भारत को लेकर श्रीलंका में चिंतित चीन
2012 में बिना मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) के श्रीलंका से चीन का व्यापार 26 अरब, 76 करोड़, 13 लाख डॉलर की ऊंचाई को छू रहा था, और भारत मात्र पांच अरब डॉलर के उभयपक्षीय व्यापार पर सिमट चुका था. चीन इस चिंता में दुबला हुआ जा रहा है कि कहीं श्रीलंका का नया निजाम उसकी […]
2012 में बिना मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) के श्रीलंका से चीन का व्यापार 26 अरब, 76 करोड़, 13 लाख डॉलर की ऊंचाई को छू रहा था, और भारत मात्र पांच अरब डॉलर के उभयपक्षीय व्यापार पर सिमट चुका था.
चीन इस चिंता में दुबला हुआ जा रहा है कि कहीं श्रीलंका का नया निजाम उसकी परियोजनाओं को बंद करना शुरू न कर दे. 20 जनवरी को चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता होंग लेई ने इसका खुलासा किया कि राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने अपने श्रीलंकाई समकक्ष मैत्रीपाल सिरीसेना को इस बारे में पत्र लिखा था. उसके जवाब में सिरीसेना ने शी को आश्वासन दिया है कि श्रीलंका और चीन के बीच सामरिक सहयोग जारी रहेगा और आर्थिक सहकार को हम नयी ऊंचाइयों तक ले जायेंगे. प्रवक्ता होंग लेई ने काफी विस्तार से सिरीसेना के जवाब की जानकारी दी है, जिससे यह जाहिर होता है कि चीन, श्रीलंका में अपनी जमीन खिसकने को लेकर घबराहट में है.
आम तौर पर चीन अपनी घबराहट को सार्वजनिक नहीं करता. लेकिन इस बार उसने अपनी बंद मुठ्ठी खोली है, तो उसकी कई सारी वजहें हैं. राष्ट्रपति सिरीसेना की जीत की घोषणा जैसे ही हुई, उसके चंद घंटे बाद भारतीय राजदूत यश सिन्हा उनसे मिलने गये. दूसरी ओर इस मुलाकात के एक हफ्ते बाद चीनी दूत वू चियांगहाओ को राष्ट्रपति सिरीसेना से मिलने का समय दिया गया. 15 जनवरी को कोलंबो स्थित चीनी दूत वू चियांगहाओ विदेश मंत्रलय के पांच कूटनीतिकों के साथ राष्ट्रपति सिरीसेना से मिले, और उन्हें राष्ट्रपति शी का वह पत्र सौंपा, जिसमें चीनी निवेश व परियोजनाओं को लेकर चिंता व्यक्त की गयी थी.
श्रीलंका की विभिन्न परियोजनाओं में इस समय तीस हजार से अधिक चीनी कामगार कार्यरत हैं. चीन ने किस तरह से अपनी जड़ें श्रीलंका में जमायी हैं, उसका उदाहरण 2005 से उस देश में चीनी कामगारों को दिया गया वर्क परमिट है. 2005 में सिर्फ 1,517 चीनी श्रमिक श्रीलंका में काम कर रहे थे. 2013 में सरकार ने संसद को सूचित किया कि 26,404 वर्क परमिट चीनी श्रमिकों को दिये गये हैं. पर क्या वर्क परमिट पर श्रीलंका में काम करनेवाले ये सभी चीनी श्रमिक रहे हैं, या जासूस? यह सवाल सत्ता के गलियारों में सुर्ख होता गया है. श्रीलंका के सियासी गलियारे में अकसर इस बात पर चर्चा होती थी कि जो तीस हजार चीनी इस देश में काम कर रहे हैं, उनमें से कितनों के संबंध चीनी खुफिया एमएसएस (मिनिस्ट्री ऑफ स्टेट सिक्योरिटी) से है? संसद में इस सवाल पर सबसे अधिक मुखर यूएनपी के सदस्य रवि करुणानायक रहे थे. ‘यूएनपी’ रणिल विक्रम सिंधे की पार्टी है, जो श्रीलंका के प्रधानमंत्री हैं. चीन, साइबर खुफियागिरी और इंडस्ट्रियल खुफियागिरी के माध्यम से अपने निवेश और परियोजनाओं का विस्तार करता रहा है, इस बात से दुनिया के वे तमाम देश वाकिफ हैं, जो काउंटर इंटेलीजेंस में माहिर हैं. खुफियागिरी की भाषा में ऐसे ‘फिजिकल एजेंट’ को ‘ह्यूमिंट’ कहते हैं, जो किसी देश में कामगार बनके रहते हैं. चीन ऐसे ‘कुशल कामगारों’ से खुफिया सूचनाएं जुटाने में सबसे आगे रहा है.
