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दुष्कर्मियों पर प्रशासन करे कड़ाई

आये दिन देश के विभिन्न कोनों से दुष्कर्म जैसी घिनौनी घटनाओं की खबरें देखने, सुनने और पढ़ने को मिलती हैं. यह अत्यंत शर्मनाक, निंदनीय और जघन्य अपराध है. ऐसी घटनाओं से यह प्रतीत होता है कि देश की कानून व्यवस्था और पुलिस-प्रशासन अपराधियों पर नकेल कसने में नाकाम साबित हो रहे हैं. यही कारण है […]

आये दिन देश के विभिन्न कोनों से दुष्कर्म जैसी घिनौनी घटनाओं की खबरें देखने, सुनने और पढ़ने को मिलती हैं. यह अत्यंत शर्मनाक, निंदनीय और जघन्य अपराध है. ऐसी घटनाओं से यह प्रतीत होता है कि देश की कानून व्यवस्था और पुलिस-प्रशासन अपराधियों पर नकेल कसने में नाकाम साबित हो रहे हैं.

यही कारण है कि अपराध करने वालों के मन में प्रशासन और पुलिस के प्रति भय नहीं है. वे घटनाओं को अंजाम देने में जरा भी संकोच नहीं करते. हालांकि, 16 दिसंबर, 2012 की घटना के बाद देश में कठोर कानून बने हैं. फिर भी ऐसी घटनाएं घट रही हैं. सरकार को इसका हल ढूंढना होगा.

पिछले दिनों रामगढ़ जिले के चितरपुर गांव में दो आदिवासी युवतियों के साथ घटित सामूहिक दुष्कर्म की घटना और फिर पीड़िता की मौत ने दिल को दहला कर रख दिया. अगर इस घटना के विरोध में संथाल समाज का आक्रोश नहीं फूटा होता, तो शायद दुष्कर्मी बच निकलने में कामयाब हो जाते. हालांकि, ऐसी घटनाओं के लिए स्थानीय पुलिस को जिम्मेदार ठहराया जाये, तो यह अनुचित नहीं होगा. पुलिस और अपराधियों का अंतरसंबंध जगजाहिर है. सबसे बड़ी बात यह है कि अगर रक्षक ही भक्षक बन जायेगा, तब तो लाचार और बेसहारों का तो भगवान ही मालिक है. सवाल यह भी पैदा होता है कि यदि देश में इसी तरह पुलिस और अपराधियों के बीच साठगांठ स्थापित होते रहे, तो आनेवाले दिनों में दुष्कर्म जैसी जघन्य घटनाओं पर रोक लगा पाना संभव ही नहीं होगा. यह सिर्फ यहां की जनता ही नहीं, बल्कि केंद्र व राज्य सरकारों के लिए भी बड़ी चुनौती है. चितरपुर के दोषियों को सजा मिल जाती है, तो पुलिस-प्रशासन पर लोगों का भरोसा फिर से कायम होगा.

बैजनाथ प्रसाद महतो, बोकारो

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