विकास के आकलन और राह की बाधाएं

विश्व बैंक के ताजा आकलन के मुताबिक भारत की विकास दर मौजूदा वित्त वर्ष में 5.6 फीसदी और अगले वित्त वर्ष में 6.4 फीसदी रह सकती है. वैश्विक अर्थव्यवस्था की स्थिति का विश्लेषण करते हुए रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि 2016 और 2017 में भारत की विकास दर सात फीसदी के स्तर […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | January 15, 2015 6:33 AM
विश्व बैंक के ताजा आकलन के मुताबिक भारत की विकास दर मौजूदा वित्त वर्ष में 5.6 फीसदी और अगले वित्त वर्ष में 6.4 फीसदी रह सकती है.
वैश्विक अर्थव्यवस्था की स्थिति का विश्लेषण करते हुए रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि 2016 और 2017 में भारत की विकास दर सात फीसदी के स्तर पर पहुंच जायेगी, जो कि चीन की विकास दर (क्रमश: सात फीसदी और 6.9 फीसदी) के बराबर होगी. विश्व बैंक के इन आकलनों का आधार नरेंद्र मोदी सरकार के आर्थिक सुधार की दिशा में उठाये गये कदम हैं.
एक अन्य आधार 2014 में दक्षिण एशिया में विकास की गति में वृद्धि का आकलन है. इस क्षेत्र में 2013 के 4.9 फीसदी के मुकाबले 2014 में विकास दर के 5.5 फीसदी रहने का अनुमान है. यह विकास मुख्यत: भारत के कारण संभव हो रहा है, क्योंकि यह सबसे बड़ी क्षेत्रीय अर्थव्यवस्था है.
हालांकि ये आकलन हमारी आर्थिक नीतियों के विकासोन्मुख होने और व्यापार की स्थिति मजबूत होने को लेकर हमें कुछ हद तक आश्वस्त करते हैं, लेकिन पिछले वर्षो के आकलनों की पृष्ठभूमि में बहुत भरोसेमंद नहीं लगते. 2013 की जनवरी में विश्व बैंक ने अनुमान लगाया था कि देश की विकास दर 6.5 फीसदी रह सकती है, लेकिन अप्रैल में इसे 6.1 फीसदी कर दिया गया. उसी वर्ष अक्तूबर में इसमें भारी कमी करते हुए 4.7 फीसदी तक घटा दिया था.
2014 की जनवरी में इस आकलन में फिर संशोधन करते हुए इसे 6.2 फीसदी कर दिया था, जबकि बीते वित्त वर्ष में वास्तविक विकास दर मात्र 4.7 फीसदी रही थी. 2014-15 के लिए विश्व बैंक का अनुमान विकास दर के छह फीसदी से अधिक रहने का था, पर ताजा आकलन में यह महज 5.6 फीसदी है. प्रसिद्ध अर्थशास्त्री एडम स्मिथ ने कहा था कि समझदार लोग कल्पनाशक्ति से उत्पन्न विचारों की एकरूपता बनाये रखने के लिए समझ के समक्ष उपस्थित सबूतों को दरकिनार कर देते हैं.
इसलिए इस आकलन को गंभीरता से लेने के बजाय सरकार को जाने-माने अर्थशास्त्री प्रो जगदीश भगवती की इस सलाह पर ध्यान देना चाहिए कि विकास के लिए की जा रही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कोशिशों को भय का वातावरण बनानेवाली हिंदुत्ववादी संगठनों के सांप्रदायिक हरकतों से भारी खतरा है.

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