गदहों की सूची में साहब का नाम

शकील अख्तर प्रभात खबर, रांची शाम को थका-मांदा घर लौट रहा था. दूर से ही दरवाजे पर खड़ी बीवी पर नजर पड़ गयी. फौरन थैले में रखे सामान टटोलने लगा कि सब कुछ सही-सलामत है या नहीं. सुबह थमायी गयी लिस्ट और सामान में तालमेल न होने पर आफत का खतरा सिर पर मंडरा रहा […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | January 5, 2015 5:34 AM
शकील अख्तर
प्रभात खबर, रांची
शाम को थका-मांदा घर लौट रहा था. दूर से ही दरवाजे पर खड़ी बीवी पर नजर पड़ गयी. फौरन थैले में रखे सामान टटोलने लगा कि सब कुछ सही-सलामत है या नहीं. सुबह थमायी गयी लिस्ट और सामान में तालमेल न होने पर आफत का खतरा सिर पर मंडरा रहा था. दरवाजे तक पहुंचने से पहले ही मुझे एहसास हो गया कि मिर्च खरीदना भूल गया हूं.
डरते-डरते दरवाजे तक पहुंचा. बीवी उफनती नदी की तरह नहीं, किसी शांत तालाब की तरह शांत खड़ी थी. सूरत देख मैंने भी चैन की सांस ली. सोचा, चलो आज जान छूटी. पर दिमाग में यह सवाल कौंध रहा था कि आखिर बीवी ने ऐसी शक्ल क्यों बना रखी है? तभी बीवी ने मुस्करा कर कहा, ‘‘अरे वाह! आप तो वक्त पर आ गये. बिल्कुल देर नहीं की.’’
हैरत की बात यह कि उसने सामान की जांच-पड़ताल किये बगैर ही कहा, ‘‘बैठिए, मैं चाय लाती हूं.’’ इस बदलते रंग को देख मुझे लगा कि कहीं मेरी सास तो नहीं आ धमकी हैं! मैंने वहीं खड़े-खड़े ही पूछ लिया, ‘‘मम्मी जी आयी हैं क्या?’’ मम्मी के बाद जी लगाने की कुछ मजबूरियां और शराफत के तकाजे हैं.
वैसे उनके बारे में मेरे ख्याल क्या हैं, इसे आप समझ ही गये होंगे. बहरहाल, यह सुनते ही बीवी ने तेवर बदल लिये. आंखें तरेर कर बोली, ‘हुंह! उन्हें इतनी फुरसत है.’’
मैं बिना कोई जवाब दिये अंदर गया और मुंह-हाथ धो कर चाय के चक्कर में बैठ गया. बीवी बगैर चाय की प्याली के ही बगल में आकर बैठ गयी. इठलाते हुए बोली, ‘‘ए जी, एक बात कहें.’’ इतना सुनते ही मेरे दिमाग में बुरे ख्याल आने लगे. क्योंकि ऐसी मीठी बोली वह किसी बड़ी गड़बड़ी के बाद ही निकालती है, वरना उसकी जबान हमेशा आग ही उगलती है. कुछ ही देर में बीवी चाय की प्याली के साथ आयी और बात जहां पे छोड़ी थी वहीं से शुरू की, ‘‘हां, तो मैं बता रही थी कि आज दिन में कुछ लोग दरवाजा पीट रहे थे. मैं काम में उलझी थी. दरवाजा खोलते ही हाथ में कागज-कलम लिये एक मरियल से आदमी पर नजर पड़ी.
मैं गुस्से से बेकाबू हो गयी. डपटते हुए पूछा- कोई आफत आ गयी थी, जो इतनी जोर से दरवाजा पीटे जा रहे थे? अब क्या तुम्हारी नानी मर गयी हैं, बोलते क्यों नहीं हो क्या काम है? डर के मारे लड़खड़ाती आवाज में उसने कुछ कहा. मुझे लगा नाम पूछ रहा है. सो मैंने तुम्हारा नाम बता दिया. तुम्हारा नाम सुनते ही उसने मुस्करा कर पूछा, कहां है? उसकी मुस्कुराहट कुछ अजीब लगी. मैंने गुस्से में उससे कहा- अरे गदहा, अभी तक क्या वह घर पर बैठा है. अपने काम पर गया है. इतना सुन कर कुछ लिखने के बाद वह पड़ोस में चला गया. मैं फिर अपने काम में लग गयी. थोड़ी देर बाद घर में काम करनेवाली बुआ आयी. मुस्कुराते हुए मुझसे बोली- मैडम, आपने तो गजब कर दिया. वो मरियल सा आदमी जनगणना नहीं, पशुगणना कर रहा था. और आपने साहब का नाम गदहों की लिस्ट में लिखवा दिया है.’’

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