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शंकराचार्य का आह्वान तबाही का संदेश

आज जब हर संसाधन में कमी हो रही है. अतिदोहन से प्रकृति असंतुलित हो चुकी है. ऐसे समय में बद्रिका आश्रम के शंकराचार्य बासुदेवानंद सरस्वती जी का आबादी में वृद्धि के लिए 10 बच्चे पैदा करने का आह्वान समाज में तबाही मचाने के लिए काफी है. इससे भुखमरी, अपराध, अज्ञानता में वृद्धि और महिलाओं के […]

आज जब हर संसाधन में कमी हो रही है. अतिदोहन से प्रकृति असंतुलित हो चुकी है. ऐसे समय में बद्रिका आश्रम के शंकराचार्य बासुदेवानंद सरस्वती जी का आबादी में वृद्धि के लिए 10 बच्चे पैदा करने का आह्वान समाज में तबाही मचाने के लिए काफी है. इससे भुखमरी, अपराध, अज्ञानता में वृद्धि और महिलाओं के खिलाफ अपराध में बढ़ोतरी के सिवा और कुछ नहीं मिलेगा. निश्चित तौर पर उनका यह बयान खाली दिमाग की उपज है. उनका यह बयान कुतर्को पर आधारित हो सकता है. उम्मीद यह की जा रही है कि देश के प्रधानमंत्री समेत राजनीतिक नेता शंकराचार्य के बयान को खारिज करनेवाले वक्तव्य देंगे.

एक तरह से देखा जाये, तो शंकराचार्य का यह बयान आर्थिक दुर्दशा के समय में महिलाओं के शरीर के अलावा व्यक्ति के भविष्य के साथ खिलवाड़ करने जैसा है. उनका यह बयान सर्वथा निदंनीय है. उन्हें इस तरह के बयान पर अफसोस जाहिर करना ही चाहिए. आज के समय में ऐसी सस्ती बयानबाजी करनेवाले हर व्यक्ति का आम जनता द्वारा विरोध होना चाहिए. चाहे वह किसी धर्म का हो और चाहे जिस धार्मिक पद पर स्थापित हो.

धर्मगुरु शायद यह भूल गये हैं कि धर्म और समाज दोनों की प्रगति और रक्षा के लिए सिर्फ संख्या ही एक पैमाना नहीं है. संख्या बढ़ाने से अधिक मानवता और सद्गुणों का होना जरूरी है. यदि हम पुराणों की बात करें, तो कपिल मुनि ने राजा सगर के साठ हजार पुत्रों को सिर्फ इसलिए भस्म कर दिया था कि वे प्रकृति के खिलाफ थे. वे अत्याचारी और नालायक थे. प्रकृति और स्त्री की रक्षा बच्चे पैदा करने से नहीं, बल्कि सद्गुणों और मानवता से हो सकती है. शंकराचार्य को इस बात को समझना चाहिए.

सरिता कुमार, ई-मेल से

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