शिक्षा पर तंत्र की विफलता को आईना

बिहार की प्राथमिक शिक्षा पर तैयार ‘प्रथम’ की ताजा रिपोर्ट ने एक बार फिर गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का सवाल सतह पर ला दिया है. ‘असर’ (एनुअल स्टेट्स ऑफ एजुकेशन रिपोर्ट, 2014) नामक इस रिपोर्ट में कहा गया है कि पिछले दो वर्षो में प्राथमिक कक्षाओं में विद्यार्थियों की उपस्थिति से लेकर उनमें पढ़ाई-लिखाई तक की समझ […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | January 19, 2015 5:46 AM
बिहार की प्राथमिक शिक्षा पर तैयार ‘प्रथम’ की ताजा रिपोर्ट ने एक बार फिर गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का सवाल सतह पर ला दिया है. ‘असर’ (एनुअल स्टेट्स ऑफ एजुकेशन रिपोर्ट, 2014) नामक इस रिपोर्ट में कहा गया है कि पिछले दो वर्षो में प्राथमिक कक्षाओं में विद्यार्थियों की उपस्थिति से लेकर उनमें पढ़ाई-लिखाई तक की समझ का स्तर नीचे गिरा है.
कक्षा एक से आठ तक वर्ष 2014 में उपस्थिति 52.1 फीसदी रही, जबकि 2012 में यह कहीं अधिक 55.1 फीसदी थी. विद्यार्थियों की उपस्थिति के मामले में बिहार देश के कुछ गिने-चुने निचले पायदान वाले राज्यों की श्रेणी में है. इसी तरह गणित, वाक्यों की समझ आदि के मामले में भी बच्चे पहले के वर्षो के मुकाबले कमजोर हुए हैं.
सरकारी स्तर पर प्राथमिक शिक्षा की तसवीर उजागर करनेवाली इस रिपोर्ट में जो ‘सच’ उभर कर सामने आये हैं, उसकी ‘आशंका’ शिक्षा के जानकार पिछले चार-पांच साल से जता रहे थे. सर्व शिक्षा अभियान के अमल में आने के बाद स्कूलों के भौतिक संसाधन तो मजबूत हुए हैं, लेकिन शिक्षा की गुणवत्ता में लगातार गिरावट दर्ज हो रही है.
योग्यता और प्रतिभा की समुचित जांच किये बगैर जिस तरह धड़ल्ले से अनुबंध के आधार पर शिक्षकों का नियोजन (नियुक्ति नहीं) हुआ, वैसे में शिक्षा की गुणवत्ता का क्षरण कोई आश्चर्य की बात नहीं है. लेकिन, अकेले शिक्षकों को दोष देना पूरे मामले का सरलीकरण और सच्चई से मुंह मोड़ने के समान है. वह तंत्र भी कम जिम्मेवार नहीं है, जो ऐसे अयोग्य शिक्षकों की नियुक्ति करता है. पिछले साल बड़ी संख्या में फर्जी शिक्षक पकड़े गये थे. जाहिर है कि फर्जी प्रमाण पत्र के आधार पर शिक्षक यूं ही नौकरी पाने में कामयाब नहीं हो गये होंगे. राज्य के साढ़े 73 हजार स्कूलों में से करीब 60 हजार में स्थायी प्रधानाध्यापक नहीं हैं. 40 विद्यार्थियों पर एक शिक्षक का मानक तय है, लेकिन राज्य में एक शिक्षक के जिम्मे औसतन 58 विद्यार्थी हैं.
ऊपर से मध्याह्न भोजन, जनगणना, पशुगणना, मतदाता सूची पुनरीक्षण जैसे काम भी शिक्षकों पर है. ‘असर’ ने एक तरह से सरकार, समाज और शिक्षा से सरोकार रखनेवालों को आईना दिखाया है. यदि अब भी हालात बदलने की पहल नहीं हुई, तो यह भविष्य के लिए खतरनाक होगा.

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