बेहतर राजनीतिक संबंधों से ही आर्थिक और कूटनीतिक संबंध मजबूत होते हैं. अब भारत और अमेरिका के रिश्ते को गुटनिरपेक्षता के आईने में नहीं देखा जाना चाहिए. शीत-युद्ध का दौर समाप्त होने के साथ ही इसकी महत्ता खत्म हो चुकी है. अब हर देश अपने सामरिक और कूटनीतिक फायदे के लिए संबंधों को आगे बढ़ाता है.
अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा की भारत यात्रा राजनीतिक और कूटनीतिक तौर पर काफी महत्वपूर्ण है. ओबामा की यात्रा से एक इतिहास रचा जायेगा और वे ऐसे पहले अमेरिकी राष्ट्रपति बन जायेंगे, जिन्हें भारत में गणतंत्र दिवस पर मुख्य अतिथि बनने का गौरव प्राप्त होगा.
भारत की स्वतंत्रता के लगभग साढ़े छह दशक हो चुके हैं, लेकिन पहली बार विश्व के सबसे पुराने लोकतंत्र और शक्तिशाली देश का प्रमुख, विश्व के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश के गणतंत्र दिवस के अवसर पर मुख्य अतिथि बनने जा रहा है. इस यात्रा के महत्व को इस बात से समझा जा सकता है कि अमेरिकी अधिकारी कह रहे हैं कि भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है और अमेरिका सबसे पुराना लोकतंत्र. इसके बावजूद अब तक न तो कोई भारतीय प्रधानमंत्री अमेरिकी स्वतंत्रता दिवस के मौके पर वहां गये हैं और न ही भारत ने किसी भी अमेरिकी राष्ट्रपति को स्वतंत्रता या गणतंत्र दिवस के मौके पर आमंत्रित किया था. अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ऐसा कर दिखाया.
चार महीने में ही मोदी और ओबामा की यह दूसरी मुलाकात होने जा रही है. इससे पहले म्यांमार और आस्ट्रेलिया में जी-20 बैठक में ओबामा और मोदी की मुलाकात हो चुकी है. खासबात यह है कि भारत और अमेरिका लोकतंत्र की कसमें खाते हैं, लेकिन विश्व में लोकतंत्र को बढ़ावा देने के प्रति दोनों का रवैया एक समान नहीं है. इस तथ्य की अनदेखी की जा सकती है. अमेरिका के लिए लोकतंत्र को बढ़ावा देने का मतलब है दूसरे संप्रभु देशों के आंतरिक मामलों में दखल देना, लेकिन भारत जैसा देश इस नीति को नहीं अपना सकता है. कूटनीतिक समझदारी यह कहती है कि एक देश को दूसरे देशों से संबंध स्थापित करने के लिए वहां की शासन पद्धति पर गौर नहीं करना चाहिए. यहां तक कि विश्व की सम्मानित संस्था संयुक्त राष्ट्र भी अपने सदस्य देशों में लोकतंत्र को बढ़ावा देने से दूरी बनाये रखता है, हालांकि मानव अधिकारों की रक्षा करना सभी सदस्य देशों का नैतिक कर्तव्य है. महत्वपूर्ण यह भी है कि लोकतंत्र की परिभाषा को लेकर कोई एकराय नहीं है और अमीर गैर लोकतांत्रिक देश अपने तरीके के लोकतंत्र को आगे बढ़ाने की बात कह रहे हैं. ऐसे में भारत और अमेरिका को इस तरह के किसी विवादित मुद्दे पर सहयोग या उलझने की कोई जरूरत नहीं है.
ओबामा की यात्रा से एक और इतिहास बनेगा. वे पहले ऐसे अमेरिकी राष्ट्रपति हो जायेंगे, जिन्होंने दो बार भारत का दौरा किया है. हालांकि गणतंत्र दिवस एक उत्सव का मौका है, इसके बावजूद मोदी और ओबामा के बीच द्विपक्षीय मसलों पर अधिकारिक तौर पर बातचीत भी होगी. इससे ओबामा की भारत यात्रा केवल रस्म अदायगी नहीं होकर, महत्वपूर्ण हो जाती है.
अमेरिकी राष्ट्रपति की यात्रा से भारत के पड़ोसी देश को कूटनीतिक संदेश मिल गया है. पांच साल में दूसरी बार ओबामा की भारत यात्रा पाकिस्तान के लिए परेशानी का सबब बन गया है. पाकिस्तान आतंकवाद पर अमेरिकी का सहयोगी होने का दावा करता है, लेकिन ओबामा वहां जाने को तैयार नहीं है. यही नहीं, भारत आने से पहले अमेरिका ने आतंकवाद पर पाकिस्तान को कड़ी चेतावनी भी है. प्रधानमंत्री मोदी का न्योता स्वीकार करने के बाद ओबामा द्वारा पाक प्रधानमंत्री नवाज शरीफ से की गयी बातचीत के पीछे कुछ वजहें हैं. जब तक अमेरिकी सेना अफगानिस्तान में तैनात है अमेरिका पाक को पूरी तरह दरकिनार नहीं कर सकता है. साथ ही पाकिस्तान परमाणु संपन्न देश हैं और जिस प्रकार वहां के हालात हैं, वह काफी खतरनाक है. अमेरिका इस बात को समझता है. पूर्व में अमेरिकी राष्ट्रपति भारत दौरे के बाद कुछ घंटों के लिए पाकिस्तान जाते रहे हैं. बिल क्लिंटन और जार्ज बुश भी ऐसा कर चुके हैं. लेकिन, बराक ओबामा सिर्फ भारत यात्रा पर आ रहे हैं. इससे जाहिर होता है कि उनके एजेंडे में भारत की अहमियत क्या है.
