खेल बढ़े, लेकिन पवित्रता बचा कर
* इंडियन बैडमिंटन लीग भारत में बैडमिंटन लीग की शुरुआत में बदलाव की एक दस्तक को सुना जा सकता है. फिलहाल यह बदलाव भले ही बैडमिंटन से जुड़ा है, लेकिन इसमें यह संदेश भी छिपा है कि भारत में क्रिकेट के अलावा दूसरे खेलों को भी गंभीरता से लिया जाने लगा है. भारत में बैडमिंटन […]
* इंडियन बैडमिंटन लीग
भारत में बैडमिंटन लीग की शुरुआत में बदलाव की एक दस्तक को सुना जा सकता है. फिलहाल यह बदलाव भले ही बैडमिंटन से जुड़ा है, लेकिन इसमें यह संदेश भी छिपा है कि भारत में क्रिकेट के अलावा दूसरे खेलों को भी गंभीरता से लिया जाने लगा है.
भारत में बैडमिंटन के बारे में यह लगातार कहा जाता रहा है कि यहां प्रकाश पादुकोण, पुलेला गोपीचंद और सायना नेहवाल जैसे विजेता तो हो सकते हैं, लेकिन विजेताओं की परंपरा नहीं हो सकती. कोई खिलाड़ी विश्व विजेता कैसे बनता है? अकूत प्रतिभा के बल पर कामयाबी हासिल करनवाले विरले होते हैं.
वर्ल्ड चैंपियन्स वास्तव में एक मजबूत तंत्र की देन होते हैं. एक सक्षम तंत्र प्रतिभाओं को निखारने, क्षमता को परिणाम में तब्दील करने का काम करता है. यह ट्रेनिंग सिर्फ खेल अकादमियों में ही नहीं दी जा सकती. अपने आंगन में आप चाहे कितना भी अच्छा क्यों न खेलें, इससे दुनिया को हराने की सलाहियत नहीं आती. दुनिया को हराने का दमखम हासिल करने के लिए वास्तव में दुनिया की सर्वश्रेष्ठ प्रतिभाओं से लोहा लेना होता है.
भारत में क्रिकेट को छोड़ दें, तो दूसरे सारे खेल वास्तव में यहां वैश्विक प्रतिस्पर्धा के माहौल की कमी के कारण पिछड़ते रहे हैं. भारतीय खिलाड़ियों को विश्व के सर्वश्रेष्ठ के साथ खेलने का मौका गिने–चुने चैंपियनशिपों में ही मिलता है. इससे खिलाड़ियों की प्रतिभा में वह धार नहीं आ पाती, जो विजेताओं को हारनेवालों से अलग करती है. खेल के संदर्भ में देखें, तो इंडियन बैडमिंटन लीग की भूमिका इस मायने में सकारात्मक हो सकती है.
इस लीग में दुनिया के कई श्रेष्ठ खिलाड़ी शामिल होंगे. इनके साथ खेलने, इनको खेलते देखने का अनुभव निश्चित तौर पर युवा प्रतिभाओं को निखारने का काम करेगा. लेकिन यहीं इस लीग से जुड़ी चिंताओं पर भी ध्यान देना होगा.
यह लीग वास्तव में एक बिजनेस वेंचर के तौर पर शुरू की गयी है, जिसमें प्रत्येक फ्रेंचाइजी ने अच्छी खासी रकम चुका कर खिलाड़ियों को खरीदा है. ऐसे में खेल पर मोटा पैसा लगानेवाले फ्रेंचाइजी मालिकों से यह उम्मीद करना बेमानी होगा कि उनका असल मकसद खेल को प्रोत्साहन देना होगा.
जब एक खूबसूरत खेल बिजनेस वेंचर में तब्दील होगा, तो जाहिर है कि उसकी पवित्रता को नष्ट करने की कोशिश भी की जायेगी, जैसा कि इंडियन प्रीमियर लीग में स्पॉट फिक्सिंग के तौर पर सामने आ चुका है. इसलिए इंडियन बैडमिंटन लीग को खेल और बिजनेस के बीच संतुलन साधना होगा और यह सुनिश्चित करना होगा कि खेल सिर्फ खेल रहे, पैसा कमाने या टीआरपी बटोरने का साधन न बन जाये.