते हैं, जबकि मैं अपनी गौ-माता की बातें भी नहीं समझ पाता. खैर, बादल में पानी कैसे पहुंचता है, सूरज पश्चिम में डूबता है तो पूरब से कैसे निकलता है, कुएं के ऊपर बोलने से अंदर से आवाज कैसे आती है, जैसे अनेक सवालों की तरह ही यह भी अनुत्तरित प्रश्नों की सूची में शामिल होकर रह गया. हालांकि, इनमें से कई सवालों के जवाब समय के साथ मिलते गये.

अभी कुछ दिनों पहले समोसे के दर्शन (अंतराल अधिक होने के कारण) हुए. उस दिन शाम को जब मैं दुकान पर पहुंचा, तो इधर-उधर देखा. कहीं समोसा नजर नहीं आ रहा था. मुङो लगा कि हो सकता है कि ‘आउट ऑफ स्टॉक’ हो गया हो. मगर, शाम की शुरुआत में इस तरह की स्थिति कुछ हजम नहीं हुई, तो वहां के एक कर्मचारी से पता किया. उसने एक कोने की ओर इशारा किया.

जब मैं बतायी गयी जगह पर पहुंचा, तो वहां पड़े समासे को देख ऐसा लगा जैसे वह सहमा हुआ हो. उसके आसपास बच्चे-बड़े सभी चटखारे लेकर चाउमिन का आनंद ले रहे थे. शाम के नाश्ते के कभी ‘फ्रंट रनर’ रहे समोसे की इस स्थिति को देख मुङो वर्तमान पाकिस्तानी और ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेट की टीम याद हो आयी. बेचारे कैसे अर्श से फर्श पर आ गये हैं. जिसका मन हुआ वही कुछ सुना कर चला जाता है. जब मैं समोसे की टोकरी के और करीब पहुंचा, तो एक आवाज सुनायी पड़ी.

वह वाकई आवाज थी या फिर मेरे कान बज रहे थे, मैं यह भेद करने की स्थिति में उस समय नहीं था. एग रोल, मंचूरियन चाउमिन, हांगकांग चाउमिन, शंघाई चाउमिन, सैंडविच, पाव-भाजी, फिंगर चिप्स, स्प्रिंग रोल, पिज्जा, बर्गर, कटलेट आदि के शोर में गुम हो रही इस आवाज को गौर करने पर ऐसा लगा जैसे किसी अतल गहराई से यह आ रही हो. इसमें शीर्ष से चूकने का अफसोस, नयी पीढ़ी की उपेक्षा का दर्द और असुरक्षित भविष्य की चिंता थी.

चाउमिन और स्प्रिंग रोल ने कैसे युवाओं को साध कर समोस की कुरसी हिलायी! पिज्ज और बर्गर ने क्या गुल खिलाये इसकी पूरी दास्तान थी. वाकई व्यंजनों की दुनिया में भी सामान्य दुनिया की तरह ही अव्वल आने की होड़ है. यहां आकर मैं बाल पत्रिकाओं की कहानियों के जानवरों की बात समझने वाले गुण को थोड़ा बहुत पहचानने लगा हूं.

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