इस समय दुनिया के विभिन्न देशों में दो स्तर पर चीनी निवेश हो रहा है. एक, जिसके लिए स्वयं चीन की सरकार और उसके दूतावास अधोसंरचना व उद्योग के क्षेत्र में निवेश के लिए सक्रिय हैं. दूसरा, उनके यहां से निकलनेवाला साढ़े तीन ट्रिलियन डॉलर काला धन है. बैंक ऑफ चाइना पर पिछले दिनों सरकारी चैनल ‘चाइना सेंट्रल टेलीविजन’ ने आरेाप लगाया था कि उसके माध्यम से अरबों यूआन को डॉलर में बदल कर दुनिया के कई सारे देशों व न्यूयॉर्क, वेंकुवर और सिडनी जैसे नगरों के प्रॉपर्टी मार्केट में गोपनीय रूप से खपाये गये हैं. चीनी काले धन को खपानेवाले देशों की सूची में श्रीलंका भी शामिल है.
इसमें कोई शक की बात नहीं थी कि महिंदा राजपक्षे के 19 नवंबर, 2005 से 9 जनवरी, 2015 के शासनकाल में चीन, श्रीलंका की जमीन पर भारत से आर्थिक युद्ध लड़ता रहा, और इंफ्रास्ट्रर से लेकर निवेश तक के क्षेत्र में भारत को पीछे छोड़ता चला गया. नवंबर, 2013 में कॉमनवेल्थ सम्मेलन के दौरान कोलंबो में ‘ट्रेड एक्जीबिशन’ लगा था, जिसमें 83 विदेशी कंपनियों में से 42 चीनी कंपनियों की भागीदारी थी. इस कॉमनवेल्थ व्यापार प्रदर्शनी में मात्र 21 भारतीय कंपनियों की हिस्सेदारी से यह साफ हो रहा था कि भारत को श्रीलंका के सबसे बड़े ‘ट्रेड पार्टनर’ की जगह से चीन बेदखल कर चुका था. 2012 में बिना मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) के श्रीलंका से चीन का व्यापार 26 अरब, 76 करोड़, 13 लाख डॉलर की ऊंचाई को छू रहा था, और भारत मात्र पांच अरब डॉलर के उभयपक्षीय व्यापार पर सिमट चुका था. क्या इसके लिए सिर्फ मनमोहन सिंह के आर्थिक राजनय की विफलता को कोसें, या फिर चीन के श्रीलंका में फलने-फूलने में महिंदा राजपक्षे की भूमिका को भी महत्वपूर्ण समङों?
यह महिंदा राजपक्षे के ही लोग हैं, जिन्होंने ‘रॉ’ के अधिकारी के कोलंबो से ‘रुटीन ट्रांसफर’ के बारे में हवा उड़ायी कि तत्कालीन रक्षा मंत्री गोटभाया राजपक्षे की शिकायत पर रॉ के कोलंबो स्टेशन चीफ का तबादला कर दिया गया. इस खबर को कोलंबो से प्रकाशित ‘संडे टाइम्स’ में प्रमुखता से प्रकाशित की गयी. महिंदा राजपक्षे की मंशा यह रही है कि चुनाव में उनकी विफलता का ठीकरा भारतीय खुफिया एजेंसी पर फोड़ा जाये. दिसंबर में कोलंबो छोड़ चुके रॉ अधिकारी ने जनवरी के चुनाव में एक राष्ट्राध्यक्ष का कितना नुकसान किया होगा, उनकी इस थ्योरी को दुनिया खारिज करती हुई दिखती है. महिंदा राजपक्षे यह नहीं बताते कि उनके दो टर्म टिके रहने में चीनी खुफिया ‘एमएसएस’ (मिनिस्ट्री ऑफ स्टेट सिक्योरिटी) के कोलंबो स्थित अधिकारियों की क्या भूमिका रही है. महिंदा राजपक्षे के समय श्रीलंका की खुफिया सेवा स्टेट इंटेलिजेंस सर्विस (एसआइएस) के कितने अधिकारी चीन और पाकिस्तान प्रशिक्षण के लिए गये, उसका ब्योरा आना बाकी है.
महिंदा राजपक्षे यह भी नहीं बताना चाहेंगे कि वह भाजपा के नेता सुब्रमण्यम स्वामी के कितने ‘हम प्याला-हम निवाला’ रहे हैं. उन्होंने सुब्रमण्यम स्वामी और भाजपा के राष्ट्रीय सचिव पी मुरलीधर राव के कहने पर नवंबर, 2014 में मृत्युदंड पाये पांच भारतीय मछुआरों को छोड़ने का आदेश दिया था, उसे लेकर इलम राजनीति गरमा गयी थी. इस बार प्रधानमंत्री रणिल विक्रम सिंधे ने इसकी घोषणा की है कि 13ए संशोधन के जरिये हम तमिल शासनवाले क्षेत्र को और सुविधाएं देंगे. यह राजपक्षे को रास नहीं आयेगा. क्या यह सब दक्षिण भारत में भाजपा की जमीन तैयार करने के वास्ते किया जा रहा है? श्रीलंका के विदेश मंत्री मंगला समरवीरा नयी दिल्ली से कोलंबो लौटे, तो काफी उत्साह में थे, क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वहां आने की हामी भर दी है!
पुष्परंजन
दिल्ली संपादक, ईयू-एशिया न्यूज
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