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ताजा हवा के झोंके का इंतजार है मुझे

अजीत पांडेय प्रभात खबर, रांची राजनीति के धुरंधरों की एक अजीब फितरत है. जिसको गाली देंगे, कुछ दिनों बाद उससे गलबहियां कर लेंगे. जब यही करना है, तो फिर चुनावी भाषणों में विरोधियों के खिलाफ गाल बजा कर लोगों को बेवकूफ क्यों बनाना? राजनेताओं में कमिटमेंट नाम की तो चीज ही नहीं रह गयी है. […]

अजीत पांडेय
प्रभात खबर, रांची
राजनीति के धुरंधरों की एक अजीब फितरत है. जिसको गाली देंगे, कुछ दिनों बाद उससे गलबहियां कर लेंगे. जब यही करना है, तो फिर चुनावी भाषणों में विरोधियों के खिलाफ गाल बजा कर लोगों को बेवकूफ क्यों बनाना? राजनेताओं में कमिटमेंट नाम की तो चीज ही नहीं रह गयी है. हालिया चार विधानसभा चुनावों के परिणामों के बाद, पहले महाराष्ट्र और अभी जम्मू-कश्मीर में जो तसवीर सामने आयी वह कुछ यही बयां करती है. महाराष्ट्र में पीएम मोदी, शरद पवार और उनकी पार्टी राकांपा को कोसते नहीं थक रहे थे.
उसी राकांपा ने शिव सेना से पहले देवेंद्र फडणवीस की सरकार को विधानसभा में विश्वास मत के दौरान विरोध में वोट न देकर बचाया. इसे भाजपा और राकांपा की अंदरूनी सांठगांठ न कहें तो क्या कहें? अब कश्मीर में खंडित जनादेश के बाद सरकार बनाने के लिए भाजपा नेशनल कॉन्फ्रेंस और पीडीपी का मुंह ताक रही है. ये वही दल हैं, जिन्हें मोदी जी बाप-बेटे और बाप-बेटी की पार्टी कह रहे थे. खैर यह तो रही राजनीति की बात.
यहां तो गड़बड़ चलती ही रहती है. लेकिन बाकी जगह का हाल भी कुछ अच्छा नहीं है. इन दिनों पाकिस्तान से लगी सीमा पर तनाव, ठंड के मौसम में भी माहौल को गरमाये हुए है. ‘56 इंच के सीनेवाली’ देश की सरकार को भी कोई उपाय नहीं सूझ रहा. दिल्ली में बैठे आला नेता और मंत्री भी कोई जवाब देने के लिए सेना और बीएसएफ पर ही निर्भर हैं. नये वर्ष में खबरों की सिलसिलेवार कड़ी में दो चौंकानेवाले खबरें भी सुनने और पढ़ने को मिलीं. पहली, गुजरात में सर्वाधिक महिला अपराध होते हैं. दूसरी, नयी सरकार बनने के बाद दिल्ली में बलात्कार बढ़ गये हैं.
अब पता नहीं देश की राजधानी में असुरक्षित महिलाओं के ‘अच्छे दिन’ कब आयेंगे? सरकार ने महामना पं मदनमोहन मालवीय और पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को भारत रत्न देने की घोषणा के बाद पुरस्कारों पर भी राजनीति राजनीति होने लगी. कुछ दिनों तक सब ठीक रहा, लेकिन बसपा सुप्रीमो ‘बहन जी’ ने दलितों की उपेक्षा का आरोप लगाते हुए कहा कि दोनों भारत रत्न ब्राrाणों को ही क्यों? सरकार किसी को पुरस्कार देने के लिए क्या मानदंड अपनाती है, यह सरकार पर निर्भर करता है. सरकार उन्हें ही पुरस्कार के लिए चुनती है जिन्हें वह वैचारिक रूप से अपने निकट पाती है.
मेरा मानना है कि पुरस्कार किसी भी व्यक्ति के कार्य, योगदान और उपलब्धि को रेखांकित नहीं कर पाते. हां, सरकारों को पुरस्कारों की सूची में उदारता दिखाते हुए राजनीतिक विरोधियों को भी सम्मान देना चाहिए. उधर, खबर आ रही है कि सायना नेहवाल भी पद्म विभूषण के लिए नाम नहीं भेजे जाने से नाराज हो गयी थीं. यह अपने मुंह मियां मिट्ठू बननेवाली बात हो गयी. सब निराश करनेवाली खबरें. ताजा हवा का झोंका क्यों नहीं आता?

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