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आक्रामक रहनेवाला है दिल्ली चुनाव

दिल्ली में चुनाव किस तरह लड़ा जायेगा, इसकी रूपरेखा रामलीला मैदान में नरेंद्र मोदी की रैली से तय हो गयी. भाजपा और आप ने तय कर लिया है कि एक-दूसरे पर जम कर आरोप लगाने हैं और नकारात्मक प्रचार को प्रमुखता देनी है.. अगर भाजपा बहुमत लाती है, तो वह आर्थिक सुधारों को कड़ाई से […]

दिल्ली में चुनाव किस तरह लड़ा जायेगा, इसकी रूपरेखा रामलीला मैदान में नरेंद्र मोदी की रैली से तय हो गयी. भाजपा और आप ने तय कर लिया है कि एक-दूसरे पर जम कर आरोप लगाने हैं और नकारात्मक प्रचार को प्रमुखता देनी है.. अगर भाजपा बहुमत लाती है, तो वह आर्थिक सुधारों को कड़ाई से लागू कर सकती है, लेकिन कामचलाऊ बहुमत की सूरत में भाजपा को सोचना पड़ेगा कि मध्यम वर्ग को खुश करने के लिए और क्या किया जाये.

दिल्ली में विधानसभा चुनाव की तारीख का ऐलान हो गया है. सात फरवरी को चुनाव और दस फरवरी को नतीजे. यह चुनाव वैसे तो महज 70 विधानसभा सीटों के लिए हो रहा है, वह भी ऐसे राज्य में जिसे पूर्ण राज्य का दर्जा तक हासिल नहीं है, लेकिन इस पर पूरे देश की नजरें टिकी हुई हैं. यह चुनाव मोदी के लिए सबसे बड़ी चुनौती साबित होगा. उन पर भाजपा को दिल्ली में 16 वर्षो बाद जीत दिलाने की जिम्मेवारी होगी. साथ ही यह उनकी अपनी केंद्रीय सरकार का पहला जनमत संग्रह भी होगा. यह चुनाव आम आदमी पार्टी (आप) और अरविंद केजरीवाल का भविष्य भी तय करेगा. कांग्रेस को कोई भी इस चुनाव में रेस में नहीं मान रहा है, लेकिन कांग्रेस की वापसी की राह की कठिनाइयों का साफ-साफ संकेत इस चुनाव में मिल सकता है.

दिल्ली को ‘मिनी भारत’ कहा जाता है. यहां सभी भाषाओं, क्षेत्रों और सभी वर्गो के लोग रहते हैं. फरवरी में जब दिल्ली का मतदाता वोट डालने जायेगा, तो उसके सामने करीब नौ महीने का कार्यकाल पूरा कर चुकी मोदी सरकार होगी और साथ ही उसके जेहन में 49 दिन की केजरीवाल सरकार का कामकाज भी होगा. जाहिर है कि जब भाजपा मोदी को सामने रख कर चुनाव लड़ने का फैसला कर चुकी है, तब मोदी को भी अपनी नौ महीनों की सरकार के कामकाज के आधार पर ही वोट मांगने पड़ेंगे. पिछली बार कांग्रेस की शीला दीक्षित सरकार का कामकाज था, लेकिन इस बार कांग्रेस फिलहाल न तीन में है और न ही तेरह में.

मौजूदा सरकार के कार्यकाल में पेट्रोल, डीजल के दाम घटे हैं (भले ही इसमें मोदी सरकार की कोई भूमिका न हो), लेकिन भाजपा इसे कम होती महंगाई से जोड़ कर चुनावी मुद्दा बनाने की कोशिश जरूर करेगी. देश में विदेशी पूंजी निवेश का माहौल बनाना, नीतिगत फैसले लेना, दुनिया भर में भारत का डंका बजाना, जन धन योजना, स्वच्छता अभियान और भ्रष्टाचार पर रोक लगाने के प्रयास जैसे मुद्दों पर दिल्ली की जनता अपनी राय सामने रखेगी. जहां तक स्थानीय मसलों की बात है, तो अवैध बस्तियों का नियमन, इ-रिक्शा, सीलिंग एक्ट पर रोक को आगे बढ़ाना, दो एलक्ष्डी बल्बों से बिजली की बचत जैसे मुद्दों को सामने रखा जायेगा. कुल मिला कर यह चुनाव यह तय करेगा कि मोदी सरकार की गरीबों को लेकर आगे की नीति क्या रहती है. यह भी कह सकते हैं कि दिल्ली का चुनाव फरवरी में आनेवाले आम बजट की रूपरेखा भी तय करेगा. अगर भाजपा बहुमत लाती है, तो वह आर्थिक सुधारों को कड़ाई से लागू कर सकती है, लेकिन कामचलाऊ बहुमत लाने की सूरत में भाजपा को सोचना पड़ेगा कि मध्यम वर्ग को खुश करने के लिए और आगे क्या किया जा सकता है.

