दादी का चरखा-2 : लोहड़ी पर पंजाबी बिरादरी को समर्पित

राजलक्ष्मी सहाय गतांक से जारी.. सरकार ने एक गंदे से इलाके को शरणार्थियों के नाम कर दिया. एक-एक कमरे का खपरैल मकान सबको मिला. कैदियों के सेल जैसे घर. चूना भट्ठा में मजदूरी की प्रीतो ने. ठेकेदार के साथ मजदूरों का जत्था यहां से वहां ले जाया जाता. न जाने कितने फफोले पैरों में उगे-फूटे […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | January 14, 2015 6:15 AM
राजलक्ष्मी सहाय
गतांक से जारी..
सरकार ने एक गंदे से इलाके को शरणार्थियों के नाम कर दिया. एक-एक कमरे का खपरैल मकान सबको मिला. कैदियों के सेल जैसे घर. चूना भट्ठा में मजदूरी की प्रीतो ने. ठेकेदार के साथ मजदूरों का जत्था यहां से वहां ले जाया जाता.
न जाने कितने फफोले पैरों में उगे-फूटे फिर उगे. कलेजा तो पत्थर. कभी रोटी-कभी फाका. बस सतनाम का साथ थाम कर प्रीतो अग्निपथ पार करती गयी. चरखा तब भी चलता.
स्वराज के साथ मशीनों का भी राज आया. सूत के गोले छोटे होते गये. मशीनों के मुंह में हाथों का निवाला गया. हाथ से बनी चीजें बेकार. लेकिन सतनाम के हाथों की कारीगरी रंग लायी. वह मसहरी सिलता-ऐसी कि वाह-वाह करते सब.
एक दिन आंगन में लगी काई पर फिसल गयी प्रीतो. पैर की हड्डी टूटी थी. उन दिनों पड़ोस की अनाथ लड़की सलोनी उसके घर आकर रोटी बना जाती. प्रीतो ने सलोनी के चाचा से सतनाम के लिए सलोनी का हाथ मांगा. लाल सूती सलवार कमीज और लाल सूती ओढ़नी ओढ़े सलोनी का फेरा सतनाम के साथ लगवाकर चाचा अपनी भतीजी की जिम्मेदारी से बरी हो गया.
बहू घर आयी. सबसे पहले चरखे को मत्था टेका. इसके अलावा कोई यादगार नहीं थी सतनाम के पिता की. उस दिन प्रीतो ने आइना देखा. आइने में कौन है? पहचान न पायी. अब समझ में आया कि मुहल्ले के बच्चे उसे देख कर हंसते क्यों है? कोटर में धंसी आंखों को देख खुद डर गयी.
गाल जबड़े को फांदकर लटके हुए. धंसी झुरियां – अनगिनत रेखाएं खिंची. मानों चरखे पर काते सूत का उलझा सा गोला हो प्रीतो का चेहरा. कभी-कभी अपने पुराने घर का सपना देखती प्रीतो. मन विचलित हो जाता. ङोलम का रंग बदला-बदला सा लगता-बिल्कुल लाल. गुरुद्वारा, कुआं, राशन की दुकान, कोने वाला भड़भूआ सब आंखों में तैर जाता.
अपनी कॉलोनी बस गयी थी. लोग रिफ्यूजी महल्ला कहते. प्रीतो अब बड़ियां बनाती और पंसेरी की दुकान में दे आती. मगर चरखे का चक्का अब भी घूमता. उसके काते कच्चे सूत नयी बहू-बेटियों की चुन्नियों में टांके जाते.
एक रोज देखा- सुबह-सुबह सलोनी को, मितली सी आ रही है. रब का इशारा था. वाहै गुरु रक्षा करें. जिस दिन प्रीतो का पोता हुआ, सारे मुहल्ले में दौड़ गयी वह. बताशे खरीदे- मंदिर की सीढ़ियों पर बैठे भिखारियों को बांट आयी. उस दिन प्रीतो ने अपने लपेटे जूड़े को खोला, चोटी बनायी और परांदी भी लगाया. बहू ने देखा-हंस पड़ी.
‘वाह अम्मा अब भी आपके बाल इत्ते लंबे’ उजले सन की गुथीं रस्सी जैसी चोटी में नारंगी रंग की परांदी कुछ अजीब लगती थी.
पोते की खुशी में थोड़ा सज तो लूं. आज ढोलक बजेगा घर में. प्रीतो ने चरखे पर नया कपड़ा ओढ़ाया. पोते का मत्था चरखे से लगाया. आज सुखविंदर की बड़ी याद आयी. आंखों की बाढ़ में पूरी डूब गयी प्रीतो.
अब बड़ियां बेचकर पैसे सतनाम को नहीं देती प्रीतो. एक गुल्लक में जमा करती जाती है. पोता मनोहर पूछता
दादी इसमें क्या है ?
तेरी बहू को हार बनाकर दूंगी. उसी के पैसे है.
और मुङो?
