पूरा उत्तर व मध्य भारत कड़ाके की ठंड से ठिठुर रहा है. पश्चिमी विक्षोभ व पर्वतीय हवाओं से जीवन अस्त-व्यस्त हो गया है. शीत लहर ने उत्तर भारत के कई लोगों को लील भी लिया है. सरकारी उदासीनता से न तो रैन बसेरों की व्यवस्था हुई और न ही अलाव की.
वैसे बात सिर्फ इस साल की नहीं है. 21वीं सदी का गुजरता हर एक वर्ष सदी का सबसे गर्म और सबसे ठंडा वर्ष होने का तमगा ले रहा है. ऐसे में पर्यावरण के इस हठयोग से प्राणियों पर पड़नेवाले दुष्प्रभाव का अंदाजा लगाया जा सकता है. औद्योगिकरण, शहरीकरण और वैश्वीकरण के युग में दिन-ब-दिन पर्यावरणीय संरक्षण को ताक पर रखा गया. वैश्विक तापमान, प्रदूषण, ओजोन परत का क्षरण, कार्बन उत्सर्जन एवं जल संकट की समस्याएं ज्वलंत बनी हुई हैं. आखिर इन सबके पीछे जिम्मेदार कौन है?
सुधीर कुमार, गोड्डा