2010 में ओबामा ने भारत की सफल यात्राा की थी और भारत को संयुक्त राष्ट्र में स्थायी सदस्य बनाने में सहयोग का वादा किया था. अब उम्मीद है कि ओबामा की दूसरी यात्रा से दोनों देशों के बीच उपजे कूटनीतिक दरार को पाटने में मदद मिलेगी. देवयानी विवाद के बाद दोनों देशों के सामरिक रिश्तों में खटास आ गयी थी. इस यात्रा से दोनों देशों के बीच में संबंधों में आया ठहराव दूर होगा और रिश्ते मजबूत होंगे. दो प्रमुख लोकतांत्रिक देशों के प्रमुखों के एक मंच पर होने के काफी प्रतीकात्मक महत्व भी हैं. कूटनीति में प्रतीकों का भी अहम रोल होता है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अमेरिका यात्रा भी काफी सफल रही थी, क्योंकि बहुत कम ही देखा गया है कि दो देश संयुक्त विजन स्टेटमेंट जारी करते हैं. ओबामा और मोदी ने वाशिंगटन पोस्ट में एक संयुक्त लेख भी लिखा. मोदी द्वारा अमेरिकी नागरिकों को भारत आने पर वीजा ऑन अरावइल देने की घोषणा को इस संदर्भ में कूटनीतिक मास्टरस्ट्रोक कहा जा सकता है कि अमेरिका ने मोदी को कई वर्षो तक वीजा नहीं दिया था.
नरेंद्र मोदी कूटनीतिक संबंधों के महत्व को समझते हैं. इसलिए वे प्रमुख देशों से बेहतर संबंध बनाने की हरसंभव कोशिश कर रहे हैं. यही नहीं अमेरिका जाने से पहले मोदी एशिया के दो प्रमुख नेता जापान के शिंजो अबे और चीनी राष्ट्रपति शी जिंगपिंग से भी मिल चुके थे. मोदी सरकार की विदेश नीति में स्पष्टता है और प्राथमिकता भी दिखती है. भारत की कोशिश विश्व के प्रमुख देशों से बेहतर संबंध कायम करने की है. मोदी के अमेरिका जाने से पहले जापान ने भारत में 35 बिलियन डॉलर और चीन ने 20 बिलियन डॉलर निवेश की घोषणा कर दी थी. इससे अमेरिका भी भारत में निवेश करने के लिए प्रोत्साहित हुआ है. मोदी ने अमेरिका यात्रा के दौरान वहां की प्रमुख कंपनियों के प्रतिनिधियों से मुलाकात कर आर्थिक संबंध बढ़ाने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाया. अमेरिका भारतीय अर्थव्यवस्था को आगे ले जाने के नरेंद्र मोदी के प्रयास से काफी आशान्वित भी है.
भारतीय बाजार अमेरिकी कंपनियों के लिए काफी महत्वपूर्ण है. इतने बड़े बाजार की अमेरिका अनदेखी नहीं कर सकता है. भारत सरकार ने निवेश को बढ़ाने के लिए आर्थिक सुधारों की दिशा में कदम भी बढ़ाया है. बेहतर राजनीतिक संबंधों से ही आर्थिक और कूटनीतिक संबंध मजबूत होते हैं. अब भारत और अमेरिका के रिश्ते को गुटनिरपेक्षता के आईने में नहीं देखा जाना चाहिए. शीत-युद्ध का दौर समाप्त होने और सोवियत संघ के विघटन के साथ ही इसकी महत्ता खत्म हो चुकी है. अब हर देश अपने सामरिक और कूटनीतिक फायदे के लिए संबंधों को आगे बढ़ाता है.
वैसे भी 9/11 के बाद अमेरिका की दक्षिण एशिया नीति में व्यापक बदलाव आया है और बदले हालात में भारत-अमेरिका संबंध काफी महत्वपूर्ण हो गया है. सीरिया और इराक में आइएसआइएस का बढ़ता प्रभाव, अफगानिस्तान में तालिबान के बढ़ते खतरे, परमाणु संपन्न पाकिस्तान में अस्थिरता और चीन के विस्तारवादी रवैये के परिप्रेक्ष्य में भारत-अमेरिका संबंध काफी मायने रखते हैं.
(विनय तिवारी से बातचीत पर आधारित)
चिंतामणि महापात्र
प्रोफेसर, जेएनयू