आतंक के प्रति सचेत रहे भारत
एमजे अकबर प्रवक्ता, भाजपा ऐसा लगता है कि 2015 बड़े खतरों का वर्ष होगा. पारंपरिक युद्धों से भारी तबाही होती है, लेकिन उनका प्रारंभ और अंत होता है. पर, अघोषित युद्ध कभी खत्म नहीं होते. भारत को अपनी रक्षा के लिए नाड़ियों में इस्पात और आत्मा में कुछ लोहे की आवश्यकता होगी. वर्ष 2015 के […]
एमजे अकबर
प्रवक्ता, भाजपा
ऐसा लगता है कि 2015 बड़े खतरों का वर्ष होगा. पारंपरिक युद्धों से भारी तबाही होती है, लेकिन उनका प्रारंभ और अंत होता है. पर, अघोषित युद्ध कभी खत्म नहीं होते. भारत को अपनी रक्षा के लिए नाड़ियों में इस्पात और आत्मा में कुछ लोहे की आवश्यकता होगी.
वर्ष 2015 के बारे में पक्की भविष्यवाणी यह की जा सकती है कि सच में होनेवाला या संभावित आतंकवाद हमारी सहनशक्ति की परीक्षा लेता रहेगा. पाकिस्तान के कराची से रवाना हुए और गुजरात के पोरबंदर से 365 किमी दूर भारतीय सुरक्षा बलों द्वारा रोक लिये गये समुद्री नाव को लेकर कई सवाल उठ रहे हैं.
इस पर परदा डालने के इरादे से गढ़ी गयी कहानियां, यह ‘व्याख्या’ प्रस्तुत कर रही हैं कि यह नाव तस्करी का साधन था, न कि कोई आतंकी वाहन. लेकिन, तस्कर गिरफ्तार होने के बजाय मरना क्यों पसंद करेंगे? भारत बड़ी संख्या में पाक मछुआरों को पकड़ता है, जो उसकी सीमा में अवैध रूप से घुस जाते हैं, पर वे अपने आप को मार नहीं देते. तस्कर जानते हैं कि गाहे-बगाहे जेल जाना उनके धंधे में दी जानेवाली कीमत है. लेकिन जो किसी आत्मघाती इरादे से चले होते हैं, वे मरना ही पसंद करते हैं.
इस मिशन का समय और गुजरात के रूप में लक्ष्य का चुनाव इस प्रयास की कहानी बयान करता है. प्रवासी भारतीयों का वार्षिक समारोह गांधीनगर में सात से नौ जनवरी तक है. इसके बाद वाइब्रेंट गुजरात समिट का आयोजन प्रस्तावित है. अमेरिकी विदेश मंत्री जॉन केरी और संयुक्त राष्ट्र महासचिव बान की मून जैसे अतिविशिष्ट अतिथि आनेवाले हैं. लेकिन इस वर्ष सबसे महत्वपूर्ण आगंतुक बराक ओबामा होंगे, जो पहले ऐसे अमेरिकी राष्ट्रपति हैं, जो अपने कार्यकाल में दो बार भारत की यात्र कर रहे हैं. वे गणतंत्र दिवस समारोह में मुख्य अतिथि होंगे. यह ओबामा और प्रधानमंत्री मोदी द्वारा अल्प-समय में ही बनायी गयी व्यक्तिगत घनिष्ठता और राजनीतिक सहयोग का परिचायक है.
