बैंक से बढ़िया तो सुखो बाबू ही हैं

ऋषभ मिश्र कृष्णा प्रभात खबर, भागलपुर सुबह-सुबह अपने खेतों में बिनचुन कक्का बुङो मन से और भारी कदमों के साथ चल रहे थे. यह समय गेहूं बोआई का है. लेकिन उनके खेतों की बोआई अब तक नहीं हुई है. क्योंकि उनके पास पूंजी नहीं है. अधिकतर किसानों ने बोआई कर ली है. सुखो बाबू ने […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | January 10, 2015 5:23 AM

ऋषभ मिश्र कृष्णा

प्रभात खबर, भागलपुर

सुबह-सुबह अपने खेतों में बिनचुन कक्का बुङो मन से और भारी कदमों के साथ चल रहे थे. यह समय गेहूं बोआई का है. लेकिन उनके खेतों की बोआई अब तक नहीं हुई है. क्योंकि उनके पास पूंजी नहीं है. अधिकतर किसानों ने बोआई कर ली है.

सुखो बाबू ने अपने बासा से बिनचुन कक्का की हरकत देख कर दूर से ही जोरदार आवाज में बिनचुन कक्का का हाल-चाल लिया और कहा कि ‘‘खेत परती रखे हो, हम किस दिन काम आयेंगे. सबसे पांच का सैकड़ा लेते हैं. तुम अपने आदमी हो, जो मन में हो दे देना.’’

बिनचुन कक्का जोर से बोले, ‘‘अरे आप तो घर के आदमी हैं जरूरत होगी, तो जरूर बतायेंगे.’’ तभी पगडंडी पर चुल्हाय मरर के साथ बाबा बेत्तर दातून करते हुए आ रहे थे. दोनों आपस में बात कर रहे थे. बाबा बेत्तर चुल्हाय मरर से पूछ रहे थे, ‘‘..तो क्या कहता था मैनेजर?’’ चुल्हाय मरर बताता है, ‘‘मैनैजर कहता था कि मेरा सीना 56 इंच का है.

इस मैंने कहा कि तो छप्पने हजार का लोन पास कर दो न बाबू!’’ दोनों हंसते लगे. तभी बाबा बेत्तर की नजर बुनचुन कक्का पर पड़ी. वह बुनचुन कक्का के खाली खेत की ओर नजर डालते हैं और उन्हें डांटने के अंदाज में कहते हैं, ‘‘तुमको कहते थे न कि बाबूजी के श्रद्ध पर इतना बडा पोपो भंडारा करने की जरूरत नहीं है. सारे पैसे का तुमने भोज कर दिया. अब बताओ खेत बोआई करने के लिए कहां से लाओगे पैसे?’’ बिनचुन कक्का कहते हैं, ‘‘अब जो हो गया बाबा, उस बात को दोहराने से क्या फायदा?’’

बाबा बेत्तर- ‘‘अच्छा तुमने तो लोन के लिए भी आवेदन दिया था, क्या हुआ?’’ बिनचुन कक्का- ‘‘मत पूछिये बाबा, उधर से निराश हो चुके हैं.’’ बाबा बेत्तर कहते हैं, ‘‘ऐसे नहीं मिलेगा हक. हक छीनना पड़ेगा.

चलो बैंक चल कर धरने पर बैठते हैं. कैसे नहीं देगा लोन, लोन तो देना पड़ेगा. वैसे कितने का लोन मांगा है तुमने? तुम तो मेरे अपने आदमी हो, आज ही चलो बैंक. दस बजे घर पर पहुंच जाना.’’

यह कह कर वह आगे बढ़ गये. चुल्हाय मरर बिनचुन कक्का से धीरे से कहता है, ‘‘अरे भाई, बाबा क्या लोन पास करवायेंगे? लोन पास करने के लिए अलगे सेटिंग है. 15 परसेंट पर खुले आम है और रही लोन का पैसा लौटाने की बात, तो कौन लौटा देता है? बात मान लो भैया. नाम बाबा का ही रहेगा, लेकिन हम लोग अंदरे अंदर 15 परसेंट पर सेटिंग कर लेंगे.’’

बिनचुन कक्का कुछ सोच कर कहते हैं, ‘‘भाई ऐसा लोन तो सुखो बाबू भी देते हैं. फिर समय बरबाद करने क्या फायदा?’’ चुल्हाय मरर कहते हैं, ‘‘फिर तुम्हारी जो मरजी भैया, हम चलते हैं.’’ चुल्हाय मरर तेज कदम से बाबा बेत्तर के बराबर पहुंचने का प्रयास करने लगे और बिनचुन कक्का के कदम सुखो बाबू के बासा की ओर बढ़ जाते हैं..

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