वर्तमान में जहां पूरा देश विकास की अंधी दौड़ में शामिल है, वहीं समाज का एक तबका युवा वर्ग भी है, जिस पर देश का दारोमदार टिका हुआ माना जाता है. यह वर्ग वर्तमान में ‘फोर–डी’ यानी ड्राइविंग, ड्रेस, ड्रिंकिंग और डिनर में ही सबकुछ तलाश रहा है.
ड्राइविंग से प्रतिवर्ष जितने सड़क हादसे होते हैं, उनमें युवाओं की संख्या अधिकतम होती है. जोश में होश खोकर गाड़ी चलाने की लत जानलेवा साबित होती है. दूसरा ड्रेस है, जिस पर प्रतिवर्ष लाखों–करोड़ों रुपये पानी की तरह बहा दिये जाते हैं, सिर्फ सुंदर दिखने की चाहत में. वह भी कैसी सुंदरता, जो तन ही न ढक पाये! फैशन की इस दौड़ में युवाओं ने अश्लीलता को समाज के सामने परोसा है.
तीसरा ड्रिंकिंग है, जो इस कदर मशहूर है युवाओं के बीच कि इसके बिना उनके खुशी या गम पूरे ही नहीं हो पाते. भारत देश में आज भी भूखे पेट सोनेवालों और आधा पेट खाकर अपनी जिदंगी गुजारनेवालों की कमी नहीं है. यहां एक आदमी रोटी बेलता है, दूसरा रोटी खाता है और तीसरा आदमी रोटियों से खेलता है. ये डिनरवाले युवा तीसरे आदमी की ही श्रेणी में आते हैं.
।। रितेश कु दुबे ।।
(कतरास)