अब गंगासागर एक बार नहीं बार-बार

आप गंगासागर जायें और वहां रास्ता न भटकें, ऐसा हो ही नहीं सकता. एक ही तरह के रास्ते व एक ही तरह के होगला (एक तरह का पत्ता) के आवास दूर-दूर तक दिखते हैं. ऐसे में अच्छे-अच्छे अपने झुंड से बिछड़ कर कलपने लगते हैं. इन लोगों की मददगार संस्था भी है. बजरंग परिषद. इनके […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | January 14, 2015 5:35 AM

आप गंगासागर जायें और वहां रास्ता न भटकें, ऐसा हो ही नहीं सकता. एक ही तरह के रास्ते व एक ही तरह के होगला (एक तरह का पत्ता) के आवास दूर-दूर तक दिखते हैं. ऐसे में अच्छे-अच्छे अपने झुंड से बिछड़ कर कलपने लगते हैं. इन लोगों की मददगार संस्था भी है. बजरंग परिषद. इनके शिविर के सामने की यह घटना देखिए..

ए बाबू हमरे बड़का के बाबूजी भुलाइ गइल हवे, दुइ घंटा से खोजत बानी. मुंह फुकवना के कवनो पता नइखे चलत. इतना कह कर प्रौढ़ महिला बिलखने लगी.. बार-बार बड़का के बाबू को खोजने की गुहार लगाती महिला ने बताया कि वह पूर्वी उत्तर प्रदेश के गाजीपुर से आयी थी. सुबकते हुए पति के डील-डौल व हुलिया का बारीकी से बखान करती महिला से जब पति का नाम पूछा गया, तो वह इधर-उधर ताकने लगी. अपने मलिकार (पति) का नाम जुबान पर लाना उसके लिए कठिन था. मर जायेगी, पति को गालियां बकेगी लेकिन उनका नाम नहीं पुकारेगी.

चिढ़ कर जब वॉलंटीयर ने कहा कि नाम नहीं बताने पर माइक में घोषणा नहीं करायी जायेगी, तब महिला ने अपने पौराणिक ज्ञान का परिचय देते हुए बताया, जवन लक्ष्मण के बाण मार के बेहोश कइले रहे, आउर जे हनुमान जी के जनेउ से बांधि के ले लंका में ले गइल रहे, उहे हमार पति हउवे. पेशानी पर जोर डालते हुए जब वॉलंटीयर ने पूछा- मेघनाद तो महिला ने मुंडी हिलाते हुए कहा कि हां उहे चौधरी हवें. एनाउंस करने के घंटे भर बाद हांफते हुए मेघनाद चौधरी अवतरित हुए.

पति-पत्नी का मिलन देख कर आस-पास के लोगों की आंखें भी भर आयी. यह घटना दस-पंद्रह वर्ष पहले की है, लेकिन आज भी सैकड़ों लोगों को रोज गंगा सागर मेले में मिलते बिछड़ते देखा जा सकता है. ऐसी मान्यता है कि गंगासागर तीर्थ यात्र जीवन में एक बार करने से ही सारे पाप धुल जाते हैं. पुरखे तर जाते हैं. कपिल मुनि के दर्शन मात्र से जीवन सफल हो जाता है. इन धारणाओं व विश्वास के बूते हर वर्ष लाखों श्रद्धालु बंगाल में गंगा व सागर के संगम पर डुबकी लगाने पहुंचते हैं.

पेशागत सौभाग्य से हमने चार बार अपने पाप धुलवा लिये हैं. दो वर्ष पूर्व अपनी वाइफ का भी पाप धुलवा दिया है. सोचा था कि पत्नी से बिछड़ने का कुछ घंटे का आनंद मेले में उठा सकूंगा. लेकिन हाय रे किस्मत! सदा की तरह इस बार भी अरमान पर पानी फिर गया. कपिलमुनि के दर्शन के बाद पत्नी से हाथ छुड़ा कर भीड़ में गुम हो गया. अपने बिछड़ने के गम में पत्नी के बदहवास और रोआंसा चेहरा देखने की ख्वाहिश लिये मैं पचास कदम भी नहीं गया था कि मोबाइल की घंटी बज गयी. कालर टोन सुनते ही यह आकांक्षा भी धरी की धरी रह गयी. अरे भाई आपकी भाभी का ही फोन था. बगैर टालमटोल हाजिर होना पड़ा. इससे क्या समङो? यही न कि अब गंगासागर जाना बहुते आसान हो गया है. तो आइए प्रेम से बोलें कपिल मुनि की जय. महाराज भगीरथी की जय-जय…..

लोकनाथ तिवारी

प्रभात खबर, रांची

lokenathtiwary@gmail.com

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