आम आदमी पार्टी के लिए यह चुनाव जीवन-मरन का है. यदि आप चुनाव जीतती है या फिर कांग्रेस की मदद से सरकार बनाने की सूरत निकाल पाती है या फिर 20 सीटों के पार जाती है, तो उसे जीवनदान मिलेगा. लेकिन, अगर वह 20 सीटों से कम में सिमटती है, तो उसे अपना वजूद बचाने के लिए संघर्ष करना पड़ सकता है. आप चाहती है कि यह चुनाव भाजपा बनाम आप होकर रह जाये, ताकि कांग्रेस बिल्कुल ही हाशिये पर आ जाये. आप जानती है कि कांग्रेस का कमजोर होना उसे सत्ता के करीब ले जायेगा, क्योंकि कांग्रेस अगर 20 फीसद से ज्यादा वोट हासिल करने में कामयाब हो जाती है, तो फिर आप सत्ता से दूर हो जायेगी. आप अगर पिटी, तो फिर उसका खड़ा होना मुश्किल होगा. आप को दिल्ली छावनी बोर्ड की आठ सीटों में से सिर्फ एक सीट मिली थी, और वह उम्मीदवार भी कांग्रेस से आप में आया था. छावनी में निम्न तबके के लोग रहते हैं, जिनकी राजनीति करने की आप दावेदारी करती है. यहां चुनाव में हार से आप को सोचने पर मजबूर होना पड़ेगा.

चुनाव किस तरह लड़ा जायेगा, इसकी रूपरेखा रामलीला मैदान में बीते शनिवार को नरेंद्र मोदी की रैली से तय हो गयी. भाजपा और आप के बीच जबरदस्त तलवारें खिंच गयी हैं. दोनों ने तय कर लिया है कि एक-दूसरे पर जमकर आरोप लगाने हैं और नकारात्मक प्रचार को प्रमुखता देनी है. मोदी और अमित शाह की जोड़ी ने केजरीवाल को दुश्मन नंबर एक घोषित कर दिया है और यह भी साफ कर दिया है कि वह अपने राजनीतिक दुश्मन पर तेज हमले करती रहेगी. आम आदमी पार्टी तो शायद चाह भी यही रही थी, लिहाजा उसे जवाबी हमले करने से कोई परहेज नहीं रहनेवाला है. यानी मुकाबला दो ऐसी शख्सीयतों के बीच होने जा रहा है, जो अधिकारवादी हैं, जो अपने हिसाब से फैसले लेती हैं, जो सोशल मीडिया का इस्तेमाल करना जानती हैं, जिन्हें तथ्यों को अपने पक्ष में घुमा-फिरा कर पेश करने में कोई परेशानी नहीं होती, जो राजनीतिक पैंतरेबाजी में भी उस्ताद हैं और जो मीडिया का ध्यान खींचने के लिए किसी भी स्तर तक जा सकती हैं.

लेकिन, यहीं पर कई सवाल भी खड़े हो गये हैं. कुछ जानकारों का कहना है कि मोदी-शाह को केजरीवाल पर हमले करने से बचना चाहिए था, क्योंकि उन्होंने ऐसा करके खामख्वाह केजरीवाल को फिर से चर्चा में ला दिया और साथ ही केजरीवाल को जवाब देने के लिए मंच भी दे दिया. लेकिन कुछ का मानना है कि ऐसा करना जरूरी था, क्योंकि मोदी-शाह यदि केजरीवाल पर हमला नहीं करते, तो यह कहा जाता कि क्या मोदी-शाह इतना डर गये हैं कि वे केजरीवाल के आरोपों का जवाब देने से बच रहे हैं? वैसे व्यक्तिगत हमले का एक फायदा यह होता है कि बुनियादी मुद्दों से लोगों का ध्यान हट जाता है और आरोपों-प्रत्यारोपों के बीच पूरा चुनाव निकल जाता है. जाहिर है कि यह मोदी और केजरीवाल दोनों के लिए मुफीद ही है.

जहां तक अब तक आये चुनावी सर्वेक्षणों का सवाल है, तो भाजपा सरकार बनाने की दिशा में अग्रसर है. एबीपी न्यूज और नील्सन के सर्वे में भाजपा को 45, आम आदमी पार्टी को 17 और कांग्रेस को सिर्फ सात सीटें मिलती बतायी गयी हैं. आजतक के सर्वे में भाजपा को 34 से 40, आप को 25 से 31 और कांग्रेस को तीन से पांच सीटों पर सिमटता दिखाया गया है. न्यूज एक्स के सर्वे में भाजपा को 40, आप को इसकी आधी यानी 20 और कांग्रेस को छह सीटें मिलती बतायी गयी हैं. कुल मिला कर, तीनों ही सर्वेक्षण भाजपा को सत्ता पर पहुंचा रहे हैं. लेकिन ये सर्वेक्षण बीस दिन पुराने हैं. ताजा सर्वेक्षण सी वोटर का आया है, जिसमें भाजपा को 35 और आम आदमी पार्टी को 29 सीटें मिलती बतायी गयी हैं. दोनों दलों के वोट प्रतिशत में भी मामूली अंतर है. अभी चुनाव में एक महीना बाकी है. भाजपा में हालांकि मोदी को ही आगे रख कर चुनाव लड़ा जा रहा है, लेकिन वहां संभावित मुख्यमंत्रियों की एक कतार है. सूत्र बताते हैं कि अंदरखाने एक-दूसरे को काटने-छांटने की कोशिशें भी हो रही हैं. अगर मोदी और अमित शाह ने इस पर रोक नहीं लगायी, तो जीती हुई बाजी हाथ से निकल भी सकती है. वैसे मुख्य मुकाबला भाजपा और आप के बीच तय है और चुनाव बेहद आक्रामक रहनेवाला है.

विजय विद्रोही

कार्यकारी संपादक, एबीपी न्यूज

vijayv@abpnews.in

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