अच्छे छात्रों के साथ धोखा हैं गेस पेपर
पंकज कुमार पाठक प्रभात खबर, रांची अखबार में एक विज्ञापन पढ़ा. इस वर्ष दसवीं बोर्ड की परीक्षा लिखने वाले छात्रों के लिए एक पुस्तिका का विवरण देकर मोटे अक्षरों में लिखा था,‘‘सौ फीसदी सफलता के लिए अवश्य पढ़ें.’’ इसी तरह दूसरी पुस्तिका के विज्ञापन में लिखा था, ‘‘सबसे सटीक, सबसे भरोसेमंद.’’ इन पुस्तिकाओं को ‘गेस […]
पंकज कुमार पाठक
प्रभात खबर, रांची
अखबार में एक विज्ञापन पढ़ा. इस वर्ष दसवीं बोर्ड की परीक्षा लिखने वाले छात्रों के लिए एक पुस्तिका का विवरण देकर मोटे अक्षरों में लिखा था,‘‘सौ फीसदी सफलता के लिए अवश्य पढ़ें.’’ इसी तरह दूसरी पुस्तिका के विज्ञापन में लिखा था, ‘‘सबसे सटीक, सबसे भरोसेमंद.’’ इन पुस्तिकाओं को ‘गेस पेपर’ भी कहा जाता है. परीक्षाओं का मौसम आते ही बाजार में गेस पेपरों की बाढ़ आ जाती है.
कोई गारंटी लेकर आता है, तो कोई सबसे भरोसमंद होने का दावा करता है. एक बात मुझे आज तक समझ में नहीं आयी कि एनसीइआरटी की किताबें या अन्य पाठ्य पुस्तकें, जिन्हें बड़े-बड़े विद्वान और शिक्षाविद् तैयार करते हैं, उन किताबों में भी गारंटी देते हुए कहीं नहीं लिखा होता कि महज इस किताब को पढ़ने से ही सौ फीसदी सफलता मिलेगी. फिर पचास रुपये में मिलनेवाले इन गेस पेपरों में लेखक-प्रकाशक कौन-सा गुरुमंत्र या टोटका या ब्रrावाक्य लिख देते हैं, जो सफलता की गांरटी होती है? क्या बड़ी परीक्षाओं में सफल होने का ऐसा कोई शॉर्टकट है, जिसकी जानकारी एनसीइआरटी की किताबों के लेखकों को नहीं है? बोर्ड की परीक्षा पास कर चुके कुछ छात्रों ने बताया कि गेस पेपर के कई प्रश्न, परीक्षा में पूछे जानेवाले प्रश्न से शब्दश: भिड़ जाते हैं. कैसे संभव है, इतना सटीक अनुमान लगाना?
इसे देख कर तो गोल्ड मेडल विजेता ज्योतिषाचार्य भी शर्म से पानी-पानी हो जाये! सच्चई है कि कई गेस पेपरवाले परीक्षा के प्रश्नों का अनुमान लगाने का ढोंग करते हैं. यह खतरनाक चमत्कार, असल में अपराध है. प्रश्नपत्र तैयार करनेवाली टीम के लोग ही प्रश्नों से संबंधित जानकारी गेस पेपरवालों को देते होंगे या फिर गेस पेपरवालों के बताये प्रश्न को परीक्षा में शामिल करते होंगे. नहीं तो दोनों के प्रश्न शब्दश: नहीं मिल सकते हैं? अगर इन गेस पेपरवालों का अनुमान इतना सटीक होता है, तो परीक्षा की तिथि से कुछ दिनों पहले क्यों छापते हैं?
छात्रों के दसवीं कक्षा में पहुंचते ही छाप देना चाहिए. कम से कम फेल होने का उनका डर खत्म हो जाता. न ट्यूशन करना पड़ता, न किताबों पर ज्यादा खर्च करना पड़ता. महज पचास रुपये खरचते, कुछ दिन रट्टा मारते और बोर्ड की परीक्षा में गारंटी के साथ सफल होते. दरअसल, आज के जमाने में परीक्षा से पहले सफलता की गारंटी लेकर छपनेवाले ऐसे गेस पेपरों से शिक्षा व्यवस्था के गिरते स्तर का पता चलता है.
बाजार बन गयी शिक्षा व्यवस्था की पोल खुलती है. बाजार में ये गेस पेपर चीख-चीख कर कहते हैं कि प्रश्नपत्र तैयार करनेवाली टीम और इन्हें छापनेवाले लोग छात्रों के भविष्य से खेल रहे हैं. पता नहीं क्यों, अच्छे और मेहनती छात्र भी इसका विरोध नहीं करते हैं? क्योंकि सबसे सटीक अनुमान लगानेवाले और सफलता की गारंटी देनेवाले ये गेस पेपर, अच्छे और मेहनती छात्रों के साथ किया गया धोखा हैं.