क्या लेगा तू?
दादी हम तो पढ़ेंगे. दुकान पर नहीं बैठेंगे.
पोते की उंगली थामकर प्रीतो अंगरेजी स्कूल के प्रिंसिपल के सामने खड़ी थी.
मेरा पोता है. आपके स्कूल में पढ़ाना है.
लेकिन यहां तो फीस बहुत है माता जी.
फिकर ना करो आप. इसे पढ़ाने को है मेरे पास.
न जाने प्रीतो में क्या देखा फादर ने कि फार्म मंगवाया- खुद भरा और परमीत के अंगूठे का छाप लगवाकर दाखिला ले लिया. आज अगर कोई अंगूठा छाप अभिभावक ऐसे स्कूलों में जाने की जुर्रत करे तो अंगूठा दिखा देंगे स्कूल वाले. प्रीतो ने इतना ही कहा था-
मैं न पढ़ी तो क्या मेरा पोता भी नहीं पढ़ेगा?
अपनी दवा के साथ दूध लेना बंद कर दिया प्रीतो ने. दूध को गाढ़ा करके मिसरी डालकर रखती है. स्कूल से आकर बस्ता कं धे से उतरा नहीं कि मिसरी वाला दूध लेकर प्रीतो खड़ी.
‘तरमाल खायेगा तब तो दिमाग तर रहेगा’.
और सचमुच तर दिमाग ने कमाल दिखाया. हर कक्षा में अव्वल कौन? प्रीतो का पोता. न जाने कितनी बार गुल्लक टूटी-कितनी बार नयी आयी. कभी फीस कभी जूता, कभी किताब, कभी ड्रेस. प्रीतो का चरखा अब भी चलता. मुहल्ले में किसी के घर शादी हो-प्रीतो की खोज होती. उसी के चरखे पर काते सूत से वर-वधू का गंठबंधन होता. कच्चे धागे से कितना मजबूत बंधन. प्रीतो का चरखा सबका उपास्य था.
सतनाम की आंखो का चश्मा मोटा होता गया. मशीन पर पैर चलाते-चलाते नसें सूखने लगी. मां बेटे के बीच गृहस्थी का रंग भरती बहू यह न समझ पाती कि कौन सी अज्ञात शक्ति है जो दोनों जीवित हैं.
प्रीतो का कंधा झुकने लगा. पोता कंधे से भी ऊपर. सर उठाती तब पोते का चेहरा दिखता. उसकी हम उम्र कई स्त्रियां स्वर्ग सिधार गयी. लोग मजाक करते –
‘कब तक बुढ़िया बैठी रहेगी’, मगर प्रीतो बिना पोते की बहू देखे सिधारने वाली नहीं. जिद है उसकी. नौकरी लग गयी मनोहर को. पहली तनख्वाह से चश्मा खरीदकर प्रीतो के हाथों में रखा, तो प्रीतो शून्य सी हो गयी. चरखे पर रख दिया चश्मे को.
एक दिन सुबह-सुबह सतनाम की बीबी ने पैसे का ताना दिया. चली आयी प्रीतो घर के बाहर की छोटी सी अंधेरी कोठरी में. एक स्टोव, एक पतीला, एक तवा और चरखा लेकर. चार रोटी खुद बनाती-दो सुबह-दो शाम. मगर पावभर दूध की रबड़ी मनोहर के लिए जरूर बनाती. ब्याह हो गया पोते का. पायल की छम-छम के साथ दुलहन घर में आयी. प्रीतो के हृदय में शबद कीर्तन गूंज उठे. कहा- अबकी लोढ़ी अलग होगी. सवा किलो रेवड़ी चढ़ेगी लोढ़ी माता को.
ऊंची-ऊंची लपटों के साथ ढोल का स्वर. लाल पीली चूनर ओढ़े औरतें. तिल और रेवड़ी से भरी थालें. लोढ़ी की धूम. भंगड़ा और गिदा की चहल-पहल. प्रीतो की खास लोढ़ी. मनोहर और उसकी दुल्हन अगिA फेरा लेने लगे. आग में तिल-बादाम डालते. सिक्के डालते. कहते हैं जब कोई बड़ी खुशी मिलती है तो अपनी सबसे प्यारी चीज लोग लोढ़ी माता को भेंट करते हैं.
प्रीतो लड़खड़ाती हुई अपने कमरे से निकली- बड़ा सा चरखा किसी तरह थामे. लोढ़ी माता की जय कहते हुए उसने चरखा बीच अगिA में डाल दिया. मनोहर उसे रोकता इससे पहले ही चरखा धू-धू कर जल उठा. प्रीतो को जीते-जी मुक्ति मिल गयी और दूसरे दिन मनोहर कॉलेज से आया- दादी की कोठरी में झांका-आवाज दी. दादी चुप. खटिया पर दादी लेटी थीं- शांत-निश्चल. स्पंदनहीन. स्टोव पर पतीले में रबड़ी पड़ी थी..
(समाप्त)

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