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वर्षा जल के संरक्षण से संकट का हल

देश के पठारी प्रदेश में बसे होने के कारण झारखंड की राजधानी रांची और इसके आसपास के अन्य शहर गर्मी के आते ही जल संकट से जूझना शुरू कर देते हैं. धरती की निचली सतहों में पत्थरों की चट्टान होने से भूजल स्तर में कमी होने के साथ ही वह जल्दी से नीचे गिर जाता […]

देश के पठारी प्रदेश में बसे होने के कारण झारखंड की राजधानी रांची और इसके आसपास के अन्य शहर गर्मी के आते ही जल संकट से जूझना शुरू कर देते हैं. धरती की निचली सतहों में पत्थरों की चट्टान होने से भूजल स्तर में कमी होने के साथ ही वह जल्दी से नीचे गिर जाता है. यहां प्राकृतिक नदियों और झीलों की भी कमी है. इस कारण लोगों को गर्मी के दिनों में पानी के लिए दर-दर भटकना पड़ता है.
बात अकेले पठारी क्षेत्रीय शहर रांची और इसके आसपास के कस्बों की ही नहीं है, बल्कि उन मैदानी भागों में बसे शहरों की भी है, जहां गर्मी के दिनों में पानी की किल्लत शुरू हो जाती है. आये दिन समाचार पत्रों में गर्मी में होनेवाली पानी की किल्लत की खबरें प्रकाशित की जाती हैं, लेकिन समय रहते इस ओर किसी का ध्यान नहीं जाता. न तो प्रशासनिक अधिकारियों का और न ही सरकार में शामिल नेताओं और राजनीतिक पार्टियों के कार्यकर्ताओं का. यदि समय रहते इस संकट का हल निकाल लिया जाये, तो लोगों को गर्मी के दिनों में जल संकट का सामना नहीं करना पड़ेगा.
इस समस्या का एक ही निदान है और वह है वर्षा के दिनों में आकाश से गिरनेवाली पानी की बूंदों को जलाशयों में संरक्षित करना. आज रांची ही नहीं, पूरे राज्य और देश में नलकूपों की भरमार है, लेकिन कुओं का कहीं दर्शन नहीं है. तालाब और बावड़ियों का कहीं पता नहीं है. नदियां विलुप्त होती जा रही हैं. आहर-पोखरों का कहीं निर्माण नहीं हो रहा है और न ही प्राकृतिक झरनों को संरक्षित किया जा रहा है. आज जरूरत इस बात की है कि वर्षा जल को संरक्षित करने के लिए प्रशासनिक अधिकारी, स्थानीय नगर निकाय व राज्य सरकार को जागरूक होना होगा.
उदय चंद्र, रांची

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