विदेशी निवेश के खतरे
।। प्रमोद भार्गव ।। (वरिष्ठ पत्रकार) रक्षा और दूरसंचार क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश यानी एफडीआइ की अनुमति देने के उपायों से लगता है कि अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री हताश हो चुके हैं. विडंबना यह कि जिस दिन केंद्रीय कैबिनेट 12 क्षेत्रों में एफडीआइ बढ़ाने का ताबड़तोड़ निर्णय ले रही थी, उसी दिन दुनिया की सबसे बड़ी […]
।। प्रमोद भार्गव ।।
(वरिष्ठ पत्रकार)
रक्षा और दूरसंचार क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश यानी एफडीआइ की अनुमति देने के उपायों से लगता है कि अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री हताश हो चुके हैं. विडंबना यह कि जिस दिन केंद्रीय कैबिनेट 12 क्षेत्रों में एफडीआइ बढ़ाने का ताबड़तोड़ निर्णय ले रही थी, उसी दिन दुनिया की सबसे बड़ी इस्पात निर्माण कंपनी आर्सेलर मित्तल ने ओड़िशा में अपनी प्रस्तावित परियोजना को समेट लेने का फैसला लिया.
50 हजार करोड़ की इस परियोजना के रद्द होने के ठीक एक दिन पहले पॉस्को ने कर्नाटक से अपनी स्टील परियोजना का काम समेटने का ऐलान किया था. यह परियोजना 30 हजार करोड़ की लागत से गड़ग जिले की मुंडारगई क्षेत्र में स्थापित की जा रही थी. 80 हजार करोड़ के विदेशी निवेश से दो दिन के भीतर ही हाथ धोना पड़ा. साफ है, उदारीकरण का गुब्बारा फूट चुका है. अब हमें खुद आत्मनिर्भर बनना है. यदि ऐसा होता है तो रक्षा मामलों में हमारी गोपनीयता भी बरकरार रहेगी और रक्षा सौदों में घूसखोरी नहीं होगी.
केंद्र सरकार ने दूरसंचार में सौ प्रतिशत एफडीआइ को मंजूरी दी है. इससे इस आशंका को बल मिला है कि यह मंजूरी राष्ट्रीय सुरक्षा पर गंभीर असर डाल सकती है. चूंकि देश की सुरक्षा प्रणाली काफी हद तक दूरसंचार तकनीक पर निर्भर है, इसलिए विदेशी हस्तक्षेप राष्ट्रीय सुरक्षा को प्रभावित करके देश के रक्षा-तंत्र से खिलवाड़ कर सकता है. यदि ऐसे में पड़ोसी देश चीन या पाकिस्तान इस क्षेत्र में निवेश करते हैं तो यह खतरा और भी बढ़ जाने की उम्मीद है. याद रहे देश का दूसरा सबसे बड़ा घोटाला 2जी स्पेक्ट्रम संचार के ही क्षेत्र में हुआ था.
केंद्रीय कैबिनेट ने रक्षा मंत्री एके एंटनी की मंशा को नकारते हुए रक्षा क्षेत्र में एफडीआइ की सीमा मौजूदा 26 फीसदी से बढ़ा कर 49 फीसदी कर दी है. दरअसल इस बाबत कुछ समय पहले वाणिज्य मंत्री आनंद शर्मा ने एंटनी को पत्र लिख कर रक्षा क्षेत्र में निवेश बढ़ाने का सुझाव दिया था. इस पत्र का जवाब देते हुए एंटनी ने कहा था, ‘रक्षा क्षेत्र में एफडीआइ नहीं बढ़ायी जा सकती है, क्योंकि ऐसा हुआ तो विदेशी कंपनियों पर देश की निर्भरता बढ़ जायेगी, और घरेलू रक्षा उद्योग की प्रगति प्रभावित होगी. इससे अत्याधुनिक हथियारों के लिए दूसरे देशों और मूल उपकरण बनाने वाली कंपनियों पर हमारी निर्भरता बढ़ेगी, जो खतरे से खाली नहीं.’
एफडीआइ के लोभ में केंद्र सरकार ने न केवल देश की सुरक्षा को खतरे में डाल दिया है, बल्कि रक्षा उपकरण बनानेवाली भारतीय कंपनियों की प्रगति में भी बाधा डाल दी है. रक्षा क्षेत्र में एफडीआइ की छूट देते हुए सरकार की शर्त है कि यदि किसी कंपनी के पास ऐसी विलक्षण तकनीक है, जो दुनिया के किसी अन्य देश या कंपनी के पास न हो, तो वह भारत में किसी भी सीमा तक विदेशी धन का निवेश कर सकेगी. मसलन कोई कंपनी अपनी तकनीक को विलक्षण बता कर भारतीय रक्षा क्षेत्र में सौ फीसदी सेंधमारी कर सकती है. हालांकि इस तकनीक के इस्तेमाल के लिए उसे सुरक्षा संबंधी मंत्रिमंडलीय समिति की इजाजत लेनी होगी. लेकिन जब रक्षा मंत्री के ही सुझाव को नहीं माना गया, तो समिति की क्या बिसात!
ऐसे फैसलों से तो अच्छा था कि सरकार रक्षा मामले में आत्मनिर्भर होने के रास्ते तलाशती. वैसे ही अदूरदर्शी नीतिगत निर्णयों के कारण भारतीय सेनाओं की जरूरतों के मुताबिक रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) नवीनतम हथियारों एवं अन्य रक्षा उपकरणों के डिजाइन तैयार नहीं कर पा रहा है. इसी कारण हम गुणवत्तापूर्ण सक्षम उपकरणों का पर्याप्त उत्पादन नहीं कर पा रहे हैं. दूसरी बात यह कि हथियारों का विलंब से उपयोग, अनुपयोगी लगने लगता है. क्योंकि नयी तकनीकों के आने से पुरानी तकनीक समर भूमि में भरोसे की नहीं रह जाती. इसलिए खासतौर से रक्षा क्षेत्र में विदेश कंपनियों का मुंह ताकने की बजाय, अच्छा है हम अपनी ही सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों को प्रोत्साहित करें और उनकी कार्य व उत्पादन क्षमता बढ़ाएं.
सरकार भारतीय उद्योगपतियों को भी रक्षा उद्योग में उतारने के लिए प्रेरित करे. हमें रक्षा उत्पाद के क्षेत्र में आत्मनिर्भर होना है तो हम उन्हें आकर्षक सुविधाएं और करों में छूट देकर रक्षा उत्पादों से जोड़ सकते हैं. रक्षा क्षेत्र में यह कितनी दयनीय स्थिति है कि ताबूत तक हमें आयात करने होते हैं, जबकि बढ़ईगिरी के इस काम में किसी दुर्लभ तकनीक की जरूरत नहीं पड़ती. आज हमें ऐसी स्वदेशी तकनीक पर आधारित शस्त्र व उपकरण प्रणाली को विकसित करने की जरूरत है, जिसका उत्पादन भी हम स्वयं करें.