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धार्मिक उन्माद भड़काने की साजिश

बजरंग दल और विश्व हिंदू परिषद् के उपद्रवी तत्वों तथा भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पैदल सिपाहियों का फिल्म ‘पीके’ के विरुद्ध नाराजगी का प्रदर्शन उनके अर्ध-शिक्षित लंपटई का परिचायक है, जो अपने धर्म को ही नहीं जानते तथा विराट हिंदू धर्म पर अपनी ओछी समझ को थोपने पर आमादा हैं. दरअसल, वे धार्मिक […]

बजरंग दल और विश्व हिंदू परिषद् के उपद्रवी तत्वों तथा भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पैदल सिपाहियों का फिल्म ‘पीके’ के विरुद्ध नाराजगी का प्रदर्शन उनके अर्ध-शिक्षित लंपटई का परिचायक है, जो अपने धर्म को ही नहीं जानते तथा विराट हिंदू धर्म पर अपनी ओछी समझ को थोपने पर आमादा हैं. दरअसल, वे धार्मिक भावनाओं को भड़का कर वोटों के लिए देश बांट देने की दुर्भावना से तैयार की गयी एक सोची-समझी योजना पर काम कर रहे हैं.

मैं सिनेमा हॉल में फिल्में देखने शायद ही कभी जाता हूं, लेकिन फिल्म ‘पीके’ के लिए मैंने ऐसा किया. वर्ष 2014 के आखिरी दिन मैं और मेरी पत्नी घर के नजदीक पीवीआर में गये. हमने आमिर खान की यह नयी फिल्म देखी और इसका पूरा आनंद उठाया. यह फिल्म धर्म की आड़ में फलने-फूलनेवाले कर्मकांडों, अंधविश्वासों और पूर्वाग्रहों पर करारा व्यंग्य है. यह ऐसे धार्मिक ढोंगियों, तथाकथित मुल्लाओं, साध्वियों, संतों-महंतों और गुरुओं पर भी जोरदार चोट है, जो आम लोगों की असुरक्षा और भय का दोहन कर अपनी जीविका चलाते हैं. यह फिल्म धर्म के विरुद्ध नहीं है. दरअसल, यह आध्यात्मिक अर्थ में धर्म के प्रति गंभीर आस्था प्रकट करती है, जहां भक्त और ईश्वर के बीच की यात्र व्यक्तिगत और स्पष्ट है. फिल्म का निशाना उन झूठे बिचौलियों पर केंद्रित है, जो धर्म का दुष्टता से दोहन कर धन कमाते हैं.

सिनेमा हॉल से बाहर आते हुए मैं स्वयं से पूछ रहा था कि आखिर इस फिल्म ने बजरंग दल और विश्व हिंदू परिषद के लोगों को इतना क्रोधित क्यों कर दिया है. कई दिनों तक ये लोग उपद्रव मचाते रहे, निजी और सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाते रहे और फिल्म के पोस्टर जलाते रहे. एक स्तर पर मैं उनके उन्माद और क्रोध का वास्तविक कारण समझ सका. धर्म नियंत्रण करने का एक शक्तिशाली औजार है. इसके नाम पर लोगों ने अपना और दूसरों का खून बहाया है. इसके नाम पर सर्वाधिक भयानक क्रूरताएं और भेदभाव की घटनाएं अंजाम दी गयी हैं. इसके नाम पर दंगे और नरसंहार हुए हैं. बजरंग दल और विश्व हिंदू परिषद्, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और इससे जुड़े अन्य समूह भी, धर्म का उपयोग लोगों के बीच धार्मिक विभाजन को उकसाने के लिए करने में भरोसा रखते हैं. उनका लक्ष्य अल्पकालिक राजनीतिक लाभ के लिए धार्मिक ध्रुवीकरण को बढ़ाना है. वे अपने को सभी हिंदुओं की तरफ से बोलने का अधिकारी होने का दंभ भरते हैं, लेकिन परोपकार की भावना के लिए नहीं. उनका लक्ष्य हिंदू धर्म का उपयोग कर दूसरे धर्मो के लोगों के साथ भाईचारे, प्यार और एकता के संबंध को तोड़ना है. दूसरे शब्दों में, उनके लिए हिंदू धर्म नियंत्रण करने का एक औजार मात्र है.

फिल्म ‘पीके’ धर्म पर काबिज होने का इरादा रखनेवालों पर सवाल उठाती है, यह स्वयंभू बिचौलियों के आधार पर सवाल उठाती है, यह स्वार्थ-पूर्ति के लिए धर्म का उपयोग करनेवाले बिचौलियों के अस्तित्व पर सवाल उठाती है. इसीलिए, स्वाभाविक रूप से बजरंग दल और विश्व हिंदू परिषद् ‘पीके’ के संदेश से बहुत आहत हैं.

