रियायत की जगह रोजगार दे सरकार

दो रुपये किलो गेहूं और तीन रुपये किलो चावल, सरकार ने चुनाव से ठीक पहले क्यों देना शुरू किया है? एक बहुत बड़ा सवाल सबके सामने है. पहले सरकार कहां थी जब लाखों टन अनाज सड़ता रहा? तब किसी ने गरीब जनता की क्यों नहीं सोची? उस समय माननीय सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा था […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | July 29, 2013 4:07 AM

दो रुपये किलो गेहूं और तीन रुपये किलो चावल, सरकार ने चुनाव से ठीक पहले क्यों देना शुरू किया है? एक बहुत बड़ा सवाल सबके सामने है. पहले सरकार कहां थी जब लाखों टन अनाज सड़ता रहा? तब किसी ने गरीब जनता की क्यों नहीं सोची? उस समय माननीय सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा था कि सड़ने से तो गरीब के पेट में चला जाता तो अच्छा था.

अनाज का इस कदर सड़ना तो बहुत बड़ा पाप और जुर्म है. बेचारा अन्नदाता किसान इसे खूनपसीना बहा कर बड़ी मुश्किल से पैदा करता है और फिर भी उसे वाजिब दाम नहीं मिलते. मजे की बात तो यह भी है कि चुनाव से कुछ महीने पहले तक तो यह सब ठीक होता है उसके बाद मामला टायंटायंफिस्स होकर रह जाता है और भ्रष्ट लोग बाद में मालामाल होते हैं.

कोई देखने या कहनेवाला असल में तो होता नहीं और यदि होता भी है तो उसकी सुनता ही कौन है? इसलिए सभी पार्टियों से अब यही कहना है कि वे ऐसी हल्कीफुल्की रियायतों या राहतों की भीखनुमा खुशी देकर सबको शोषणरहित सम्मानजनक रोजगार देकर राष्ट्र के प्रति अपना सही सच्चा फर्ज निभायें, ताकि कुछ भला हो.

।। राजवंती मामूरपुर ।।
(नरेला
, दिल्ली)

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