जो कुछ अभी हुआ है, उस पर भारतीय मीडिया में बहसें होंगी, लेकिन यह रेखांकित करना जरूरी है कि खतरे को रोक पाने के आधार पर खुफिया तंत्र की सफलता आंकी जाती है. हमारी सुरक्षा व्यवस्था जब उस नाव पर नजर रख रही थी, तो वह सूचनाओं के कारण ही कर रही थी. यह एक आम घटना कतई नहीं थी. भारतीय सुरक्षा-तंत्र के सामने चुनौती यह है कि असफलता आत्मघाती चरमपंथियों के लिए बाधा नहीं बनती है. उनके लिए मौत इस जीवन से परे किसी बेहतर स्थिति में संक्रमण मात्र है. कहते हैं कि निरंतर चौकसी स्वाधीनता की कीमत है. नये संदर्भ में निरंतर निगरानी राष्ट्र की स्थिरता की कीमत बन गयी है. अस्तित्व में आने के 14 सप्ताह के बाद ही कश्मीर घाटी पर सैन्य कब्जे के इरादे से पाकिस्तान द्वारा शुरू किये गये भारत के विरुद्ध युद्ध का लक्ष्य बदल गया है, क्योंकि उसकी सेना को यह बात समझ में आ गयी है कि पारंपरिक युद्ध से ऐसा संभव नहीं है. अब उनका जोर आतंकवाद और सामाजिक अस्थिरता पर है और वे इसके लिए मौके की ताक में रहते हैं.
भारत के विरुद्ध संघर्ष की नीति ने पाकिस्तानी राज्य-व्यवस्था में सत्ता का एक और स्तर जोड़ दिया है. वहां सेना स्थायी रूप से सत्ता के शिखर पर है. पूर्व राष्ट्रपति जनरल परवेज मुशर्रफ ने सुझाव दिया है, ‘सरकार में सेना की भूमिका को संस्थागत रूप दिया जाना चाहिए. सेना के अनिर्वाचित अफसरों को आंतरिक और बाहरी सुरक्षा के साथ भारत, अफगानिस्तान और अमेरिका के साथ संबंधों पर निर्णय का विशेषाधिकार मिले.’ इसका एक लाभ यह है कि इससे तख्तापलट की जरूरत खत्म हो जायेगी. सेना के प्रभाव के नीचे असंतोष के विभिन्न प्रकार लिये निर्वाचित राजनीतिक वर्ग है, जिसके पास अर्थव्यवस्था और देश की निगरानी का काम है. तीसरा स्तर आइएसआइ के जरिये काम करनेवाला उग्र मुल्लाओं, आतंकी समूहों एवं सेना का गंठबंधन है. इस गंठबंधन को भारत-पाक के विरुद्ध माने जानेवाले लक्ष्यों पर हमला करने के लिए हथियार, धन और अन्य जरूरी चीजें मुहैया करायी जाती हैं. लेकिन जब यह पाकिस्तानी राज्य को और अधिक चरमपंथी बनाने की कोशिश करता है, तो इसके संचालक और लाभार्थी उत्तेजित हो जाते हैं.
उनके बुनियादी स्वभाव को देखते हुए आतंकी समूहों को बिल्कुल काबू में नहीं रखा जा सकता. कभी-कभी अमेरिका के क्रोध या चीन के लगातार बढ़ते संदेह को शांत करने के लिए लड़ाकों या आइएसआइ द्वारा तैयार गिरोहों का भी खात्मा करना पड़ता है. इससे आतंकियों द्वारा बदले की कार्रवाई के लिए उकसावा मिलता है, जैसा कि हाल में पेशावर में हुआ. सैद्धांतिक तौर पर पाकिस्तान का सैन्य-राजनीतिक अभिजात्य वर्ग तो यह चाहेगा कि जेहादी एक दस्ते के तौर पर आदेशानुसार ही हमले करें, ताकि उनकी जिम्मेवारी लेने की जहमत से बचा जा सके. लेकिन यह जरूरी नहीं है कि जो आप चाहें, आपको मिल ही जाये.
ऐसा लगता है कि 2015 बड़े खतरों का वर्ष होगा. पारंपरिक युद्धों से भारी तबाही होती है, लेकिन उनका प्रारंभ और अंत होता है. पर, अघोषित युद्ध कभी खत्म नहीं होते. भारत को अपनी रक्षा के लिए नाड़ियों में इस्पात और आत्मा में कुछ लोहे की आवश्यकता होगी.