नियुक्ति और हटाने के मानदंड क्या हैं?

सरकार शासन के लिए अनिवार्यता नहीं होकर राजनीतिक बाध्यता की परिणति हो, तो नजारा झारखंड जैसा होता है जहां 14 सालों में 19वां मुख्य सचिव बनने जा रहा है. अपने बेलौस, बेबाक और बेतकल्लुफ अंदाज के कारण चर्चित रहे निवर्तमान मुख्य सचिव सजल चक्रवर्ती का पद पर बने रहना पहले से ही संशय भरा था, […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | January 22, 2015 5:47 AM

सरकार शासन के लिए अनिवार्यता नहीं होकर राजनीतिक बाध्यता की परिणति हो, तो नजारा झारखंड जैसा होता है जहां 14 सालों में 19वां मुख्य सचिव बनने जा रहा है. अपने बेलौस, बेबाक और बेतकल्लुफ अंदाज के कारण चर्चित रहे निवर्तमान मुख्य सचिव सजल चक्रवर्ती का पद पर बने रहना पहले से ही संशय भरा था, पर उनके इसी अंदाज ने यह स्थिति जल्द ही ला दी.

कोई व्यवस्था सुचिंतित और सुनिश्चित तरीके से नहीं चले, तो सुनियोजित ढंग से कोई काम नहीं होता और उसका वांछित फल भी नहीं मिलता. आवेग में आकर बयान देनेवाले सजल चक्रवर्ती राज्य के पहले ऐसे मुख्य सचिव रहे जिन्हें तीन-तीन मौकों पर यह पद सौंपा गया, पर वह किसी सरकार की पसंद नहीं बन पाये. वह जरूरत पड़ने पर रात-बिरात जंगल-पहाड़ में जाने के लिए भी तत्पर रहते हैं, फिर भी सरकारों को वह रास नहीं आये. राजनीतिक सत्ता के साथ तालमेल बिठाते हुए कार्य संपादन करना एक कौशल है. राजनीतिक रूप से अस्थिर रहे झारखंड में तो यह और बड़ा कौशल है.

कभी लक्ष्मी सिंह भी प्रदेश की मुख्य सचिव रहीं. अपने फैसलों और सख्त रवैयों के कारण वह भी चर्चा में रहीं. अवकाशप्राप्ति के बाद वह राज्य महिला आयोग की अध्यक्ष रहीं. फिर झारखंड अधिविद्य परिषद (जैक) की अध्यक्ष बनीं. जैक के अध्यक्ष के रूप में, शिक्षा मंत्री के साथ उनके तनावपूर्ण संबंधों को प्रदेश भूला नहीं है. यह सब कुछ होते हुए भी उन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में कुछ न कुछ योगदान दिया ही. जैक में आये अधिकतर सुधार उन्हीं के दौर के बताये जाते हैं. मतलब कि जिम्मेवारी भरे बड़े पद सिर्फ शोभा के पद नहीं, कुछ कर दिखाने के पद हैं. 19वें मुख्य सचिव के रूप में राजीव गौबा की नियुक्ति के साथ एक बार फिर यह सवाल उठ रहा है कि क्या इतने महत्वपूर्ण पदों पर अधिकारी इसी तरह आये दिन बदले जाते रहेंगे? आखिरी किसी अधिकारी की नियुक्ति और उसे हटाये जाने के मानदंड क्या हैं? गौबा सिर्फ दो साल के भीतर प्रदेश के आठवें मुख्य सचिव हैं. यह वक्त मुख्य सचिव जैसे पद की गरिमा और महत्व को स्थापित करने की दिशा में पहल करने का है. मुख्य सचिव को आया राम, गया राम की तरह लेकर यह सरकार कोई गंभीर संदेश नहीं दे सकती.

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