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नयी राजनीतिक राह पर श्रीलंका

श्रीलंका में राष्ट्रपति चुनाव में संयुक्त विपक्ष के उम्मीदवार मैत्रीपाला सिरीसेना की जीत को द्वीपीय देश की राजनीति में एक नये चरण की शुरुआत के रूप में देखा जा रहा है. नवनिर्वाचित राष्ट्रपति निवर्तमान राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे की सरकार में लंबे समय तक मंत्री रह चुके हैं. दो माह पहले चुनाव की घोषणा के एक […]

श्रीलंका में राष्ट्रपति चुनाव में संयुक्त विपक्ष के उम्मीदवार मैत्रीपाला सिरीसेना की जीत को द्वीपीय देश की राजनीति में एक नये चरण की शुरुआत के रूप में देखा जा रहा है.
नवनिर्वाचित राष्ट्रपति निवर्तमान राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे की सरकार में लंबे समय तक मंत्री रह चुके हैं. दो माह पहले चुनाव की घोषणा के एक दिन बाद सिरीसेना का सरकार से इस्तीफा देकर संयुक्त विपक्ष का उमीदवार बनना जितना चौंकानेवाला था, यह जीत उससे कम अप्रत्याशित नहीं है.
तमिल विद्रोहियों का खात्मा कर राजपक्षे 2010 में भारी बहुमत से दोबारा राष्ट्रपति चुने गये थे. उसके बाद उन्होंने अधिनायक प्रवृत्ति का परिचय देते हुए महत्वपूर्ण पदों पर अपने नजदीकी रिश्तेदारों को नियुक्त कर दिया था. विरोधियों के दमन और कठोर शासन की आड़ में उच्च पदों पर भ्रष्टाचार में तेज बढ़ोतरी से जनता निराश थी. मीडिया की स्वतंत्रता को भी सीमित करने के प्रयास किये गये.
राजपक्षे ने 10 वर्षो के शासन में देश की अर्थव्यवस्था का द्वार चीन के लिए पूरी तरह से खोल दिया था. चीन के निवेश और आर्थिक मदद से यह आशंका भी बनी कि कहीं देश चीन के भारी कर्जे के बोझ में न दब जाये.
आर्थिक विकास की गति भी संतोषजनक नहीं थी. तमिल विद्रोहियों के दमन के दौरान सेना ने बड़ी संख्या में निदरेष तमिलों की हत्या की थी और लाखों लोग अपना घर-बार छोड़ने पर मजबूर कर दिये गये थे. अंतरराष्ट्रीय दबाव और विपक्ष की मांग के बावजूद तमिल अल्पसंख्यकों को न्याय नहीं मिल सका है. बौद्ध सिंहला कट्टपंथियों के मुसलिम समुदाय पर हमलों को रोकने में सरकार की असफलता से भी लोग निराश थे.
चुनाव से पहले राजपक्षे का समर्थन कर रहे कुछ दल भी साथ छोड़ गये थे. शासन के हर हिस्से पर नियंत्रण के आग्रही और जादू-टोने में भरोसा रखनेवाले राजपक्षे इतने आश्वस्त हो गये थे कि उन्होंने राष्ट्रपति का चुनाव निर्धारित समय से करीब दो वर्ष पूर्व ही कराने का निर्णय ले लिया. कहा जाता है कि उनके ज्योतिषी ने न सिर्फ इस बार, बल्कि अगले चुनाव में भी जीत की भविष्यवाणी की थी.
लेकिन संयुक्त विपक्ष के सामने वे टिक न सके. उम्मीद है कि अपने वादे के अनुरूप नये राष्ट्रपति सिरीसेना विभाजित देश को एक कर श्रीलंका को विकास की राह पर ले जायेंगे.

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