असली समस्या यह भी है कि फिल्म का विरोध करनेवाले हिंदू धर्म के विचारों की अद्भुत व्यापकता से असाधारण तौर पर अनभिज्ञ हैं. दार्शनिक स्तर पर हिंदू तत्व-मीमांसा ईश्वर को सर्वव्यापी, सर्वशक्तिमान, सर्वज्ञ, अविभाज्य ब्रrा के रूप में देखती है, जो किसी भी भौतिक स्वरूप, और वस्तुत:, किसी भी परिभाषा से परे है, क्योंकि कोई भी परिभाषा उस उपमाहीन इकाई की संपूर्णता को सीमित कर देगी (नेति, नेति, यह भी नहीं, यह भी नहीं). हिंदू दर्शन की निर्गुण और अद्वैत परंपराओं ने सदियों से ईश्वर के इस अपरिभाषित एकाकार का गुणगान किया है. अगर ईश्वर स्वयं ही किसी रूप और परिभाषा से परे है, तो फिर ये कौन लोग हैं, जो उसकी ओर से बोलने का दावा कर अपने स्वार्थो को साधने में लगे हुए हैं?

हिंदू धर्म ने सदैव अपने भीतर तीक्ष्ण सत्यता और स्पष्टवादिता से युक्त आत्मालोचन की परंपरा को जीवित रखा है, जिसके कारण यह समय-समय पर नित्य होता रहा है. इस परंपरा के सर्वाधिक स्मरणीय और प्रभावशाली संवाहक स्वयं शंकराचार्य थे, जिन्होंने आठवीं सदी में हिंदू धर्म का पुनरुद्धार किया था, जब कर्मकांडों और अंधविश्वासों के अतिरेक तथा इनके परिणामस्वरूप बौद्ध धर्म की लोकप्रियता के कारण यह पतन के कगार पर था. भज गोविंदम् में शंकराचार्य का यह अर्थपूर्ण श्लोक है: ‘जटिलो मुण्डी लुञ्जित केश: काषायान्बर बहुकृत वेश:/ पश्यन्नपि च न पश्यति मूढ: उदर निमित्तं बहुकृत वेष:’, अर्थात, जटायुक्त, मुंडन या बाल बढ़ा कर रखना और केसरिया वस्त्र धारण करना छलावा है, धूर्तता है, मूर्खो, वे जीविकोपाजर्न के लिए साधु बने हैं. निर्वाण शतकम् में शंकराचार्य ने अंध-कर्मकांडों पर फिर हमला किया है : ‘न पुण्यम् न पापम्, न सुख्यम् न दुख्खम्, न मंत्रो न तीर्थम्, न वेदो न यज्ञम्’. अर्थात, पुण्य नहीं, पाप नहीं, सुख नहीं, दुख नहीं, वेद नहीं, यज्ञ नहीं. महत्वपूर्ण बात यह है कि हिंदू धर्म ऐसी आलोचनाओं की अनुमति देता है. सामी धर्मो के विपरीत, हिंदू धर्म में एक ईश्वर, एक पवित्र पुस्तक, एक चर्च और एक पोप नहीं है. यह अपने अनुयायियों को सनातन धर्म की वृहत् परंपरा में रहते हुए प्रतिकार की अनुमति देता है. यही कारण है कि हिंदू धर्म में चार्वाक विचार परंपरा भी शामिल है, जिसका तर्क है कि ईश्वर का अस्तित्व नहीं है, और इसमें अपरंपरागत तंत्र परंपरा के लिए स्थान भी है.

इसलाम में भी सूफी परंपरा ने मुल्लाओं के अंधविश्वासों और कर्मकांडों की आलोचना में सराहनीय योगदान दिया है. सूफी रहस्यवाद को बेहतरीन रूप में आत्मसात करनेवाले गालिब का प्रसिद्ध शेर है : ‘कहां मयखाने का दरवाजा गालिब, और कहां वाइज/ बस इतना जानते हैं कल वो जाता था जब हम निकले’. जो बात एक स्तर पर व्यंग्य है, वह पूर्णता की उत्कृष्ट दृष्टि की पुनरावृत्ति है, और यह गालिब से बेहतर कोई और बयान नहीं कर सकता है : ‘हम मुवाहिद हैं, हमारा केश है तर्क-ए-रसूम/ मिल्लतें जब मिट गयीं, अज्ज-ए-ईमां हो गयीं’. ईश्वर एक है, यह हमारी आस्था है. जब सभी प्रतीक मिट जाते हैं, तब आस्था पवित्र हो जाती है. पारंपरिक धर्मो पर यह स्वाभाविक संदेह शक्तिशाली भक्ति आंदोलन का भी मूल भाव था. गुरु नानक, कबीर, तुकाराम, मीरा और अनेक संतों ने संगठित धर्म के पाखंड को अस्वीकार कर सर्वोच्च सत्ता से सीधे संवाद के असीम आनंद का पक्ष लिया.

बजरंग दल और विश्व हिंदू परिषद् के उपद्रवी तत्वों तथा भारतीय जनता पार्टी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पैदल सिपाहियों का फिल्म ‘पीके’ के विरुद्ध नाराजगी का प्रदर्शन उनके अर्ध-शिक्षित लंपटई का परिचायक है, जो अपने धर्म को ही नहीं जानते तथा विराट हिंदू धर्म पर अपनी ओछी समझ को थोपने पर आमादा हैं. चिंता की बात यह है कि वे असल में धार्मिक भावनाओं को भड़का कर वोटों के लिए देश बांट देने की दुर्भावना से तैयार की गयी एक सोची-समझी योजना पर काम कर रहे हैं. ऐसे में यह बहुत जरूरी है कि समूचे देश को उनकी साजिशों के प्रति सावधान रहना होगा.

पवन के वर्मा

सांसद एवं पूर्व प्रशासक

pavankvarma1953@gmail.com

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